दुखी भारत/१० चाण्डाल से भी बदतर

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दसवाँ अध्याय
चाण्डाल से भी बदतर

कोई व्यक्ति यह सोच सकता था कि हिन्दुओं में केवल अछूतों की एक जाति होने के कारण अमरीकावासी उन्हें स्वराज्य और प्रजातन्त्र शासन के अयोग्य ठहराने के लिए सबसे पीछे बोलेंगे। भारतवर्ष के साथ अमरीका की तुलना की जाय तो वहाँ 'अछूतों' की संख्या कहीं अधिक उतरेगी और अस्पृश्यता भी वहाँ भारतवर्ष की अपेक्षा कहीं अधिक बड़े रूप में विद्यमान है। परन्तु इन बातों के होते हुए भी अमरीकावासियों ने अपने स्व-शासन के अधिकार का कभी त्याग नहीं किया और अन्य जातियों को कभी इसके लिए टोकने भी नहीं दिया। जब उन्होंने अपनी स्वतंत्रता की प्रसिद्ध घोषणा का प्रकाशन किया तब उनके देश में ग़ुलाम की प्रथा अत्यन्त प्रबल थी। अभी सत्तर वर्ष भी नहीं हुआ जब अमरीका में केवल इसी प्रथा के कारण गृह-युद्ध हुआ था और सैकड़ों सहस्रों प्राण और लाखों डालर उस गृह-युद्ध के भेंट हुए थे। आज दिन भी भारतवर्ष में अछूतों के साथ इतनी निर्दयता का बर्ताव नहीं किया जाता और क़ानून के विरुद्ध उनको इस प्रकार नहीं सताया जाता जिस प्रकार अमरीका के संयुक्त राज्य में हबशियों को निर्दयता के साथ बिना किसी क़ानून के सताया जाता है।

संयुक्त राज्य अमरीका की मैंने दो बार यात्रा की है। दूसरी बार मैं वहाँ लगभग ५ वर्ष के रहा। इस समय के बीच में मेरे केवल ६ मास वहाँ नहीं व्यतीत हुए क्योंकि मैं ६ महीने के लिए जापान चला गया था। मैंने उस देश में चारों तरफ़ दौरे किये और हबशियों की समस्या का विशेष रूप से अध्ययन किया। मार्च १९१६ में मैंने एक पुस्तक समाप्त की थी। उसमें मैंने लिखा[१] था कि 'अमरीका के संयुक्त-राज्य की द्वितीय बार यात्रा करने का मेरा [ १३८ ]एक उद्देश्य यह भी था कि मैं वहाँ जाकर हबशियों की समस्या का अध्ययन करूँ और उन राज्यों में हबशी जनता के उद्धार और शिक्षा के लिए जो उपाय काम में लाये जाते हैं उनको समझूँ।' इस सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करने के लिए मेरी इच्छा इसलिए प्रबल हो उठी थी कि—

"हबशी अमरीका का चाण्डाल है। संयुक्त-राज्य अमरीका की हबशियों की समस्या में और भारतवर्ष की दलित जातियों की समस्या में कुछ समानता है। दोनों स्थितियाँ पूर्णरूप से एक दूसरे से नहीं मिलती-जुलतीं परन्तु बहुत कुछ दोनों में समान रूप से पाई जाती हैं। संयुक्त राज्य अमरीका की सामाजिक समस्या अपनी कुछ दशाओं में भारतवर्ष की सामाजिक समस्या से बहुत मिलती-जुलती है। इसीलिए मेरी यह इच्छा हुई थी कि वहाँ जाकर इस समस्या के सब पहलुओं का अध्ययन करूँ और उन रियासतों के हबशी नेताओं के सम्पर्क में आऊँ ताकि मुझे उनके दृष्टिकोण का भी वास्तविक ज्ञान हो जाय।"

अपनी पुस्तक में मैंने एक विशेष अध्याय 'अमरीका की राजनीति में हबशी के स्थान' पर ही विचार करने के लिए रखा है। आगे जो वर्णन आएगा वह मैंने अधिकांश में इसी अध्याय से लिया है।

हबशी को दलितावस्था में रखने के लिए, उसको भागने से रोकने के लिए, भग जाने के पश्चात् पुनः पकड़ने के लिए और स्वामी को उस पर पूर्ण शासन का अधिकार देने के लिए अत्यन्त कठोर कानून बनाये गये थे। १८२९ ई॰ में जब एक स्वामी पर अपने दास के पीटने का अपराध लगाया गया तब उत्तर कैरोलिना की बड़ी अदालत ने उस स्वामी को मुक्त कर दिया और स्वामी के 'इस अधिकार को स्वीकार किया कि वह अपने दास को मृत्यु से कम चाहे जो दण्ड दे सकता है'। इसी सिलसिले में उस अदालत ने कहा कि 'यह सोचना उचित नहीं है कि स्वामी और दास में वही सम्बन्ध है जो पिता और पुत्र में है। पुत्र को पढ़ाने लिखाने में पिता का यह उद्देश्य रहता है कि वह एक स्वतंत्र नागरिक के समान जीवन व्यतीत करने की योग्यता प्राप्त कर ले। उसी उद्देश्य की सिद्धि के लिए वह उसे नैतिक और बौद्धिक शिक्षा देता है। दास के साथ इससे भिन्न बर्ताव किया जाता है। इस सम्बन्ध में 'चीफ़ [ १३९ ]जस्टिस रफिन ने संक्षेप रूप से अपनी सम्मति निम्न लिखित शब्दों में व्यक्त की है:—

"उद्देश्य यह है कि स्वामी को लाभ हो, उसके अधिकार सुरक्षित रहें और जनता को किसी प्रकार का ख़तरा न रहे। दास का यह अभाग्य है कि न तो उसे और न उसकी सन्तति को इतना ज्ञान और बल प्राप्त हो सकता है कि वह किसी वस्तु को स्वयं अपनी बना सके। उसको तो केवल इसी उद्देश्य से परिश्रम करना है कि फल की प्राप्ति दूसरों को हो......। ऐसी सेवा की केवल उसी से आशा की जा सकती है जिसकी स्वयं अपनी कोई इच्छा न हो और जो अपनी इच्छा को चुपचाप दूसरे की आज्ञा में समर्पण कर दे। जब तक दास के शरीर पर स्वामी का अनियंत्रित अधिकार न हो तब तक इस प्रकार आज्ञा पालन का भाव नहीं उत्पन्न हो सकता.....। अतः दास को पूर्ण रूप से आज्ञाकारी बनाने के लिए उसके ऊपर स्वामी को निर्विघ्न शासन करने का अधिकार मिलना चाहिए।"

क़ानून की इन कठोर परिस्थितियों में हबशियों को अपने स्वामियों के हाथों क्या बर्ताव सहन करना पड़ता था इसका वर्णन करने की अपेक्षा अनुमान ही अधिक अच्छी तरह किया जा सकता है।

१६१९ ई॰ से लेकर १८६५ ई॰ तक के दासता के समय में हबशियों पर जो निर्दयतापूर्ण अत्याचार किये गये वे वर्णनातीत हैं। भारतवर्ष के इतिहास में उस अत्याचार की समता करनेवाली कोई बात नहीं है। भारत ही क्यों एशिया के समस्त इतिहास में वैसी कोई घटना नहीं घटी। १८६५ ई॰ में जब अमरीका के उत्तरी राज्य दक्षिणी राज्यों के साथ केवल हबशियों को मुक्तिदान दिलाने के लिए गृह-युद्ध में संलग्न थे तब स्वतंत्रता-प्रिय ग्रेट ब्रिटेन ने दक्षिणी राज्यों का साथ दिया था। यह वही ग्रेट ब्रिटेन है जिसे भारत में लोकोपयोगी और उदारतापूर्ण कार्य्यों के करने के लिए मिस मेयो आसमान पर चढ़ा रही है। वाह रे! ग्रेट ब्रिटेन की उदारता!

१७९२ ईसवी और १८३४ ईसवी के बीच के समय में 'डेलावेयर,' 'मैरीलेंड,' 'वरजिनिया,' और 'केन्ट' की सीमा प्रदेश की चारों रियासतों ने हबशियों को मताधिकार देना अस्वीकार कर दिया था। १८३५ ई॰ से उत्तर 'कैरोलिना' ने भी हबशियों को मताधिकार से वञ्चित कर दिया। 'न्यूज़र्सी,' [ १४० ] रियासत ने उनका यह अधिकार १८०७ में ही छीन लिया था। 'कनेक्टिकट रियासत ने १८१४ में और 'पेनसिल वैनियां' राज्य ने १८३८ में छीन लिया। बुकर टी॰ वाशिङ्गटन लिखते हैं कि—'वे समस्त परिवर्तन इस बात के प्रमाण हैं कि संयुक्त राज्य के उत्तर और दक्षिण दोनों भागों में क्रमशः एक प्रकार के वर्णव्यवस्था की उत्पत्ति हो रही है। जिसमें केवल वर्ण-भेद के कारण हबशियों को साधारण नागरिक के स्वत्वों से भी वञ्चित किया जा रहा है।' १८०२ ईसवी में 'ओहियो राज्य में जो हबशी जाते थे उनसे १०० का पट्टा माँगा जाता था। उस समय स्वतंत्र होने पर भी हबशी किसी ऐसे मुकदमे में गवाही नहीं दे सकता था जिसमें किसी गोरे मनुष्य के विरुद्ध अपराध लगाया जाता था। और उस समय सार्वजनिक स्कूलों में भी हबशी भर्ती नहीं किये जाते थे। इसी प्रकार के नियम अन्य राज्यों में भी बनाये गये थे। १८३३ ईसवी में न्यायालय की ओर से यह निर्णय सुनाया गया था कि स्वतंत्र हबशी 'व्यक्ति' हो सकता है 'नागरिक' नहीं।

"कुछ राज्यों में हबशियों को दवा बेचने की आज्ञा नहीं थी, कुछ में वे गेहूँ या तम्बाकू नहीं बेच सकते थे। कुछ में उनका बाज़ार की वस्तुएँ लेकर फेरी करना या नौका रखना कानून के विरुद्ध था। कतिपय राज्यों में स्वतन्त्र हबशी का राज्य सीमा पार करना भी कानून के विरुद्ध समझा जाता था और कुछ में जब कोई हबशी दासता से मुक्त किया जाता था तो उसे उसी समय वह राज्य छोड़ देने के लिए विवश होना पड़ता था।"

दासता की प्रथा केवल सिद्धान्त-रूप में ही उठाई गई थी। क्योंकि हबशियों ने सिद्धान्त-रूप में भी जो कुछ प्राप्त किया था, उससे उन्हें वञ्चित करने के लिए एक आन्दोलन उठ खड़ा हुआ। और वह थोड़ा थोड़ा करके मिस मेयो के इन शब्दों में प्रकट होने लगा कि 'अधीन कुत्ते को उसके पिंजड़े में बन्द कर रखने के लिए एक ही नहीं, अनेक उपाय हैं।'

मिस्टर 'उशर'[२] कहते हैं "दक्षिणी रियासतों के क्रोध और प्रतीकार का फल यह हुआ कि नवीन विधान में ऐसे ऐसे वाक्य जोड़े गये जिनका अर्थ यह [ १४१ ] था कि काली और गोरी जातियों में समानता का भाव कदापि नहीं स्थापित हो सकता और हबशी संयुक्त-राज्य के नागरिक नहीं हो सकते। १८६५ ई॰ के अन्त में कतिपय रियासतों ने हबशियों को बलात्कारपूर्वक बिना गृहद्वार का मजदूर बनाने के लिए कानून पास किये। इन कानूनों के परिणाम स्वरूप १८ वर्ष की आयु के ऊपर के हबशियों का बिना 'काम या रोज़गार' के रहना और 'अनियमित रूप से दिन में या रात में एकत्रित होना' अपराध समझा जाने लगा। १८ वर्ष से कम आयु के हबशी 'चाहे अनाथ हों चाहे अपने माता पिता के साथ रहते हो' यदि वे अपनी जीविका का स्वयं प्रबन्ध नहीं करते थे या नहीं कर सकते थे तो प्रोवेटे अदालत के क्लर्क उन्हें अपनी इच्छानुसार कहीं काम करने के लिए लगवा देते थे इसमें भी प्रयत्न उनका यही रहता था कि वे अपने पुराने स्वामियों के यहाँ काम करें। मिसीसिपी राज्य में उन हबशियों के लिए भी ऐसे ही नियम बनाये गये जो अपने कर नहीं चुका सकते थे। और इसके पश्चात् निर्धनों की सहायता करने के उद्देश्य में समस्त हबशियों पर प्रति शिर १ डालर जजिया कर लगा दिया गया। फ़ौजदारी के कानून अनुसार अपराधी को जुर्माना देना पड़ता था और जिस व्यक्ति का वह अपराध करता था उसी की उसे अनिवार्य्य-रूप से सेवा करनी पड़ती थी। बदले में वह मनुष्य कम से कम समय की सेवा के लिए जो मज़दूरी हो सकती थी, वही देता था। यह दण्ड-विधान द्वेषपूर्ण बर्ताव, अपमानजनक चेष्टाएँ, विद्रोहात्मक व्याख्यान या अन्य ऐसे ही लाधारण अपराधों के लिए बना था"

काम सिखाने की श्राड़ या ऋण से मुक्त न हो सकने और अन्य अपराधों के दण्ड-स्वरूप विधान पुस्तक में ऐसे ऐसे कानून रक्खे गये जिनमें निर्धनता और अपराध की अत्यन्त व्यापक व्याख्या को गई थी और जिनके अनुसार प्रत्येक हबशी अपराधी ठहरा दिया जाता था। ऋण-ग्रस्त हबशियों से बलात्कारपूर्वक काम होने की व्यवस्था की गई और तब ऐसे कानून पास हुए जिनके अनुसार प्रत्येक हबशी ऋण-त्रस्त हो गया। इसके अतिरिक्त दक्षिण की रियासतों ने संयुक्त राज्य की कांग्रेस के लिए अपना प्रतिनिधि स्वभावतः उन्हीं लोगों को चुना जो राज्य-संघ की सेना और शासन में ख्याति पा चुके थे और एक ऐसी लोकसेना का सङ्गठन किया जिसके उच्च पदों पर स्वभावतः वेही सैनिक अनुभव-प्राप्त व्यक्ति रक्खे गये थे जो गृह-युद्ध में उनकी ओर से लड़े थे। इन सब बातों से उत्तरी राज्यों का सन्देह बढ़ा। वे सोचने लगी कि यदि सावधानी से काम न लिया गया [ १४२ ] तो युद्ध से जो कुछ प्राप्त हुआ है वह सब व्यर्थं जायगा क्योंकि दक्षिणी राज्यों की प्रवृत्ति तब भी विद्रोहात्मक ही थी और वह दासता की प्रथा बन्द होने से पहले हबशियों की जो दशा थी वही फिर उपस्थित करने के लिए प्रत्येक संभव उपाय का प्रयोग कर रही थी। दक्षिणी रियासतों और प्रजातन्त्र की कांग्रेस में जो खींचाखींची हो रही है उसका यही कारण है।

हबशियों का बहुमत कम करने के लिए बराबर उद्योग होता रहा। यहाँ तक कि एक प्रकार से हबशी जनता मताधिकार से सर्वथा वञ्चित कर दी गई। आज भी दक्षिणी राज्यों में हबशी का राजनैतिक स्थान उसी प्रकार शून्य के बराबर है जैसा कि दासता की प्रथा बन्द होने से पूर्व था। संयुक्त राज्यों में हबशी की वर्तमान राजनैतिक स्थिति एक दूसरे अमरीकन लेखक मिस्टर पाल लिलैंड हैवर्थ के शब्दों में नीचे लिखे अनुसार:—

"पन्द्रहवें संशोधन के अनुसार 'जाति, वर्ण या पूर्व की दासता की स्थिति के कारण' कोई नागरिक मताधिकार से वञ्चित नहीं किया जा सकता। हबशी के राजनैतिक अधिकारों के विरुद्ध कोई कानूनी भेद उपस्थित किया जाय तो निश्चय यह संशोधन उस भेद के उपस्थित होने में बाधक-रूप प्रतीत होगा परन्तु प्रत्येक व्यक्ति यह जानता है कि इस संशोधन की अवहेलना करने के लिए भी उपाय ढूँढ़ लिये गये हैं। सुधार-शासन के अन्त होने पर दक्षिणी राज्यों में हबशियों को मताधिकार से छल या बलपूर्वक वञ्चित कर दिया गया। परन्तु १८९० ई॰ में मिसीसिपी राज्य ने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए एक ऐसी आयोजना उपस्थित की, जो एक प्रकार से विधानात्मक प्रतीत होती थी। वर्तमान समय में प्राचीन राज्य-संघ के, प्रत्येक राज्य—फ्लोरिडा, अर्कन्साज, टिनेसी और टेक्लाज़ को छोड़कर—के पास मताधिकार-सम्बन्धी ऐसे साधन मौजूद हैं जो हबशियों को राजनीति से सर्वथा पृथक् कर देने के लिए पर्याप्त हैं। इसके प्रतिवादस्वरूप जिन चार राज्यों का नामोल्लेख किया गया है उनमें भी हबशी का कोई महत्त्व नहीं है। शिक्षा-सम्बन्धी या साम्पत्तिक क़ैद लगाकर अपढ़ और निर्धन हबशी मतदाताओं को बहिष्कृत कर दिया जाता है परन्तु अपढ़ और निर्धन गोरों के लिए 'पादरी की दफ़ा' या 'समझदारी की दफ़ा' के अन्दर मत प्रदान करने का मार्ग निकाल लिया जाता है। रजिस्ट्री करनेवाले गोरे अफ़सर इन दफ़ाओं का प्रयोग हबशियों के साथ कठोरता से और गोरों के साथ नर्मी से करते हैं। मताधिकार-सम्बन्धी इन संशोधनों का एकमात्र उद्देश्य यही था कि हबशी राजनीति से पृथक् कर दिये [ १४३ ] जायँ। इन दफाओं से निःसन्देह पन्द्रहवें संशोधन पर आघात पहुँचता है और इन दफ़ाओं का जिन राज्यों ने प्रयोग किया है उन पर चौदहवें संशोधन का वह अंश भी लागू होता है जिसका आशय यह है कि मताधिकार से जितने नागरिक वन्चित किये जायें उतने ही अनुपात में प्रतिनिधियों की संस्था में भी कमी कर दी जाय। परन्तु बड़ी अदालत ने सदा सावधानी के साथ इस विधानात्मक समस्या की उपेक्षा की है और कांग्रेस ने भी किसी राज्य का प्रतिनिधित्व कम करना उचित नहीं समझा। वर्तमान राजनैतिक स्थिति को देखते हुए यह असम्भव प्रतीत होता है कि इन मताधिकार सम्बन्धी साधनों को बेकार कर देने के लिए कुछ किया जा सकेगा।"

परन्तु इन बातों का यहीं अन्त नहीं हो जाता। हबशियों का मताधिकार छीनने और छल या बलपूर्वक उन्हें राजनीति से पृथक् कर देने के अतिरिक्त दक्षिणी धारा सभाओं ने उनके विरुद्ध अनेक भेद-भाव उत्पन्न करनेवाले कानूनों की रचना की है। १९१० ईसवी में ५२ राज्यों में से २६ ने स्थायी या सामयिक कानून बनाकर हबशियों का गोरों के साथ अन्तर-विवाह वर्जित कर दिया। ऐसे मिश्रित सम्बन्ध अप्रचलित घोषित कर दिये गये हैं। और जो परस्पर ऐसे सम्बन्ध स्थापित करते हैं उन पर कुछ राज्यों में 'दुराचार,' कुछ में 'व्यभिचार' और कुछ में 'गुण्डापन' का अपराध लगाया जाता है। भिन्न भिन्न राज्यों में दण्ड भी भिन्न भिन्न दिये जाते। कतिपय दक्षिणी राज्यों में १-१० वर्ष तक का कारागारवास दिया जाता है। कुछ में कम से कम केवल ५० शिलिङ्ग का अर्थ-दण्ड दिया जाता है और कुछ में केवल गोरी जाति के व्यक्ति को दण्ड दिया जाता है, हबशी को बिलकुल नहीं। जातियों के अन्तर-सम्बन्ध के विषय में एम॰ सीग फ़्रीड लिखते हैं कि 'स्त्री की रक्षा तो बड़ी सफलता के साथ की जा सकती है परन्तु हबशी महिला की दशा बिलकुल भिन्न है। प्रमाण के लिए 'हमें केवल अफ्रीका के आदि निवासियों और अमरीका के सभ्य हबशियों के रङ्ग की तुलना कर लेना ही यथेष्ट है।'[३] [ १४४ ]इसके अतिरिक्त जिन राज्यों में पहले दासता की प्रथा थी उन सबमें 'जिम क्रो के कानूनों का प्रयोग किया जाता है। इन क़ानूनों के अनुसार रेल गाड़ियों में गोरों और हबशियों के पृथक् पृथक् बैठने का प्रबन्ध रहता है। कुछ राज्यों में तो ट्राम गाड़ियों और स्टीमरों में भी यह व्यवस्था की जाती है। रेल की सड़कों पर गोरों और हबशियों के लिए भोजनालय और विश्रामगृह भी पृथक् पृथक् होते हैं। प्रायः गाड़ियों तक का पृथक् पृथक् प्रबन्ध किया जाता है। और सड़कों पर चलनेवाली किराये की गाड़ियों में गौर लोगों को आगे और अगौर लोगों को पीछे बैठने का स्थान दिया जाता है। रेल की यात्रा में कोई हबशी कितना ही धनी क्यों न हो प्रायः उसे सोने के लिए स्थान मिलना असम्भव ही रहता है। और यदि ऐसा यात्री, उदाहरण के लिए मान लीजिए, 'इलीन्वाइस' में ओहियो नदी को पार कर रहा हो तो उसे अपना स्थान खाली करके हबशियों के लिए खास तौर से बने स्थान में जाकर बैठना पड़ता है। प्रायः रेल की कम्पनियां भी गोरे यात्रियों के बैठने आदि के लिए हबशियों की अपेक्षा अच्छा प्रबन्ध करती हैं। यह दूसरी बात है कि किराया दोनों से एक ही लिया जाता है।

किसी दक्षिणी राज्य के सार्वजनिक स्कूलों में हबशियों आदि के बालक गोरों के बालकों के साथ नहीं पढ़ने पाते। कुछ राज्यों में व्यक्तिगत पाठशालाओं के सम्बन्ध में भी यही कानून बर्ता जाता है। एक राज्य में तो अभी हाल ही में यहाँ तक कानून बना दिया है कि जिन स्कूलों में गोरों के बालक पढ़ते हैं। उनमें हबशी अध्यापक न रक्खे जायँ और इसी प्रकार हबशियों के स्कूलों में गोरे अध्यापक न रहने पावें।

कानूनी विशेषताएँ और भेदभाव अधिकांश-रूप में दक्षिणी राज्यों तक ही परिमित हैं परन्तु जातिगत घृणा प्रायः समस्त संयुक्त राज्य में देखने में आती है। हबशियों को होटलों, युवक ईसाई संघों, युवती ईसाई संघों, और थियेटरों में आने से रोका जाता है। और गोरों की कब्रगाहों में वे अपने मुर्दे नहीं गाड़ने पाते। यदि स्थानिक नियम के अनुसार उन्हें इसका अधिकार प्राप्त रहता है तो भी वे ऐसा नहीं करने पाते। खुल्लमखुल्ला नियम भङ्ग किये जाते हैं। जनता के हार्दिक भावों के कारण बेचारे हबशी पृथक गिरजाघरों में [ १४५ ] प्रार्थना करते हैं, पृथक् होटलों में ठहरते हैं और थियेटरों में विशेष स्थान प्राप्त करके विनोद करते हैं। नगरों में और ग्राम में भी उन्हें अपने निवास-स्थान पृथक् बनाने पड़ते हैं और जीवन की समस्त दशाओं में वे गोरों से दूर रक्खे जाते हैं। संयुक्त राज्य में हबशियों की चाण्डाल से भी बुरी दशा है।

इस जाति-द्वेष ने सबसे निकृष्ट रूप यह धारण किया है कि जो हबशी अपराधी होते हैं या जिन पर गोरों के विरुद्ध किसी प्रकार के अपराध का सन्देह किया जाता है वे मुकदमा चलाये जाने से किसी अदालत-द्वारा अपराधी ठहरने से पहले ही क्रूरता के साथ मार डाले जाते हैं। व्यापक रूप से सुसङ्गठित 'क्लू क्लक्स क्लान' से इस कृति में अमरीकावासियों की योग्यता का परिचय मिल जाता है। वे गुप्त क्रान्तिकारी संघ के समान अपना कार्य करते हैं। और उन्हें यह बात मालूम है कि वे नियम और शान्ति को बड़ी नृशंसता के साथ भङ्ग कर सकते हैं। हबशियों के विरुद्ध, इस सामूहिक आक्रमण के सम्बन्ध में लिखते हुए 'अमरीका कम्स अफ एज', के लेखक हमें विश्वास दिलाते हैं कि 'इस कार्य्य में प्रायः गोरी जाति के सर्वोत्तम अङ्ग जैसे समाज-सञ्चालक, उच्च पदाधिकारी और न्यायाधीश तक भाग लेते हैं।....उन लोगों ने स्वयं मुझसे यह बात कही है। वह सभ्य और शिष्टाचार की मूर्ति जिससे आप बातें कर रहे हैं बहुत कुछ संभव है कि एक ऐसा हत्यारा हो जो निशाकाल में जङ्गल में अपने सैकड़ों साथियों के साथ एक व्यक्ति का प्राण लेने जाता हो। ऐसे ही आप सहस्त्रों व्यक्तियों से मिल सकते हैं। उनमें आपके मित्र भी हो सकते हैं जो इस कार्य्य में उसके सहायक होते हैं।'[४]

आगे के अङ्कचक्र और उसके पश्चात् आनेवाले वर्णन से आपको ज्ञात होगा कि किस सीमा तक यह क्रूरता-पूर्ण प्राण-दण्ड देने की प्रथा अपना कार्य्य कर रही है तथा किस प्रकार साधारण बहाने बनाकर हबशियों का वध किया जाता है। [ १४६ ]

अगौर वर्ण के मनुष्यों की सूची जिनका बिना अदालत में मुक़दमा चलाये क्रूरता के साथ वध किया गया।


वर्ष
१८८५
१८८६
१८८७
१८८८
१८८९
१८९०
१८९१
१८९२
१८९३
१८९४
१८९५
१८९६
१८९७
१८९८
१८९९
१९००
१९०१


वध-संख्या
७८
७१
८०
९५
९५
९०
१२१
१५५
१५४
१३४
११२
८०
१२२
१०२
८४
१०७
१०७


वर्ष
१९०२
१९०३
१९०४
१९०५
१९०६
१९०७
१९०८
१९०९
१९१०
१९११
१९१२
१९१३
१९१४
१९१५
१९१६
१९१७
१९१८



वध-संख्या
८६
८६
८३
६१
६४
६०
९३
७३
६५
६३
६३
७९
६९
८०
५५
४४
६४

कुल २,९७७

[ १४७ ]१९१४ ईसवी में इसके जो कारण बतलाये गये वे इस प्रकार हैं[५]:—
... संख्या ... कुल जोड़ का प्रतिशत
हत्या ... ३० ... ... ४४
विद्रोह और रात में आक्रमण से १३ ... ... १९
व्यक्तिगत आक्रमण से १० ... ... १४
स्त्रियों पर बलात्कार, बलात्कार की चेष्टा। और उनके कमरों में प्रवेश करने के कारण ... ... ११+
डाका और चोरी … ५ ११+
आग लगाने का अपराध … २
जाँच-पड़ताल में विरोध … १

कुछ उदाहरण—१९११ ईसवी
हबशी होने का अपराध

२० अक्टूबर, मैंचेस्टर गा—जेरी लव लेस नामक एक हबशी पर गत रात्रि में किसी गोरे को धक्का देकर गिरा देने का अपराध लगाया गया था। इसलिए वह आज दो बजे प्रातःकाल जेल से निकाला गया और बड़ी क्रूरता के साथ मार डाला गया। मारनेवालों में लगभग ३० गोरे थे।

माता और पुत्र लटकाये गये

२६ मई, ओकमैन; ओक्लाहामा—एक अगौर वर्ण महिला एक मजिस्ट्रेट को गोली से मारने की अपराधिनी ठहराई गई। इसलिए एक भीड़ ने उसको [ १४८ ] और उसके १४ वर्ष के बेटे को एक पुल पर से बाँध कर लटका दिया। लटकाये जाने से पहले स्त्री पर बलात्कार किया गया।

पाँच निर्दोष मनुष्य अन्यायपूर्वक और

क्रूरता के साथ मार डाले गये

२० मई, लेक सिटी, फ्ला—'एक उच्च नागरिक की हत्या में सहयोग देने के अपराध में जेल से ६ हबशी बाहर निकाले गये और क्रूरतापूर्वक मार डाले गये। हत्यारे मोटरगाड़ियों में आये और मजिस्ट्रेट के नवयुवक पुत्र को, जो उस समय जेल के अधिकारी के रूप में था, एक बनावटी तार दिखलाया और कहा कि इसे गवर्नर ने इसलिए भेजा है कि कैदी हत्यारों को दे दिये जायें। जाँच करने पर यह पता चला कि जिन ६ मनुष्यों की हत्या की गई उनमें से केवल एक ने अपराध किया था। घटना इस प्रकार है। एक गोरे और हबशी में कुछ झगड़ा हुआ। मामला स्थानिक अदालत में लाया गया। अदालत ने हबशी को निरपराध पाकर छोड़ दिया। इसके पश्चात् ही गोरा बन्दूक लेकर हबशी के हाते में गया। दोनों ओर से गोलियां चली और गोरा मारा गया। हबशी ने उसी समय अपने आपको न्याय करनेवालों के हाथ सौंप दिया। उसके साथ जो पाँच हबशी और थे वे साक्षी-मात्र थे।

घायल हबशी जलाया गया

१३ अगस्त कोट्सवेली, पा—कोट्सबेली के भयङ्कर काण्ड की कथा को पुनर्धार कहने की आवश्यकता नहीं है। आप सब लोगों को वह मनुष्य अभी भूला न होगा जो नशे की दशा में एक पहरेदार पर गोली चलाने के कारण अस्पताल के बिछौने से बाहर लाया गया और जीवित जला दिया गया है जब उसने अपने आपको आग से बाहर खींचने का प्रयत्न किया तब उसका अधजला शरीर फिर लपटों में झोंक दिया गया था। उसके दांत और हड्डियों का कोयला स्मृति के लिए रख लिया गया। इस क्रीड़ा-विनोद के अपराध में जो लोग गिरफ़्तार किये गये थे, वे सब छोड़ दिये गये। [ १४९ ]

एक न्यायाधीश ने क्या कहा?

जुलाई, लारेन्सविली, गा—लारेन्स विली,गा के न्यायाधीश चार्ल्स एच॰ ब्रैंड ने अपने न्यायालय में न्याय के लिए आये दो हबशियों की रक्षा के लिए सैनिक सहायता मँगवाने से इनकार कर दिया। उन दोनों हबशियों में एक पर यह अपराध लगाया गया था कि उसने किसी गोरी महिला पर आक्रमण किया था और दूसरे पर यह कि 'वह इधर-उधर इस प्रकार घूम रहा था कि उस पर सन्देह किया जा सकता था।'

दोनों अन्याय और क्रूरतापूर्वक मार डाले गये। एक रेलगाड़ी में से, जहाँ वह दो अफसरों की जिम्मेदारी में था, बलात् उतार लिया गया और मारा गया।(जब तक यात्री उसके निर्दयतापूर्वक वध का दृश्य देखते रहे तब तक गाड़ी खड़ी रही।) दूसरे को कई सौ मनुष्यों के प्रबल समूह ने कारागार से बाहर घसीट कर वध किया।

न्यायाधीश ब्रैंड ने अपने कैदियों की रक्षा न कर सकने की नीति का इस प्रकार समर्थन किया था:—

"इस देश में ऐसे समस्त हत्यारे हबशियों के लिए किसी गोरे मनुष्य के प्राणों का बलिदान होने में मैं साधन नहीं बनना चाहता।....मेरी आत्मा और मेरे ईश्वर मुझे ऐसा करने के लिए पूर्णरूप से आज्ञा देते हैं। ऐसे सैकड़ों हबशियों की प्राण-रक्षा करने के लिए एक भी गोरे मनुष्य का जीवन सङ्कट में नहीं डालना चाहता।"

गवर्नर ब्लीस क्या कहते हैं?

११ नवम्बर, होनीपथ, एस॰ सी॰—साउथ कैरोलिना के हाल ही में हुए एक रोमाञ्चकारी हत्याकाण्ड के सम्बन्ध में वहां के गवर्नर ब्लीस कहते हैं कि 'उस पशु हबशी को दण्ड देने से गोरों को रोकने के लिए अपने पद की शक्ति का प्रयोग करने की अपेक्षा 'मैं अपना पद-त्याग करके होनी पथ की भीड़ का नेतृत्व ग्रहण करना अधिक उचित समझता हूँ।' [ १५० ]अपनी जिस पुस्तक से मैंने उपरोक्त उदाहरण लिये हैं उसके लिखे जाने के समय में जैसे पाशविक कृत्य होते थे वैसे ही अब भी हो रहे हैं। १९२७ की क्राइसिस की कुछ संख्याओं से लिये गये निम्नलिखित वर्णन पढ़ने के पश्चात् इस सम्बन्ध में कोई सन्देह नहीं रह जाता। क्राइसिस की अगस्त की संख्या में लिखा है:—

निर्दयतापूर्ण हत्यायें

"हाल में संयुक्त राज्य में जो भयङ्कर हत्याकाण्ड हुए हैं उन्हीं पर नहीं, विश्वास में न आ सकनेवाले मानव प्राणियों को जीवित अग्नि में जलाने के दुष्कृत्यों पर भी संयुक्त-राज्य ने ज़रा भी ध्यान नहीं दिया, किञ्चित्-मात्र भी विरोध नहीं प्रदर्शित किया। कदाचित् ही इसके लिए धर्म-वेदी पर कोई शब्द कहा गया हो। १०० में १०० अमरीकावासी इस सम्बन्ध में चुप्पी साधे हैं। इन प्रजातंत्र के रक्षकों, स्थल और जलसेना के प्रचारकों के मुंह से आह! तक नहीं निकलती। फिर यह मोनावलम्बन उस दशा में है जब कि लूइसवेली और मिसीसिपी की हत्याओं का कारण मेम्फिस की कमर्सियल अपील के अनुसार केवल यह है कि 'पुरानी और मन्द गति से चलनेवाली फोर्ड मोटरों में सवार हबशियों ने पीछे की तीव्र गति से चलनेवाली मोटरों को रास्ता देना अस्वीकार कर दिया था। ओहो! केवल इतनी सी बात पर चारों ओर कितना क्रोध और घृणा फैल गई।' इतने पर भी प्रत्येक प्रकार के मौनावलम्बन-द्वारा हम इस बर्बरता को छिपाये और दबाये हुए जेनेवा और पेकिङ्ग की कौंसिलों में भाग ले रहे हैं और संसार को यह विश्वास दिलाने का प्रयत्न कर रहे हैं कि हमारा राष्ट्र बड़ा सभ्य है।"

नीचे उसी अङ्क से एक दूसरा पैराग्राफ़ और दिया जाता है।

सामूहिक चालें

संयुक्त-राज्य में सामूहिक हिंसा ने एक क्रमबद्ध रूप धारण कर लिया है। ये कार्य्य कुछ कुछ इस प्रकार किये जाते हैं:—

"कोई अपराध किया जाता है। पुलिस किसी हबशी को गिरफ्तार करने दौड़ती है। निस्सन्देह यह ढङ्ग खूब प्रचलित है, क्योंकि गोरी जनता हबशियों [ १५१ ] के अपराध करने की बात पर तुरन्त विश्वास कर लेती है। कोई हबशी गिरफ्तार कर लिया जाता है। यदि वह उसी दम मार डाला जाता है तो पुलिस को अपने बचाव का साधन मिल जाता है और अपराधी गोरे व्यक्ति भी भेद खुल जाने के भय से बच जाते हैं। यदि हत्या करने में देर लगती है और इस कृति के लिए उन्हें भय दिलाया जाता है तो एक समूह हबशियों के प्रान्त पर आक्रमण करता है। इससे लूटपाट और चोरी करने का भी अवसर मिलता है। यदि कुछ हबशी अपनी रक्षा करने का प्रयत्न करते हैं तो पुलिस तुरन्त सशस्त्र नागरिकों की सहायता से समस्त हबशियों के अस्त्र-शस्त्र छीन लेती है और उनके एक दल पर बलवा करने का अपराध लगा देती है। यदि बलवा करने के अपराध में कुछ गोरे भी गिरफ्तार होते हैं तो शीघ्र ही प्रायः सब छोड़ दिये जाते हैं। परन्तु हरशी नहीं छोड़े जाते और उन पर मुकदमा चलाया जाता है। ये बातें हबशी जनता को डरपोक बना देती है और उसे आत्मरक्षा का उद्योग नहीं करने देतीं। आत्मरक्षा करनेवाले कितने ही निरपराध क्यों न हों और उनका जीवन, तन, धन कितने ही खतरे में क्यों न हो, वे हाथ तक उठाने से डरते हैं।"

एकिन का हत्याकाण्ड (सितम्बर की 'क्राइसिस' से)

सबके पश्चात् जो प्रभावशाली आन्दोलन हम लोग खड़ा कर सके हैं, वह ग़ैर क़ानूनी हत्यायों के विरुद्ध है। हम एक पीढ़ी से ऐसी हत्याओं का विरोध करते श्रा रहे हैं परन्तु अब भी हमें इस प्रथा से बहुत कुछ युद्ध करना है। एकिन, साउथ कैरोलिना में जो हत्याकाण्ड हुआ उसके विरुद्ध हम लोगों ने कुछ आन्दोलन किया था। साउथ कैरोलिना दक्षिण के अभिमानी राज्यों में से एक है और दक्षिण के एक-राज-सत्तावादियों का घर है। एकिन उत्तर के एक-राज-लत्तावादियों के शीतकाल का निवासस्थान है। इसी धनपतियों के प्राचीन राज्य में एक ऐसी घटना हुई जिससे प्रत्येक अमरीकावासी का सिर लज्जा से झुक जाना चाहिए। तीन गरीब हबशी एक अपराध में गिरफार किये गये। उन पर हत्या का अपराध लगाया गया। जल्दी में उनका मुकदमा हुया! नुकदमा क्या हुआ मुकदमे का मज़ाक हुआ। वे अपराधी सिद्ध हुए। उन्हें फांसी की आज्ञा दी गई। कुछ ही दिन रह गये थे कि साउथ कैरोलिना के [ १५२ ] एक हबशी वकील मिस्टर एन॰ जे॰ फ्रेडरिक ने अपने हाथ में उनका मुकदमा लिया। मिस्टर फ्रेडरिक ने साउथ कैरोलिना की बड़ी अदालत में इन मुकदमें की अपील की। यह, उस अदालत के लिए विशेषतः उस राज्य के लिए प्रशंसा की बात है कि ये मुक़दमे जाँच के लिए सरकिट अदालत को फिर दे दिये गये। इसलिए जब पुनः बार विचार होने लगा तब मिस्टर फ्रेडरिक ने एक दक्षिणी गोरे वकील मिस्टर एल॰ जी॰ साउथर्ड की सहायता से इन मुकदमें की पैरवी की। साउथ कैरोलिना की अदालतों में ये तीनों हबशी दो पुरुष और एक स्त्री-फिर विचार के लिए उपस्थित किये जाने लगे। मुकदमे समाप्त नहीं हुए थे कि जज ने मिस्टर फ्रेडरिक के प्रस्ताव करने पर तीने अपराधियों में से एक को निरपराध घोषित कर दिया। और इस बात की बड़ी सम्भावना थी कि शेष दो भी छोड़ दिये जायेंगे। परन्तु क्या हुआ? उसी रात गोरों का एक समूह एकत्रित हो गया। कानून के अफसरों के इशारे से सब जेल के भीतर घुस गये और उन दोनों पुरुष तथा उस स्त्री को बाहर वसीट लाकर गोली से मार दिया।

'अन्धकार और अज्ञानतामय' मिसीसिपी राज्य में क्या हुआ इसका वर्णन सितम्बर के 'क्राइसिस' में इस प्रकार है:-

"अन्धकार और अज्ञानतामय मिसीसिपी राज्य में कुछ दिन हुए जो हत्याकाण्ड हुश्रा था उस पर जरा विचार कीजिए। जब न्यूयार्क नगर में लाखों अमरीकावासी लिण्डबर्ग का गुणानुवाद करने के लिए एकत्रित हुए थे क्योंकि उसने अपने वैज्ञानिक उद्योग और सफलता से समस्त संसार के सम्मुख अमरीका का मस्तक उन्नत किया था, तब-उसी सुन्दर समय में जब कि लाखों अमरीकावासी केवल गोरे ही नहीं, काले हबशी भी न्यूयार्क-नगर में लिंडबर्ग का गुणानुवाद कर रहे थे-लग-भग एक सहस्र या इससे भी अधिक नर-पशुओं के समूह ने मिसीसिपी में दो हबशियों को अपने अधिकार में कर लिया था। दोने हबशी सगे भाई थे। दोनों पर पारा चलाने के कारखाने में दासों को बलपूर्वक भेजनेवाले एक श्रेोवरसियर की हत्या करने का अभियोग लगाया गया था। इस समूह ने उन दोनों हबशियों को सरकारी कर्मचारियों से छीन लिया। उसके पश्चात् उनके साथ क्या बर्ताव हुया? दोनों एक तार के खम्भे से बांध दिये गये, उन पर पेट्रोल उँडेल दिया गया और आग लगा दी गई।" [ १५३ ]१ जुलाई १९२७ की क्राइसिस की संख्या में डाक्टर ड्यू बोइस के सम्पादकीय लेखों के पिछले भाग में निम्नलिखित वर्णन मिलता है:-

कोफी विली, कंसास

"कंसास के एक नगर में जिसमें लगभग २०,००० मनुष्य रहते हैं, हाई स्कूल की दो लड़कियाँ दावा करती हैं कि १७ मार्च को उन पर हबशियों ने बलात्कार किया है। रक्त के प्यासे कुत्ते एकत्रित किये जाते हैं। वे हबशियों की बस्ती में घुसते हैं, और तीन हबशी गिरफ्तार कर लिये जाते हैं। उनमें से दो छोड़ दिये जाते हैं पर एक नहीं छोड़ा जाता। १८ मार्च को इस काले मनुष्य का प्राण लेने के उद्देश्य से २,००० मनुष्यों का एक समूह नगर के भवन पर आक्रमण करता है। यह समूह नगर के सवन को क्षति पहुँचाता है, भाण्डारों को लूटता है और हबशियों का पीछा करता है। बीस या इससे कुछ अधिक हबशी हथियार उठाते हैं और एक जल-गृह में एकत्रित होते हैं। उनके दो मुखिया एण्डर्सन और फोर्ड भीड़ पर गोली चलाते हैं और उसे रोकते हैं। यद्यपि वे स्वयं भी अत्यन्त घायल हो जाते हैं। अब वे गिरफ्तार हैं और उन पर 'विद्रोहाग्नि भड़काने' का अभियोग चल रहा है.........।

"इसके पश्चात् ही वास्तविक बात खुलनी आरम्भ होती है। गोरे लोग मामले को दबाना चाहते हैं। हबशी विशेषरूप से जांच होने की प्रार्थना करते हैं। कोफी विली का दैनिक समाचार-पत्र अपने ३० मई के अङ्क में स्वीकार करता है कि उन दोनों लड़कियों के शय्या-सहचर गोरे ही लोग थेन कि काले हवशी। उन गोरों में से एक इस समय बलात्कार के अपराध में जेल में हैं। उन लड़कियों में से भी एक बलात्कार में सहायक होने के कारण जेल-जीवन व्यतीत कर रही है। अब इस पर कौन सी टीका-टिप्पणी आवश्यक है?"

जो लोग गोरों की नैतिक उच्चता में विश्वास करते हैं वे पूर्वी सेंट लुइस के १९१७ ई॰ के 'नर-संहार' का थोड़ा भी हाल पढ़ेंगे तो उनकी आँखें खुल जायगी। इस वर्णन में गोरी स्त्रियाँ और बालकों की लीला विशेष ध्यान देने योग्य है:-

पूर्वी सेंट लुइस का नर-संहार

पूर्वी सेंट लुइस इलीन्वायस में जुलाई ३६१७ ईसवी में जो घटनायें हुई उन्होंने एक तरफ़ से नरसंहार का रूप धारण कर लिया था। यह विपत्ति [ १५४ ] इसलिए उपस्थित हो गई कि पूर्वी सेंट लुइस के धन-पतियों ने हड़ताल कर बैठनेवाले गोरे मजदूरों के स्थान पर काम करने के लिए दक्षिण से हबशी मज़दूरों को एक बड़ी संख्या में बुला लिया था। इस पर गोरे मजदूरों ने कानून को अपने हाथ में ले लिया और ढूँढ़ ढूँढ़ कर हबशी स्त्रियों, बच्चों, बुड्ढों का वध करना आरम्भ कर दिया। किसी को नहीं छोड़ा। हबशियों के घरों में आग लगा दी। जिनमें, अधिकांश में भीतर के लोग भीतर ही जलकर राख हो गये। गोरों के समाचार-पत्रों ने भी यह स्वीकार किया है कि गोरी पुलिस या तो चुपचाप तमाशा देखती थी या गार आततायियों की सहायता करती थी। सेंट लुइस स्टार नामक पत्र में निम्नलिखित वर्णन छपा था। इससे पुलिस और अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित नागरिकों के व्यवहार पर अच्छा प्रकाश पड़ता है:-

"इस नर-हत्या में नागरिक सेना के कुछ सैनिक भी योग दे रहे थे। 'लोनली' की एल॰ सेना के दो सैनिकों के सम्बन्ध में मिस ग्रूनिंग ने अपना वक्तव्य प्रकाशित कराया है। बलवे के कुछ दिन पश्चात् कैबोकिया नदी के निकट वे उनके पास से जब निकली तक उनसे और उनमें कुछ बातें हुई। वे दोनों डींग मार रहे थे कि यहाँ ७ हबशी नदी में फेंक दिये गये थे और जब जब वे बाहर निकलने का यत्न करते थे लोग उन पर पत्थर फेंकते थे। यहीं तक कि वे डूबकर मर गये।......मिस ग्रूनिंग ने पूछा-'और बहादुरो तुमने कितने हबशियों का वध किया? इसका उन्होंने कोई निश्चय नहीं किया था। वे ठीक ठीक यह नहीं बता सकते थे कि कितने? परन्तु यह बात तो निश्चित धी कि गोली वे मारने ही के लिए चलाते थे। उनका यही आज्ञा मिली थी। मिस ग्रूनिंग ने पूछा-'क्या हबशियों को मारने की आज्ञा?' उन्होंने आनन्द के साथ मुस्करा कर उत्तर दिया-'ओह नहीं। केवल उनको मारने की आज्ञा मिली थी जो आग लगा रहे थे। 'और क्या तुमने किसी हबशी को श्राग लगाते देखा था?' 'नहीं. हम लोगों ने जो कुछ देखा वह इतना ही था कि हबशी भाग रहे हैं।"

मिस ग्रूनिंग में इस बात की जाँच करने के लिए सेना-विभाग को लिखा। और कहा कि मैं उन सैनिकों को पहचान लूँगी। सेना-विभाग ने टालमटूल कर दिया। [ १५५ ]हबशियों के उत्थान के लिए स्थापित राष्ट्रीय संघ ने मिस यूनिंग और प्रतिभावान् हबशी लेखक डाक्टर डब्ल्यू॰ बी॰ ड्यू बोइस को इन अत्याचारों की जाँच-पड़ताल करने के लिए नियुक्त किया। इन दोनों ने जिन सच्ची बातों और चित्रों का संग्रह किया वे सत्र डाकर ड्य, वाइस के मासिक पत्र क्राइसिस के सितम्बर की संख्या में प्रकाशित किये गये। उनको पढ़ते समय एक रोमाञ्चकारी दृश्य स्त्रियों के सम्मुख उपस्थित हो जाता है। यहाँ जो वर्णन दिया जा रहा है वह इसी क्राइसिस के लेख से संक्षिप्त-रूप में लिया गया है।

क्राइसिस पत्रिका ने पूर्वी सेंट लुइस की इस दुर्घटना की तुलना जर्मन अत्याचारों के नाम से पुकारी जानेवाली दुर्घटनाओं से की है। और उसका कहना है कि 'सेंट लुइस के भयानक अत्याचारों के प्रारो जर्मन-अत्याचार कुछ नहीं के बराबर ठहरेंगे......जर्मनी के अत्याचारों के जितने वर्णन मिलते हैं, उनमें किसी में भी जर्मनी निवासियों पर यह अपराध नहीं लगाया गया कि वे जिन्हें सताते थे उनकी बेदना पर प्रसन्न भी होते थे। परन्तु ये अत्याचारी च्यापार और श्रानन्द दोनों एक साध चाहते हैं। सेंट लुइस के डाकपत्र के लेखक कार लोस एफ हर्ड भी इसका समर्थन करते हैं। उन्होंने अपने पत्र में अपनी आंखों देखी बात का वर्णन इस प्रकार किया है:-

"पूर्वी सेंट लुइस की दुर्घटना को जिस रूप में मैंने देखा है वह मुझे मनुष्यों का शिकार खेलने के समान प्रतीत हुआ है। यद्यपि वह उचित खेल के अतिरिक्त सब कुछ था। शिकार खेलने में भी एक सिद्धान्त होता है। इस शिकार-विनोद में कोई सिद्धान्त नहीं था। यह अत्याचार बड़ी कठोरता और भयङ्करता के साथ किया जा रहा था पर इसके चारों तरफ़ तमाशे का भाव भी था। लोगों की जिह्वा पर केवल यही एक शब्द था कि 'किसी हबशी को पकड़ो' इसमें परिवर्तन उपस्थित करनेवाला दुसरा शब्द यह था कि 'दूसरे को लाओ। प्राचीन रोम के विशाल विनोद-भवन में छुट्टी का आनन्द मनाने के लिए जो भीड़ इकट्ठी होती थी उसमें और इस भीड़ में केवल इतनी ही समता था कि इसमें चिल्लानेवाले ही शिकारी थे और बे ही बनैले पशु।"

यहाँ आपको अमरीकावासियो की युद्ध-पुकार और उत्तेजना-प्रियता का कुछ परिचय मिल सकता है। अमरीका के इन आततायियों की बुद्धि केवल [ १५६ ] कुछ चमत्कार दिखाना चाहती थी। अपने इस क्रोधपूर्ण खेल में वे केवल एक दूसरे से बाजी मारना चाहते थे। अमरीका में मानव-जीवन के सर्वथा यन्त्रमय हो जाने के कारण लोगों में आश्चर्यजनक घटनाओं और सनसनी उत्पन्न करनेवाले कामों में अधिक अभिरुचि है। और इसी कारण वहाँ भड़कीले पत्रों और केवल धन बटोरनेवाली मदर इंडिया जैसी पुस्तकों का अधिक प्रचार है। अमरीका के जन-समूहों को ऐसी मारकाट में बड़ा मज़ा आता है। केवल आनन्द के लिए ही उन्हें गोरा बनाम काला शीर्षक देने में सङ्कोच नहीं होता।

सेंट लुइस से डाक-पत्र लिखनेवाले ने अपनी आँखो-देखी कठोर कथा लिखते हुए एक स्थान पर निम्नलिखित वर्णन दिया है:-

"एक हबशी, जिसका सिर एक बड़ा पत्थर आ गिरने से खुल गया था, फोर्थ स्ट्रीट पर एक सङ्गमरमर की मूर्ति के पास घसीट कर ले जाया गया। उसके गले में एक छोटी सी रस्सी बांध दी गई। रस्सी निर्बल थी। इसलिए उस पर कुछ हास्य-पूर्ण टीका-टिप्पणी हुई। फिर उसे तार के खम्भे के ऊपर तार जाने के जो पतले लेाहे के उपड़े से लगे रहते हैं उन पर रस्सी फेंककर खींचा गया। कमजोर रस्सी होने के कारण इसका परिणाम क्या होगा यह सबको मालूम था। और सब उस दृश्य की परीक्षा कर रहे थे। रस्सी टूट गई। हबशी लड़खड़ाता हुअा अपने घुटनों के बल नीचे आ गिरा। और जो उसे खींच रहे थे उनमें से एक मनुष्य भी झटके से दूर जा पड़ा।

"एक बुड्ढा आदमी, जो ट्राम-गाड़ी चलानेवालों के समान टोपी दिये हुए था पर उसके पास कोई और बिल्ला नहीं था, इस कृति का प्रतिवाद करने के लिए अपने घर से बाहर निकला। उसने चिल्लाकर कहा-'उस मनुष्य को इस सड़क पर मत लटकाओ। यह दुस्साहस यहाँ मत करो।' पर लोगों ने क्रोध के साथ उसे हटा दिया और एक रस्सी, जो देखने में इस कार्य के लिए यथेष्ट बढ़ थी, लाई गई।

"ठीक इसी समय मैंने उस सन्ध्या का अत्यन्त हृदयविदारक दृश्य देखा। हबशी के गले में रस्सी छोड़ने के लिए हत्यारों में से एक ने उसकी पत्थर की चोट से खुली खोपड़ी में अपनी उँगली अटका कर उसके सिर को उठाया। और इस प्रकार उसके रक्क से अपना हाथ धोया।

"तिनके का टोप लगाये और काला कोट पहने एक दूसरे मनुष्य ने रस्सी-का दूसरा छोर पकड़ते हुए कहा-'पूर्वी सेट लुइस के नाम पर इस रस्सी को [ १५७ ] खींचिए।' रस्सी लम्बी थी, पर उसके खींचने में इतने हाथ लगे थे कि उनके लिए वह लम्बी नहीं थी। इस बार वह हवशी पृथ्वी से लगभग ७ फीट की उँचाई तक उठ गया। रस्सी खम्भे से बांध दी गई और उसका शरीर वहीं लटकता हुश्रा छोड़ दिया गया !"

क्राइसिस के लेखों में इसी प्रकार के अनेक हृदय-विदारक वर्णन आये हैं। ऐसे पाशविक अत्याचारों में स्त्रियां भी पीछे नहीं थीं। मिस्टर हर्ड लिखते हैं:-

"मैंने हवशी स्त्रियों को दया की भिक्षा माँगते हुए देखा। वे गिड़गिड़ाकर सतानेवाली गोरी स्त्रियों से प्रार्थना करती थीं कि हमने किसी का कुछ नहीं बिगाड़ा। पर ये गोरी स्त्रियां नीच प्रवृत्ति की थी। वे हँसती थीं और कठोर पुरुषों की भाँति उन पर टूटी पड़ती थीं। बेचारी हरशिनियों के मुंह पर और छाती पर धूसे, पत्थरों और डण्डों से मारती थीं। इनमें से एक स्त्री क्रोधावेश में एक हथियारबन्द नागरिक पर भी टूट पड़ी; क्योंकि वह एक हबशी स्त्री को बचाने की चेष्टा कर रहा था। यह गोरी महिला उस नागरिक की संगीन-युक्त बन्दूक छीनने के लिए उससे मल्ल-युद्ध करने लगी। इसी बीच में अन्य स्त्रियों ने उस शरणागता हबशी नारी पर आक्रमण कर दिया।

"उन स्त्रियों ने एक युवा हबशी नारी पर आक्रमण करते हुए चिल्ला कर कहा-'इसे हम स्त्रियों के हवाले करो।' वह विपत्ति में फँसी युबती जब करने लगी-'क्षमा कीजिए! क्षमा कीजिए! मैंने कोई अपराध नहीं किया।' तदा एक स्त्री ने उसके मुह में झाड़, की घुसेड़ कर उसे चुप कर दिया। दूसरी स्त्री ने उस हबशिन के हाथ पकड़ लिये। बस उसके मुँह पर झाड़ू, की मार पड़ने लगी। सबों ने मिलकर अपने नाखनों से उसके केश नाच लिये और कमर से उसके वस्त्र फाड़ डाले। तब कुछ मनुष्यों ने कहा-'अब हम लोगों को देखना चाहिए कि यह कितनी तेजी से दौड़ सकती है? स्त्रियों ने तब भी उसका पीटना कद नहीं किया है अब उसके मरने में थोड़ी सी कसर रह गई तब उन्होंने उसे छोड़ा। वह बेचारी पागल की भांति चिल्लाती हुई भाग गई।

"इस घटना के कुछ ही देर पश्चात् एक हबशी वृद्धा दो या तीन हथियारबन्द नागरिकों के साथ उसी मार्ग से निकली। ये स्त्रियाँ उस पर भी टूट पड़ी। जब सैनिकों में से एक ने उन्हें रोकने के लिए अपनी बन्दूक साधी तब झाड़ूवाली स्त्री ने दोनों हाथों से उसे पकड़ लिया और बन्दूक को उससे छीनने का प्रयत्न करने लगी। इसी बीच में दूसरी स्त्री ने दूसरे सैनिक के [ १५८ ] बन्दूक़ दिखाने और कुछ कुछ घायल कर देने पर भी उस वृद्धा को पीट डाला।"

एक स्त्री एक हबशी का 'कलेजा काटना' चाहती थी जो गोली के घाव से चित्त पड़ा था।

जय हबशियों को पीटते पीटते इन हिंसकों का जी भर गया तब उन्होंने इस काम के साथ आग लगाने का काम भी प्रारम्भ कर दिया। हबशियों को अपने घरों में जलते हुए या लपटों से निकलने की चेष्टा करते हुए देखने से हर एक को बड़ा मज़ा आता था। जो लपटों से निकल भी आता था उसे केवल भीड़ के हाथों पिटना पड़ता था। यहाँ भी स्त्रियों का हाथ था। 'जलते हुए घरों से जो हबशी स्त्रियां अपनी जान लेकर भागती थीं उनका के पीछा करती थीं। उनके जलते हुए कपड़ों की आग बुझाने के विचार से नहीं, यदि सम्भव हो तो उनकी पीड़ा को द्विगुणित करने के लिए। वे झुण्ड की झुण्ड चारों तरफ खड़ी थीं। भय और पीड़ा से व्याकुल हबशियों की अन्तिम तड़फन देख देखकर वे हँसती थीं और मुँह बनाती थीं। बेचारे हवशी अपने ही घर में अपना मांस पका चुकने के पश्चात् मरने के लिए घसिट घसिट कर सड़कों पर आते थे। डाक्टर ड्य बोइस और मिस ग्रनिग ने बहुत से लोगों के बयान लिखे जो अस्पताल में थे । जिन घायलों की उन्होंने परीक्षा की उनमें स्त्रियों की भी एक बड़ी संख्या थी। उनमें ७१ वर्ष की नरसिस गरली नामक एक वृद्धा भी थी और ईस्ट सेंट लुइस में ३० वर्ष भटियारिन और धोबिन का काम कर चुकी थी। उसने कहा कि वह मारे भय के अपने घर से तब तक नहीं हिली जब तक जलती हुई दीवालें उसके ऊपर गिर नहीं पड़ी। उसकी बहि भस्म हो गई थीं।

एडवर्ड स्पेंसर नामक एक हबशी मज़दूर जो पूर्वी सेंट लुइस में पाँच वर्ष रह चुका था, अपने ७ बेटों और एक स्त्री को पूर्वी सेंट लुइस के बाहर एक मित्र के यहाँ ले जा रहा था। मार्ग में वह एक गोरे के साथ जा रहा था; यह सोचकर कि वह गोरा उसका मित्र है। परन्तु जब वह इस गोरे के [ १५९ ] द्वार के पास से निकला तो इसी के द्वारा अपनी दोनों बांहों और पीठ में गोली से मारा गया।

स्थानाभाव के कारण पूर्वी सेंट लुइल की निदेय दुर्घटनाओं का वर्णन या उनके सम्बन्ध में वक्तव्य हम इससे अधिक नहीं उद्धृत कर सकते और न उनको संक्षेप में ही दे सकते हैं। क्राइसिस में जिन वास्तविक घटनाओं का वर्णन किया गया है उनके साथ ही पाठकों को अपनी कल्पना-द्वारा जो कुछ हुआ उसको स्पष्ट रूप से समझने के लिए निम्नलिखित मँजी हई सम्पादकीय टिप्पणी भी दे दी गई है।

"पहले एक भीड़ आती है जो कि सदैव एक भयानक वस्तु समझी जाती है। वह कायरता के साथ सड़कों पर इधर-उधर फिरती है। तब हबशी भागते हुए दिखाई पड़ते हैं। उनका शिकार किया जाता है। वे जीवन से निराश होते हैं। उसके पश्चात् कर चिल्लाहट सुनाई पड़ती है-'हबशी को पकड़ो।' गोलियों की वर्षा होती है। ईंट और पत्थर गिरते हैं। मांस-भक्षक गडासे चमकते हैं। निर्दय ज्वालाये' उटती हैं । और सर्वत्र लाश, रक्त, घृणा और भयङ्कर गर्व का साम्राज्य दिखाई पड़ता है।

"हमारे समस्त आखेट-सम्बन्धी गीत और वर्णन केवल आखेट करने वालों के गौरव से सम्बन्ध रखते हैं। शिकार खेलनेवाले उन दृश्यों को जैसा देखते हैं और अनुभव करते हैं वैसा ही वे उन्हें उपस्थित करते हैं। जिनका शिकार किया जाता है उनकी मनावृत्ति का, उनकी दशा का वर्णन किसी ने नहीं किया। पूर्वी सेंट लुइस के हबशियों ने संसार में इस विषय की जो कमी थी वह पूरी कर दी।"

इससे यह परिणाम न निकालना चाहिए कि इन दुखी प्राणियों के लिए पूर्वी सेंट लुइस की घटना सबसे निकृष्ट थी। तम्बाखू के कारखाने के एक मजदर ने, जिसे आततायियों ने डण्डों और ईटों से मारा था और जिसके सिर पर घाव का दाग पड़ गया था तथा बांहें टूट गई थी, अपने बयान में कहा कि:-

"मैं दक्षिण को कभी नहीं लौटूँगा। मुझे यहाँ चाहे जो हो जाय। क्योंकि दक्षिण में हमारे कुछ भाई सदैव ही मारे और जलाये जाते रहते हैं। मैं सेंट लुइस ही में रहूँगा।" [ १६० ]कितने ही अन्य आहतों ने भी यही निश्चय किया था। मिस ग्रूनिंग ने ६५ वर्ष की एक वृद्धा को देखा जो एक बिलकुल उजड़े हुए खँडहर में भटक रही थी। यह खँडहर पहले उसका घर था। बातचीत होने पर उस वृद्धा ने पूछा—'हम क्या करें? दक्षिण में हम लोग रह नहीं सकते और उत्तर में रहने नहीं पाते! हम क्या करें?'

हम समझते हैं कि उपरोक्त बातों से पाठकों को संयुक्त राज्य में हबशियों की समस्या का कुछ अनुमान हो गया होगा। इस समस्या से सम्बन्ध रखनेवाले दोनों दल गोरे और काले परिस्थिति की गम्भीरता से भली भांति परिचित हैं। गोरे स्वयं भी तीन भागों में बंटे हुए हैं। पहले भाग में वे लोग हैं जो हबशियों के विरुद्ध द्वेष-भाव रखने की घोर निन्दा करते हैं। दूसरे भाग में वे लोग हैं जो हबशियों के विरुद्ध द्वेष-भाव रखने की निन्दा तो करते हैं परन्तु कुछ कोमलता के साथ इसको बनाये रखना भी चाहते हैं। कारण यह बतलाते हैं कि गोरे और काले में इतना अन्तर है कि गोरे के लिए यह असम्भव है कि वह काले को अपने बराबर का समझे। ये लोग उच्च श्रेणी के अर्थात् शिक्षित और सभ्य हबशियों के पक्ष में अपनी राय दे सकते हैं। तीसरे भाग में वे लोग हैं जो केवल वर्ण-भेद के कारण हबशियों का विरोध करते हैं। और किसी दशा में भी उनके साथ कोई सामाजिक सम्बन्ध नहीं रखना चाहते। इस श्रेणी के मनुष्यों का यह विश्वास है कि किसी प्रकार की भी शिक्षा औद्योगिक, साहित्यिक या धार्मिक कितनी ही क्यों न दी जाय हबशी गोरा नहीं हो सकता, तथा उसके और गोरे आदमी के बीच में जो चौड़ी खाई है उस पर कभी पुल नहीं बांधा जा सकता।

हबशी अमरीका में हताश और स्वदेश से पृथक् किये गये व्यक्तियों के रूप में लाये गये थे। इस प्रकार लाये गये दास अपने देश और जाति बहिष्कृत तथा तिरस्कृत तो समझे ही गये उनको पराजित और पराधीन भी बनना पड़ा। अमरीका में दासता-काल में न तो उन्हें पढ़ने-लिखने की स्वाधीनता प्राप्त थी, न चलने-फिरने की, न परस्पर कोई सम्पर्क रखने की और न कहीं अनियन्त्रित रूप से एकत्रित होने की। साधारणतया जिन बातों से मनुष्य सभ्य बन सकता है वे सब उनसे दूर रक्खी गई। स्वामी के ऊपर अपने दास [ १६१ ] के साथ बर्ताव करने में किसी प्रकार का कानूनी या धर्माचरण-सम्बन्धी उत्तरदायित्व नहीं था। पुरुष या स्त्री सबके साथ वे समान बर्ताव करते थे। आज हबशियों की एक बड़ी संख्या अपने पूर्व के स्वामियों के अनीतिपूर्ण और नियम-विरुद्ध बर्तावों का जीवित प्रमाण है। दासता की प्रथा में हबशी अपने आत्म-सम्मान के अत्यन्त नीचे दबाये गये। काली स्त्री प्रायः अधगोरे बच्चे की माता बनने में कहीं अधिक महत्त्व समझती थी। गोरा स्वामी या ओवरसियर काली महिला पर बलात्कार करने में किसी प्रकार के कानूनी सामाजिक, या आत्मिक नियन्त्रण का अनुभव नहीं करता था। डीन मिलर कहते हैं इस देश में हबशी बलिदान के पशु हैं। वे गोरी जातियों के बोझा ढोनेवाले हैं। वे समाज के हीन-अङ्ग है और उन्हें उस निम्नस्थान की समस्त यातनायें भोगनी पड़ती हैं। ये अपनी स्थिति के समस्त दुःखी को सहते हैं और उन्हें उस स्थिति में पाप भी करने पड़ते हैं।'

एक दूसरे स्थान पर यही लेखक लिखता है:-

'इस देश में जितनी जाति के लोग रहते हैं या सैर के लिए आते हैं उन सबकी पाशविक वासनाओं को तृप्त करने के लिए हबशी महिलाएँ विवश की जाती हैं। इस नाम-मात्र की हबशी जाति की नसों में मनुष्य की प्रत्येक जाति या उपजाति का रक्त दौड़ रहा है। यह रक्त सम्मिश्रण समस्त जाति में ही नहीं, भिन्न भिन्न व्यक्तियों में भी पाया जाता है। और इस प्रकार मिश्रित हुआ है कि वह पृथक् नहीं किया जा सकता।'


  1. संयुक्त राज्य अमरीका; एक हिन्दू के अनुभव और अध्ययन। (द्वितीय संस्करण, कलकत्ता, १९१९) पृष्ठ ८८
  2. 'अमरीका की जातियों का उत्थान'
  3. ए॰ सीगफ्रीड-लिखित 'अमरीका कम्स आफ़ एज' जोनाथन केप, (१९२७) पृष्ठ ९९
  4. पृष्ठ ९८-९९
  5. ये संख्यायें शिकागो ट्रिव्यून से ली गई हैं। क्राइसिस (अगौर जातियों के राष्ट्र-संघ का मुखपत्र) का यह निश्चित विचार है कि ट्रिव्यून में ये संख्यायें बहुत घटा कर दी गई हैं।