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परीक्षा गुरु १६

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सुरा(शराब).
 


आपके घर के टुकडे़ खा-खा कर बड़े हुए थे वह दिन भूल गए?"

लाला मदनमोहन ने बाबू बैजनाथ की नेक सलाहों का बहुत उपकार माना और वह लाला मदनमोहन से रुखसत होकर अपने घर गए.


प्रकरण १६.

सुरा(शराब)

जेनिंदितकर्मंनडरहिं करहिंकाज शुभजान॥
रक्षैं मंत्र प्रमाद तज करहिं न ते मदपान॥*

विदुरनीति.

"अब तो यहां बैठे-बैठे जी उखताता है चलो कहीं बाहर चलकर दस-पांच दिन सैर कर आवें” लाला मदनमोहन ने कमरे में आकर कहा.

“मेरे मन में तो यह बात कई दिन से फिर रही थी परन्तु कहने का समय नहीं मिला” मास्टर शिंभूदयाल बोले.

"हुजूर! आजकल कुतब में बडी बहार आ रही है थोड़े दिन पहले एक छींटा हो गया था इससे चारों तरफ हरियाली छा गई. इस समय झरने की शोभा देखने लायक है" मुन्शी चुन्नीलाल कहने लगे.


  • अकार्य कारणा द्वौत: कार्याणांच विवर्जनात्॥

अकाले मंत्र भेदाच्च येनमाद्येन्नतत्पिबेत्॥

परीक्षा गुरु
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"आहा! वहां की शोभा का क्या पूछना है? आम के मौर की सुगंधी सब अमरैयें महक रही हैं. उनकी लहलही लताओं पर बैठकर कोयल कुहुकती रहती है. घनघोर वृक्षों की घटा सी छटा देखकर मोर नाचा करते हैं. नीचे झरना झरता है ऊपर बेल और लताओं के मिलने से तरह-तरह की रमणीक कुंजें और लता मंडप बन गये हैं. रंग-रंग के फूलों की बहार जुदी ही मन को लुभाती है. फूलों पर मदमाते भौरों की गुंजार और भी आनंद बढ़ाती है. शीतल मंद सुगन्धित हवा से मन अपने आप खिला जाता है. निर्मल सरोवरों के बीच बारहदरी में बैठकर चद्दर और फुहारों की शोभा देखने से जी कैसा हरा हो जाता है? वृद्ध की गहरी छाया में पत्थर के चट्टानों पर बैठकर यह बहार देखने से कैसा आनंद आता है?” पंडित पुरुषोत्तमदास ने कहा.

“पहाड़ की ऊंची चोटियों पर जाने से कुछ और विशेष चमत्कार दिखाई देता है जब वहां से नीचे की तरफ़ देखते हैं कहीं बर्फ, कहीं पत्थर की चट्टानें, कहीं बड़ी-बड़ी कंदराएँ, कहीं पानी बहनें के घाटों में कोसों तक वृक्षों की लंगतार, कहीं सूअर, रीछ और हिरनों के झुंड, कहीं ज़ोर से पानी का टकराकर छींट-छींट हो जाना और उन्हें सर्य की किरणों के पड़ने से रंग-रंग के प्रतिबिंबों का दिखाई देना, कहीं बादलों का पहाड़ से टकराकर अपने आप बरस जाना, बरसा की झड़ अपने आस पास बादलों का झूम-झूम कर घिर आना अति मनोहर दिखाई देता है” मास्टर शिंभूदयाल ने कहा.

“कुतब में ये बहार नहीं हो तो भी वो अपनी दिल्लगी के लिये बहुत अच्छी जगह है” मुन्शी चुन्नीलाल बोले.
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सुरा(शराब).
 

"रात को चांद अपनी चांदनी से सब जगत को रुपहरी बना देता है उस समय दरिया किनारे हरियाली के बीच मीठी तान कैसी प्यारी लगती है?” हकीम अहमदहुसैन ने कहा, “पानी की झरने की झनझनाहट, पक्षियों की चहचआहट, हवा की सनसनाहट, बाजे के सुरों से मिलकर गानेवाले की लय को चौगुना बढ़ा देते हैं. आहा! जिस समय यह समा आंख के सामने हो स्वर्ग का सुख तुच्छ मालूम देता है।"

"जिसमें यह बसंत ऋतु तो इसके लिये सबसे बढ़कर है" पंडितजी कहने लगे, नई कोपल, नये पत्ते, नई कली, नए फूलों से सज सजाकर वृक्ष ऐसे तैयार हो जाते हैं जैसे बुड्ढों में नए सिरे से जवानी आ जाये."

"निस्संदेह, वहां कुछ दिन रहना हो, सुख भोग की सब सामग्री मौजूद हो, और भीनी-भीनी रात में तालपुर के साथ किसी पिकबयनी की आवाज आकर कान में पड़े तो पूरा आनन्द मिले” मास्टर शिंभूदयाल नें कहा.

“शराब की चस बिना यह सब मज़ा फीका है” मुन्शी चुन्नीलाल बोले.

“इसमें कुछ संदेह नहीं” मास्टर शिंभूदयाल ने सहारा लगाया. "मन की चिन्ता मिटाने के लिये तो ये अक्सीर का गुण रखती है इसकी लहरों के चढ़ाव उतार में स्वर्ग का सुख तुच्छ मालूम होता है इसके जोश में बहादुरी बढ़ती है बनावट और छिपाव दूर हो जाता है हरेक काम में मन खूब लगता है."

"बस विशेष कुछ न कहो ऐसी बुरी चीज़ की तुम इतनी

तारीफ़ करते हो इसे मालूम होता है कि तुम इस समय भी
परीक्षागुरु.
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उसी के बसबर्ती ही रहे हो” बाबू बैजनाथ कहने लगे "मनुष्य बुद्धि के कारण और जीवों से उत्तम है फिर जिसके पान से बुद्धि में विकार हो, किसी काम के परिणाम की खबर न रहे, हरेक पदार्थ का रूप और से और जाना जाय. स्वेच्छाचार की हिम्मत हो काम क्रोधादि रिपु प्रबल हों, शरीर जर्जर हो यह कैसे अच्छी समझी जाय?

“यों तो गुणदोष से ख़ाली कोई चीज़ नहीं है परंतु थोड़ी शराब लेने से शरीर में बल और फुर्ती तो ज़रूर मालूम होती है” मुन्शी चुन्नीलाल ने कहा.

“पहले थोड़ी शराब पीने से निःसंदेह रुधिर की गति तेज़

होती है, नाड़ी बलवान होती है और शरीर में फुर्ती पाई जाती है परंतु पीछे उतनी शराब का कुछ असर नहीं मालूम होता इसलिये वह धीरे धीरे बढ़ानी पड़ती है. उसके पान किये बिना शरीर शिथिल हो जाता है, अन्न हजम नहीं होता. हाथ-पांव काम नहीं देते पर बढाने से बढते-बढते वो ही शराब प्राण घातक हो जाती है. डाक्टर पेरेरा लिखते हैं कि शराब से दिमाग और उदर आदि के अनेक रोग उत्पन्न होते हैं डाक्टर, कारपेंटर ने इस बाबत एक पुस्तक रची है जिसमें बहुत प्रसिद्ध डाक्टरों की राय से साबित किया है कि शराब से लकवा, मंदाग्नि, बाद, मूत्ररोग, चर्मरोग, फोड़ा-फुन्सी और कंपवायु आदि अनेक रोग उत्पन्न होते हैं, शराबियों की दुर्दशा प्रतिदिन देखी जाती है. कभी-कभी उनका शरीर सूखे काठ की तरह अपने आप भभक उठता है, दिमाग में गर्मी बढ़ने से बहुधा लोग बावले हो जाते हैं”
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सुरा(शराब).
 

"शराब में इतने दोष होते तो अंग्रेजों में शराब का इतना रिवाज हरगिज न पाया जाता” मास्टर शिंभूदयाल बोले.

"तुमको मालूम नहीं है. बलायत के सैकड़ों डाक्टरों ने इसके विपरीत राय दी है और वहां सुरापान निवारणी सभा के द्वारा बहुत लोग इसे छोड़ते जाते हैं परंतु वह छोड़ें तो क्या और न छोडे़ं तो क्या? इन्द्र के परस्त्री(अहिल्या) गमन से क्या वह काम अच्छा समझ लिया जायगा? अफसोस! हिन्दुस्तान में यह दुराचार दिन-दिन बढ़ता जाता है. यहां के बहुत से कुलीन युवा छिप-छिपकर इसमें शामिल होने लगे हैं पर जब इंग्लैंड जैसे ठंडे मुल्क में शराब पीने से लोगों की यह गत होती है तो न जानें हिन्दुस्थानियों का क्या परिणम होगा और देश की इस दुर्दशा पर कौन-से देश हितैषी की आंखों से आंसू न टपकेंगे”

“अब तो आप हद से आगे बढ चले" मुन्शी चुन्नीलाल ने कहा.

नहीं, हरगिज़ नहीं, मैं जो कुछ कहता हूं यथार्थ कहता हूं" देखो इसी मदिरा के कारण छप्पन कोटि यादवों का नाश घड़ी भर में हो गया. इसी मदिरा के कारण सिकंदर ने भरी जवानी में अपने प्राण खो दिये. मनुस्मृति में लिखा है “द्धिजघाती, मद्यप बहुरि चोर, गुरु,स्त्री मीत॥ महापात की है सोऊ जाकी इनसों प्रीति. इसी तरह कुरान में शराब के स्पर्श तक का महादोष लिखा है”

"आज तो बाबू साहब ने लाला ब्रजकिशोर की गद्दी दबा ली"

मुन्शी चुन्नीलाल ने मुस्कुर कर कहा.
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"राम-राम उन्का ढंग तो दुनिया से निराला है. वह क्या अपनी बात-चीत में किसी को एक अक्षर बोलने देते हैं” मास्टर शिंभूदयाल बोले.

"उनकी कहन क्या है आर्गन बाजा हैं. एक बार चाबी दे दी घंटों बजता रहा." मुन्शी चुन्नीलाल ने कहा.

"मैंने तो कल ही कह दिया था कि ऐसे फिलासफर विद्या संबंधी बातों में भले ही उपकारी हों संसारी बातों में तो किसी काम के नहीं होते" मास्टर शिंभूदयाल बोले.

"मुझको तो उनका मन भी कुछ अच्छा नहीं मालूम देता" लाला मदनमोहन आप ही बोल उठे.

“आप उनसे ज़रा हरकिशोर की बाबत बातचीत करेंगे तो रहा सहा भेद और खुल जायगा. देखें इस विषय में वह अपने भाई की तरफदारी करते हैं या इन्साफ़ पर रहते हैं” मुन्शी चुन्नीलाल ने पेंच से कहा.

“क्या कहें? हमारी आदत निन्दा करने की नहीं है. परसों शाम को लाला साहब मुझसे चांदनी चौक में मिले थे आंख की सैन मारकर कहने लगे आजकल तो बड़े गहरों में हो. हम पर भी थोड़ी कृपादृष्टि रखा करो” मास्टर शिंभूदयाल ने मदनमोहन का आशय जानते ही जड़ दी.

“हैं! तुमसे ये बात कही?” लाला मदनमोहन आश्चर्य से बोले.

“मुझसे तो सैकड़ों बार ऐसी नोंक-झोंक हो चुकी है. परंतु मैं कभी इन बातों का विचार नहीं करता।" मुन्शी चुन्नी

लाल ने मिलती में मिलाई.
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सुरा(शराब)
 

"जब वह मेरे पीछे मेरा ठट्टा उड़ाते हैं तो मेरे मित्र कहां रहे? जब तक वह मेरे कामों के लिये केवल मुझसे झगडते थे मुझ को कुछ विचार न था परंतु जब वह मेरे पासवालों को छेड़ने लगे तो मैं उनको अपना मित्र कभी नहीं समझ सकता" लाला मदनमोहन बोल उठे.

"सच तो यह है कि सब लोग आप की इस बरदाश्त पर बड़ा आश्चर्य करते हैं” मुंशी चुन्नीलाल ने अवसर पाकर बात आगे बढ़ाई.

"आपको लाला ब्रजकिशोर का इतना क्या दबाव है? उनसे आप इतने क्यों दबते हैं?” मास्टर शिंभूदयाल ने कहा.

“सच है मैं अपनी दौलत खर्च करता हूं इसमें उनकी गांठ का क्या जाता है? और वह बीच-बीच में बोलनेवाले कौन हैं?" लाला मदनमोहन तेज़ होकर कहने लगे.

“इस तरह हर बात में रोक-टोक होने से बात का गुमर नहीं रहता, नौकरों को मुकाबला करने का हौसला बढ़ता जाताह है और आगे चल कर काम-काज में फर्क आने की सूरत हो चली है” मुन्शी चुन्नीलाल ले बढ़ाने लगे.

"मैं अब उनसे हरगिज नहीं दूंगा. मैंने अब तक दब दबकर वृथा उनको सिर चढ़ा लिया" लाला मदनमोहन ने प्रतिज्ञा की.

"जो वह झरने के सरोवरों में अपना तैरना और तिबारी के ऊपर से कलामुंडी खा-खाकर कूदना देखेंगे तो फिर घंटों तक उनका राग काहे को बन्द होगा?” पंडित पुरुषोतमदास बड़ी देर से बोलने के लिये उमाह रहे थे वह झट-पट बोल उठे. "उन्का वहां चलनें का क्या काम है? उन्को चार दोस्तों मैं बैठ कर हंसनें बोलनें की आदतही नहीं है वह तो शाम सवेरे हवा खा लेते हैं और दिनभर अपनें काम मैं लगे रहते हैं या पुस्तकों के पत्रे उलट-पुलट किया करते हैं! वह संसारका सुख भोगनें के लिये पैदा नहीं हुए फिर उन्हें लेजाकर हम क्या अपना मज़ा मट्टी करैं?" लाला मदनमोहन ने कहा.

"बरसात मैं तो वहां झूलों की बड़ी बहार रहती है" हकीम अहमदहुसैन बोले.

"परन्तु यह ऋतु झूलों की नहीं है आज कल तो होली की बहार है" पंडित पुरुषोत्तमदास ने जवाब दिया.

"अच्छा फिर कब चलनें की ठैरी और मैं कितनें दिन की रुख़सत ले आऊं?" मास्टर शिंभूदयाल नें पूछा.

"वृथा देर करने सै क्या फ़ायदा है? चलनाही ठैरा तो कल सवेरे यहां सै चलदैंगे और कम सै कम दस बारह दिन वहां रहैंगे" लाला मदनमोहन ने जवाब दिया.

लाला मदनमोहन केवल सैर के लिये कुतब नहीं जाते ऊपर सै यह केवल सैर का बहाना करते हैं परन्तु इन्के जी मैं अब तक हरकिशोर की धमकी का खटका बन रहा है मुन्शी चुन्नीलाल और बाबू बैजनाथ वग़ैरै नें इन्को हिम्मत बंधानें मैं कसर नहीं रक्खी परन्तु इन्का मन कमज़ोर है इस्सै इन्की छाती अब तक नहीं ठुकती यह इस अवसर पर दस पांच दिन के लिये यहां सै टलजाना अच्छा समझते हैं इन्का मन आज दिन भर बेचैन रहा है इसलिये और कुछ फ़ायदा हो या न हो यह अपना मन बहलानें के लिये, अपनें मनसै यह डरावनें विचार दूर करनें के लिये
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स्वतन्त्रता और स्वेच्छाचार.
 


दस पांच दिन यहां से बाहर चले जाना अच्छा समझते हैं और इसी वास्ते ये झट-पट दिल्ली से बाहर जाने की तैयारी कर रहे हैं.


प्रकरण-१७

स्वतन्त्रता और स्वेच्छाचार.

जो कंहु सब प्राणीन सों होय सरलता भाव.
सब तीरथ अभिषेक ते ताको अधिक-प्रभाव+

विदुर विदुरप्रजागरे.

लाला मदनमोन कुतब जाने की तैयारी कर रहे थे इतने में लाला ब्रजकिशोर भी आ पहुंचे.

"आपने लाला हरकिशोर का कुछ हाल सुना?" ब्रजकिशोर के आते ही मदनमोहन ने पूछा.

"नहीं! मैं तो कचहरी से सीधा चला आया हूँ." फिर आप नित्य तो घर होकर आते थे आज सीधे कैसे चले आए?" मास्टर शिंभूदयाल ने संदेह प्रकट करके कहा.

"इसमें कुछ दोष हुआ? मुझको कचहरी में देर हो गयी थी इस वास्ते सीधा चला आया. तुम अपना मतलब कहो."


+ सर्वतीर्थेषु वा स्नानं सर्व भूतेषु चार्जवम्॥
उभे त्वेते सने स्याता मार्जवं वा विशिष्यते॥

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