परीक्षा गुरु २८

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प्रकरण २८.
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फूटका काला मुंह.

फूट गए हीरा की बिकानी कनी हाट, हाट॥
काहू घाट मोल काहू बाढ मोल कों लयो॥
टूट गई लंका फूट मिल्यो जो बिभीषण है॥
रावन समेत बंस आसमान को गयो॥
कहे कविगंग दुर्योधन सो छत्रधारी॥
तनक के फूटते गुमान वाको नै गयो।
फूटेते नर्द उठ जात बाजी चौपर की॥
आपस के फूटे कहु कौन को भलो भयो॥?॥

गंग.

थोडी देर पीछे मुन्शी चुन्नीलाल आ पहुंचा परन्तु उस्के चहरे का रंग उड़ रहा था लाज सै उस्की आंख ऊंची नहीं होती थी प्रथम तो उस्की सलाह सै मदनमोहन का काम बिगड़ा दूसरे उस्की कृतघ्नता पर ब्रजकिशोर नें उस्के साथ ऐसा उपकार किया इसलिये वह संकोच के मारे धरती मैं समाया जाता था.

"तुम इतनें क्यों लजाते हो? मैं तुम सै ज़रा भी अप्रसन्न नहीं हूं बल्कि किसी, किसी बात मैं तो मुझको अपनी ही मूल मालूम होती है मैं लाला मदनमोहनकी हरेक बातपर हदसै ज्यादाः ज़िद करनें लगता था परन्तु मेरी वह ज़िद अनुचित थी. हरेक मनुष्य अपनें बिचार का आप धनी है मैं चाहता हूं कि आगे को ऐसी सूरत न हो और हम सब एक चित्त होकर रहैं परन्तु मैनें [ २०३ ]तुम को इस्समय इस सलाह के लिये नहीं बुलाया इस विषय मैं तो जब तुम्हारी तरफ़ सै चाहना मालूम होगी देखा जायगा" लाला ब्रजकिशोर कहनें लगे "इस्समय तो मुझको तुम सै हीरालाल की नौकरी बावत सलाह करनी है यह बहुत दिन सै ख़ाली है और मुझको अपनें यहां इस्समय एक मुहर्रिर की जरूरत मालूम होती है तुम कहो तो इन्हें रख लूं?"

"इस्मैं मुझ सै क्या पूछते हैं? इसके लिये आप मालिक हैं" मुन्शी चुन्नीलाल कहनें लगा "मेरी तो इतनी ही प्रार्थना है कि आप "मेरी मूर्खता पर दृष्टि न करें अपनें बडप्पन का बिचार रक्खें. पहली बातों के याद करनें से मुझको अत्यन्त लज्जा आती है आप नें इस्समय लाला हीरालाल को नौकर रखकर मुझे मात कर दिया."

"मैं तुम को लज्जित करने के लिये यह बात नहीं कहता मैंनें अपनें मन का निज भाव तुम को इसलिये समझा दिया है कि तुम मुझे अपना शत्रु न समझो" लाला ब्रजकिशोर कहनें लगे "हिन्दुस्थान के सत्यानाश की जड प्रारम्भ सै यही फूट है इसी के कारण कौरव पांडवों का घोर युद्ध हुआ, इसी के कारण नन्द वंश की जड़ उखडी, पृथ्वीराज और जयचन्द की फूट सै हिन्दुस्थान मैं मुसलमानों का राज आया और मुसल्मानों का राज भी अन्त मैं इसी फूट के कारण गया. सौ सवा सौ बरस सै लेकर अबतक हिन्दुस्थानमैं कुछ ऐसे अप्रबन्ध, फूट और स्वेच्छाचारकी हवा चली कि बहुधा लोग आपस मैं कट मरे. साहूजी नें ईस्ट इन्डियन कंपनी को देवी कोटे का किला और ज़िला देकर उस्के द्वारा अपनें भाई प्रताप सिंह सै तंजोर का राज छीन लिया. [ २०४ ]बंगाल के सूबेदार सिराजुद्दौला सै अधिकार छीन्नें के लिये उस्के बखशी मीर जाफ़र और दीवान राय दुल्लभ आदि नें कंपनी को दक्षिण काल्पी तक की जमीदारी एक किरोड़ रुपया नक़द और कलकत्ते के अंग्रेजों को पचास लाख, फ़ौज को पचास लाख और और लोगों को चालीस लाख अनुमान देनें किये. जब मीर जाफ़र सूबेदार हुआ तब उस्सै अधिकार छीन्नें के लिये उस्के जँवाई क़ासम अलीखां नें कंपनी को बर्दवान मेदनीपुर, चट गांव के ज़िले, पांच लाख रुपे नक़्‌द, और कौन्सिल वालों को बीस लाख रुपे देनें किये. जब क़ासम अलीखां सूबेदार होगया और महसूल बाबत उस्का कंपनी सै बिगाड हुआ तब मीर जाफर नें कंपनी को तीस लाख रुपे नक़्‌द और बारह हज़ार सवार और बारह हजार पैदलों का खर्च देकर फिर अपना अधिकार जमा लिया. उधर अवध का सूबेदार शुजाउद्दौला कंपनी को चालीस लाख रुपे नक़्‌द और लड़ाई का खर्च देना करके उस्की फ़ौज रुहेलों पर चढा लेगया. दखन मैं बालाजी राव पेशवा के मरते ही पेशवाओं के घरानें मैं फूट पडी दो थोक होगए. अब तक पंजाब बच रहा था रणजीतसिंह की उन्नत्ति होती जाती थी परन्तु रणजीतसिंह के मरते ही वहां फूटनें ऐसे पांव फैलाए कि पहले सब झगड़ों को मात कर दिया. राजा ध्यानसिंह मन्त्री और उस्के बेटे हीरासिंह आदि की स्वार्थपरता, लहनासिंह और अजीतसिंह सिंधां वालों का छल अर्थात् कुंवर शेरसिंह और राजा ध्यानसिंहके जी मैं एक दूसरे, की तरफ सै सन्देह डालकर बिरोध बढ़ाना, और अन्त में दोनों के प्राण लेना राजकुमार खड़गसिंह उस्का बेटा नोनिहालसिंह [ २०५ ]राजकुमार शेरसिंह उस्का बेटा प्रतापसिंह आदिकी अन्‌समझी सै आपस मैं वह कटमकटा हुई कि पांच बरस के भीतर भीतर उस्के बंश मैं सिवाय दिलीपसिंह नामी एक बालक के कोई न रहा और उस्का राज भी कंपनी के राज मैं मिलगया. किसी नें सच कहा है, "अल्पसार हू बहुत मिल करैं बड़ो सो जोर॥ जों गजको बंधन करे तृणकी निर्मित डोर॥" +[१] इसलिये मैं आपस की फूटको सर्वथा अच्छी नहीं समझता तुम मेरे पास सै गए थे इसलिये मुझ को तुह्मारे कामों पर विशेष दृष्टि रखनी पड़ती थी परन्तु तुम अपनें जीमैं कुछ और ही समझते रहे. चलो खैर! अब इन बातों की चर्चा करनें से क्या लाभ है"

"आप यह क्या कहते हैं? आप मेरे बड़े हैं मैं आप का बरताव और तरह कैसे समझ सका था?" चुन्नी लाल कहनें लगा "आप नें बचपन सै मेरा पालन किया, मुझ को पढ़ा लिखा कर आदमी बनाया इस्सै बढ़ कर कोई क्या उपकार करेगा? मैं अच्छी तरह जान्ता हूं कि आप नें मुझ सै जो कुछ भला बुरा कहा; मेरी भलाई के लिये कहा. क्या मैं इतना भी नहीं जान्ता कि दंगा करनें सै मां अपनें बालक को मारती है दूसरे सै कुछ नहीं कहती यदि आप को हमारे प्रतिपालन की चिन्ता मन सै न होती तो ऐसे कठिन समय मैं लाला हीरा लाल को घर सै बुला कर क्यों नौकर रखते?"

"भाई! अब तो तुम नें वही खुशामद की लच्छेदार बातैं छेड़ दीं" लाला ब्रजकिशोर ने हँस कर कहा. [ २०६ ]"आप के जी मैं मेरी तरफ का संदेह हो रहा है इस्सै आप को ऐसा ही भ्यासता होगा परन्तु इन्मैं सै कौन्सी बात आप को खुशामद की मालूम हुई?"

"मनुस्मृति मैं कहा है "आकृति, चेष्टा, भाव, गति, बचन . रीति, अनुमान॥ नैन सेन, मुखकांति लख मन की रुचि पहिचान॥ [२]‡" लाला ब्रजकिशोर कहनें लगे "तुम कहते हो कि "आप नें जो कुछ भला बुरा कहा मेरी भलाई के लिये कहा" परन्तु उस्समय तुम यह सर्वथा नहीं समझते थे तुम्हारे कामों सै यह स्पष्ट जाना जाता था कि तुम मेरी बातोंसै अप्रसन्न हो और तुह्मारा अप्रसन्न होना अनुचित न था क्योंकि मेरी बातों सै तुह्मारा नुक्सान होता था मुझको इस्बातका पीछै बिचार आया मुझको इस्समय इन बातों के जतानें की ज़रूरत न थी परन्तु मैंने इसलिये जतादी कि मैं भी सच झूंट को पहचान्ता हूं सचाई बिना मुझ सै सफाई न होगी"

"आप की मेरी सफाई क्या? सफाई और बिगाड बराबर वालों मैं हुआ करता है, आप तो मेरे प्रतिपालक हैं आप की बराबरी मैं कैसे कर सकता हूं?" मुन्‌शी चुन्नीलाल नें गंभीरता सै कहा.

यह तो बहानें साजी की बातैं हैं सफाई के ढंग और ही हुआ करते हैं मुझको तुम्हारा सब भेद मालूम है परन्तु तुमनें अबतक कौन्सी बात खुल के कही?" लाला ब्रजकिशोर कहनें लगे "मैं पूछता हूं कि तुमनें मदनमोहन के यहां सै सिवाय तन[ २०७ ]ख्वाह के और कुछ नहीं लिया तो तुम्हारे पास आठ दस हज़ार रुपे कहां से आगए? मिस्टर ब्राइट इत्यादि सै तुम जो कमीशन लेते हो उस्का हाल मैं उन्के मुख से सुन चुका हूँ तुम्हारी और शिंभूदयाल की हिस्सा पत्ती का हाल मुझे अच्छी तरह मालूम है. हरकिशोर और निहालचन्द गली, गली तुम्हारी धूल उड़ाते फिरते हैं. मैं नहीं जान्ता कि जब इस्की चर्चा अदालत तक पहुंचेगी तो तुम्हारे लिये क्या परिणाम होगा? मैंनें केवल तुम सै सलाह करने के लिये यह चर्चा छेड़ी थी परन्तु तुम इस्के छिपानें मैं अपनी सब अकलमंदी ख़र्च करने लगे तो मुझको पूछनें सै क्या प्रयोजन है? जो कुछ होना होगा समय पर अपनें आप हो रहैगा"

"आप क्रोध न करैं मैंने हर काम मैं आप को अपना मालिक और प्रतिपालक समझ रक्खा है मेरी भूल क्षमा करें और मुझको इस्समय सै अपना सच्चा सेवक समझते रहैं" मुन्शी चुन्नीलाल नें कुछ, कुछ डरकर कहा "आप जान्ते हैं कि कुन्बे का बड़ा ख़र्च है इस्के वास्तै मनुष्य को हज़ार तरह के झूंट सच बोलनें पड़ते हैं (वृन्द) "उदर भरन के कारनें प्राणी करत इलाज॥ नाचे, बांचे, रणभिरे, राचे काज अकाज॥"

"संसार की यही रीति है. प्रसंग रत्नावली मैं लिखा है "ज्ञान बृद्ध तपबृद्ध अरु बयके बृद्ध सुजान॥ धनवानन के द्वार को सेवैं भृत्य समान॥+[३]" लाला ब्रजकिशोर कहनें लगे "तुमको मेरी एकाएक राय पलटनेंका आश्चर्य होगा परन्तु आश्चर्य न करो. जिस [ २०८ ]तरह शतरंज मैं एक, एक चाल चलनेंसै बाज़ीका नक्‌शा पलटता जाता है इसी तरह संसार मैं हरेक बात मैं काम काज की रीति भांति बदलती रहती है अबतक यह समझता था कि मुझको मदनमोहनसै अवश्य इन्साफ मिलेगा परंतु वह समय निकल गया अब मैं फ़ायदा उठाऊं या न उठाऊं मदनमोहन को फ़ायदा पहुंचाना सहज नहीं. मेरा हाल तुम अच्छी तरह जान्ते हो मैं केवल अपनी हिम्मत के सहारे सब तरह का दुःख झेल रहा हूँ परन्तु मेरे कर्तव्य काम मुझको ज़रा भी नहीं उभरने देते. कहते हैं कि अत्यंत बिपत्तिकाल मैं महर्षि बिश्वामित्र ने भी चंडाल के घर सै कुत्ते का मांस चुराया था! फिर मैं क्या करूं? क्या न करूं कुछ बुद्धि काम नहीं करती"

"समय बीते पीछै आप इन सब बातों की याद करते हैं अब तो जो होना था हो चुका यदि आप पहले इन बातों को बिचार करते तो केबल आप को ही नहीं आप के कारण हम लोगों को भी बहुत कुछ फ़ायदा हो जाता"

"तुम अपने फ़ायदे के लिये तो बृथा खेद करते हो!" लाला ब्रजकिशोर ने हंस कर जवाब दिया "अलबत्ता मैं मदनमोहन सै साफ़ जवाब पाए बिना कुछ नहीं कर सक्ता था क्योंकि मुझ को प्रतिज्ञा भग करना मंजूर न था क्या तुम को मेरी तरफ सै अब तक कुछ संदेह है?"

"जी नहीं, आप की तरफ़ का तो मुझ को कुछ संदेह नहीं है परन्तु इतना ही विचार है कि खल मैं सै तेल आप किस तरह निकालैंगे!" मुन्शी चुन्नीलाल ने जीमैं संदेह कर के कहा. [ २०९ ]

"इस्की चिन्ता नहीं, ऐसे काम के लिये लोग यह समय बहुत अच्छा समझते हैं"

"बहुत अच्छा? अब मैं जाता हूं परन्तु—" मुन्शी चुन्नीलाल कहते, कहते रुक गया.

"परन्तु क्या? स्पष्ट कहो, मैं जान्ता हूं कि तुम्हारे मन का संदेह अब तक नहीं गया. तुम्हारी हज़ार बार राज़ी हो तो तुम सफ़ाई करो नहीं तो न करो अभी कुछ नहीं बिगड़ा मेरा कौन्सा काम अटक रहा है? तुम अपना नफा नुक्सान आप समझ सक्ते हो"

"आप अप्रसन्न न हों, मुझको आपपर पूरा भरोसा है मैं इस कठिन समय मैं केवल आप पर अपनें निस्तार का आधार समझता हूँ मेरी लायकी, नालायकी मेरे कामों सै आप को मालूम हो जायगी परंतु मेरी इतनीही बिनती है कि आप भी जरा नरम ही रहैं इन्को बातों मैं बढ़ावा देकर इन्सै सब तरह का काम ले सक्ते हैं परतु इन पर एतराज़ करनें सै यह चिड़ जाते हैं. कल के झगड़े के कारण आजके तक़ाज़े का सन्देह इन्को आप पर हुआ है परन्तु अब मैं जाते ही मिटा दूंगा" मुंशी चुन्नीलाल ने बात पलटकर कहा और उठकर जानें लगा.

"तुम किया चाहोगे तो सफ़ाई होनी कौन कठिन है? (वृन्द) प्रेरक ही ते होत है कारज सिद्ध निदान॥ चढ़े धनुष हू ना चले बिना चलाए बान॥ १ सुजन बीच पर दुहुनको हरत कलह रस पूर॥ करत देहरी दीप जों घर आंगन तम दूर॥ २" यह कहकर लाला ब्रजकिशोर ने चुन्नीलाल को रुखसत किया.

चुन्नीलाल के चित्त पर ब्रजकिशोर की कहन और हीरालाल [ २१० ]की नौकरी सै बड़ा असर हुआ था परन्तु अबतक ब्रजकिशोर की तरफ सै उस्का मन पूरा साफ़ न था. यह बातें ब्रजकिशोर के स्वभाव सै इतनी उल्टी थीं कि ब्रजकिशोर के इतने समझाने पर भी चुन्नीलाल का मन न भरा. वह सन्देह के झूले मैं झोटे खारहा था और बड़ा विचार करके उस्नें यह युक्ति सोची थी कि "कुछ दिन दोनों को दम मैं रक्खूं, ब्रजकिशोर को मदनमोहन की सफ़ाई की उम्मेद पर ललचाता रहूं और इस काम की कठिनाई दिखा, दिखाकर अपना उपकार जताता रहूं. मदनमोहन को अदालत के मुकद्दमों मैं ब्रजकिशोर से मदद लेने की पट्टी पढाऊं पर बेपरवाई जतानें के बहाने सै दोनों मैं परस्पर काम की बात खुल कर न होनें दूं जिस्मैं दोनों का मिलाप होता रहै उन्के चित्त को धैर्य मिलनें के लिये सफाई के आसार, शिष्टाचार की बातें दिन, दिन बढ़ती जायं परन्तु चित्त की सफाई न होनें पाए, और दोनों की कुंजी मेरे हाथ रहै."

ब्रजकिशोर चुन्नीलाल की मुखचर्या सै उस्के मन की धुकड़ पुकड़ पहचान्ता था इसलिये उस्नें जाती बार हीरालाल के भेजनें की ताकीद कर दी थी वह जान्ता था कि हीरालाल बेरोज़गारी सै तंग है वह अपनें स्वार्थ सै चुन्नीलाल को सच्ची सफ़ाई के लिये बिवस करेगा और उस्की ज़िद के आगे चुन्नीलाल की कुछ न चलेगी. निदान ऐसाही हुआ. हीरालाल नें ब्रजकिशोर की सावधानी दिखाकर चुन्नीलाल को बनावट के बिचार सै अलग रक्खा, ब्रजकिशोर की प्रामाणिकता दिखाकर उसै ब्रजकिशोर से सफाई रखनें के वास्तै पक्का किया, मदनमोहन के काम बिगडनें की सूरत बताकर आगे को ब्रजकिशोर का ठिकाना बनानें की [ २११ ]सलाह दी और समझाकर कहा कि "एक ठिकानें पर बैठे हुए दस ठिकानें हाथ आ सक्ते हैं जैसे एक दिया जल्ता हो तो उस्सै दस दिये जल सक्ते हैं परंतु जब यह ठिकाना जाता रहैगा तो कहीं ठिकाना न लगेगा" अदालत मैं मदनमोहन पर नालिश होनें सै चुन्नीलालके भेद खुलनें का भय दिखाया और अन्त मैं ब्रजकिशोर सै चुन्नीलाल नें सच्ची सफाई न की तो हीरालाल ने आप ब्रजकिशोर के साथ होकर चुन्नीलाल की चोरी साबित करने की धमकी दी और इन बातौं सै परवस होकर चुन्नीलाल को ब्रजकिशोर सै मन की सफाई रखनें के लिये दृढ़ प्रतिज्ञा करनी पड़ी.

परन्तु आज ब्रजकिशोर की वह सफाई और सचाई कहां है? हरकिशोर का कहना इस्समय क्या झूंट है? इस्के आचरण सै इस्को धर्मात्मा कोन बता सकता है? और जब ऐसे खर्तल मनुष्यका अन्तमैं यह भेद खुला तो संसार मैं धर्मात्मा किस्को कह सक्ते हैं? काम, क्रोध, लोभ, मोह का बेग कौन रोक सक्ता है? परन्तु ठैरो! जिस मनुष्य के ज़ाहिरी बरताव पर हम इतना धोका खा गए कि सवेरे तक उस्को मदनमोहन का सच्चा मित्र समझते रहे हर जगह उस्की सावधानी, योग्यता, चित्त की सफाई, और धर्मप्रवृत्ति की बड़ाई करते रहे उस्के चित्त मैं और कितनी बातें गुप्त होंगी यह बात सिवाय परमेश्वर के और कौन जान सक्ता है? और निश्चय जानें बिना हमलोगों को पक्की राय लगानें का क्या अधिकार है?


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  1. + वह्‌नामल्प साराणां समवायोहि दुर्जयः॥
    तृस्मै र्विधीयते रज्जुर्बध्यन्ते दन्तिनरतया॥

  2. ‡ आकारै रिङगितैर्गत्या चेष्टया भाषितेन च॥
    नेत्रवक्‌त्र विकारश्च गृह्मतेन्त र्गतम्मनः॥

  3. + वयोवृद्धास्तपोवृद्धा ज्ञानवृद्धा स्तथापरे॥
    तेसर्वे धनवृद्धस्य हारि तिष्टंति किंकराः