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परीक्षा गुरु ३२

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प्रकरण ३२.


अदालत.

काम परेही जानिये जो नर जैसो होय॥
बिन ताये खोटो खरो गहनों लखै न कोय॥

बृन्द.

अदालत हाकिम कुर्सीपर बैठे इज्‌लास कर रहे हैं. सब अहलकार अपनी, अपनी जगह बैठे हैं निहालचंद मोदी का मुकद्दमा हो रहा है उस्की तरफ़ सै लतीफ़ हुसैन वकील हैं. मदनमोहनकी तरफ सै लाला ब्रजकिशोर जवाबदिही करते हैं. ब्रजकिशोर नें बचपन मैं मदनमोहन के हां बैठकर हिंदी पढ़ी थी इस वास्तै वह सराफी कागज की रीति भांति अच्छी तरह जान्ता था और उस्नें मुकद्दमा छिड़नें सै पहले मामूली फ़ीस देकर निहालचंद के बही खाते अच्छी तरह देख लिए थे. इस मुकद्दमें मैं कानूनी बहस कुछ न थी केवल लेन देनका मामला था.

ब्रजकिशोर नें निहालचंदको गवाह ठैराकर उस्सै जिरहके सवाल पूछनें शुरू किये "तुम्हारा लेन देन रुक्के पर्चों से है!"

जवाब "नहीं"

"तो तुम किस तरह लेन देन रखते हो?

ज॰ "नोकरों की मारफत"

"तुमको कैसे मालूम होता है कि यह आदमी लाला मदनमोहन की तरफ सै माल लेनें आया है और उन्हींके हां ले जायगा!" “हम यह नहीं जान सक्ते परंतु लाला साहब का हुक्म है कि वह लोग जो, जो सामान मांगें तत्काल दे दिया करो”

“अच्छा? वह हुक्म दिखाओ!”

ज० “वह हुक्म लिखकर नहीं दिया था जवानी है”

“अच्छा! वह हुक्म किस्के आगे दिया था―?” किस किसके लिये दिया था!” “कितनें दिन हुए?”-“!“कौन्सा समय था?” “कौन्सी जगह थी?” “क्या कहा था?”

“बहुत दिनकी बात है मुझको अच्छी तरह याद नहीं”

“अच्छा? जितनी बात याद हो वही बतलाओ?”

ज० “मैं इस्समय कुछ नहीं कह सक्ता”

“तो क्या किसीसै पूछकर कहोगे?”

ज० “जी नहीं याद करके कहुंगा”

“अच्छा! तुम्हारा हिसाब होकर बीच मैं बाकी निकल चुकी है?

ज० “नहीं”

“तो तुमनें सालकी साल बाक़ी निकालकर ब्याजपर व्याज कैसे लगा लिया?”

“साहूकारेका दस्तूर यही है,”

“साहूकारेमैं, तो सालकी साल हिसाब होकर ब्याज लगाया जाता है फिर तुमनें हिसाब क्यों नहीं किया?”

ज० “अवकाश नहीं मिला।”

“तुम्हारी बहियोंमैं उदत खाते से क्या मतलब है?”

“लाला मदनमोहनके लेन देन सिवाय आप और किसी खातेका सवाल न करें” निहालचंदके वकीलनें कहा. "मुझको इस सै लाला मदनमोहन के लेन देनका विशेष संबंध मालूम होता है इसी सै मैंने यह सवाल किया है” लाला ब्रजकिशोरनें जवाब दिया और परिणाम मैं हाकिम के हुक्म सै यह सवालपूछा गया.

“जो रक़में बही खाते मैं हिसाब पक्का करके लिखी जानेंके लायक होती हैं और तत्काल उन्का हिसाब पक्का नहीं हो सक्ता वह रक़में हिसाबकी सफाई होनें तक इस खाते मैं रहती हैं और सफाई होनें पर जहांकी तहां चली जाती हैं” निहालचंदनें जवाब दिया.

“अच्छा! तुम्हारे हां जिन मितियों मैं बहुत करके लाला मदनमोहन के नाम बड़ी, बड़ी रक़में लिखी गई हैं उनहीं मितियों मैं उद्रत खाते कुछ रक़म जमा की गई है और फिर कुछ दिन पीछे उदरत खाते नाम लिखकर वह रक़में लोगोंको हाथों हाथ दे दी गई हैं या उन्के खाते मैं जमा कर दी गई हैं इस्का क्या सबब है?” लाला ब्रजकिशोरनें पूछा।

“मैं पहले कह चुका हूं कि जिन लोगों की रक़में अलल हिसाब आती जाती हैं या जिन्का लेन देन थोड़े दिनके वास्तै हुआ करता है उनकी रक़म कुछ दिनके लिये इस तरह पर उद्रत खाते मैं रहती है परंतु मैं किसी ख़ास रक़मका हाल बही देखे बिना नहीं बता सक्ता" निहालचंदनें जवाब दिया।

"और यह भी ज़रूर है कि जिस दिन लाला मदनमोहन का काम पड़े उस दिनकी यह काररवाई अयोग्य समझी जाय?” निहालचंदके वकीलनें कहा.

“तो ये क्या ज़रूर है कि जिस मितीमैं लाला मदनमोहनके नाम बड़ी रकम लिखी जाय उसी मितीमैं कुछ रकम उदरत खाते जमा हो और थोड़े दिन पीछै वह रकम जैसीकी तैसी लोगों को बांट दी जाय?" लालाब्रजकिशोरनें जवाब दिया।

"देखो जी! इस मुकद्दमेमैं किसी तरह का फ़रेब साबित होगा तो हम उसै तत्काल फ़ौजदारी सुपुर्द कर देंगे" हाकिमनें संदेह करके कहा.

"हजूर हमको एक दिनकी मुहलत मिल जाय हम इन सब बातोंके लिये लाला ब्रजकिशोर साहबकी दिलजमई अच्छी तरह कर देगें" निहालचंदके वकीलनें हाकिम सै अर्ज की और ब्रजकिशोरनें इस बातको खुशी सै मंजूर किया.

उदरत खाते सै लाला मदनमोहनके नोकरों की कमीशन वगैरे का हाल खुल्ता था जहां रकम जमा थी किस्सै आई? किस बाबत आई इसका कुछ पता न था परंतु जहां रकम दी गई मदनमोहनके नोकरोंका अलग, अलग नाम लिखा था और हिसाब लगानें सै उसका भेद भाव अच्छी तरह मिल सका था। जिन नोकरोंके खाते थे उन्के खातोंमैं यह रकमें जमा हुईं थीं और कानूनके अनुसार ऐसे मामलों में रिश्वत लेनें देनें वाले दोनों अपराधी थे परंतु ब्रजकिशोरके मनमैं इन्के फंसाने की इच्छा न थी वह केवल नमूना दिखाकर लेनदारों की हिम्मत घटाया चाहता था. उस्नें ऐसी लपेटसैं सवाल किये थे कि हाकिम को भारी न लगे और लेनदारोंके चित्तमैं गढ़ जांय सो ब्रजकिशोर की इतनी ही पकडसै बहुतसे लेनदारोंके छक्के छूट गए।

कितनें ही छिपे लुच्चे मदनमोहनकी बेखरची और कागजका अंधेर, लेनदारोंका हुल्लड, मुकद्दमोंके झटपट हो जानेकी उम्मेद मदनमोहनके नोकरोंकी स्वार्थपरता के भरोसे पर कुछ कुछ बढ़ाकर दावे कर बैठे थे यह सूरत देखतेही उन्के पांव तलेकी जमीन निकल गई। मिस्टर ब्राइट की कुर्की मैं सब माल अस्बाबके कुर्क हो जाने सै लेनदारोंको अपनी रकमके पटनेका संदेह तो पहलेही हो गया था. अब किसी तरहकी लपेट आजानें पर अपनी इज्जत खो बैठनेका डर मालुम होनें लगा “नमाजको गए थे रोजे गले पड़े”।

सिवायमैं यह चर्च सुनाई दी कि मदनमोहन को और, और दिसावरोंका बहुत देना है यदि सब माल जायदाद नीलाम होकर हिस्सै रसदी सब लेनदारोंको दिया गया तो भी बहुत थोड़ी रकम पल्ले पड़ेगी, ब्रजकिशोरसै लोग इस्का हाल पूछते थे तब वह अजान बन्कर अलग हो जाता था इस्सै लोगोंकी और भी छाती बैठी जाती थी जिस्तरह पलभरमैं मदनमोहनके दिवालेकी चर्चा चारों तरफ फैल गई थी इसी तरह अब यह सब बातें अफवाकी जहरी हवामैं मिलकर चारों तरफ उड़ने लगीं।

मोदीके मुकद्दमें सिवाय आज कोई पेचदार मुकद्दमा अदालतमैं न हुआ जिन्के मुकदमोंमैं आजकी तारीख लगी थी उन्ने भी निहालचंदके मुकद्दमें का परिणाम देखनेके लिये अपने मुकद्दमें एक, एक दो, दो दिन आगे बढ़वा दिये।

जब इस कामसै अवकाश मिला तो लाला ब्रजकिशोरने अदालतसै अर्ज करके मिस्टर रसलकी जायदाद नीलाम होनेंकी तारीख आगे बढ़वा दी परंतु यह बारा ऐसी सीधी थी कि इस्के लिये कुछ विशेष परिश्रम न उठाना पड़ा।

लाला ब्रजकिशोर की चाल देखकर बड़ा आश्चर्य होता है। सब लेनदार चारों तरफसै निराश होकर उस्के पास आते हैं परंतु वह आप उस्सै अधिक निराश मालूम होता है वह उन्के साथ बड़ी बेपरवाई सै बातचीत करता है उन्को हर तरहके चढ़ाव उतार दिखाता है जब वह लोग अपना पीछा छुटानें के लिये उस्सै बहुत आधीनता करते हैं तो वह बड़ी बेपरवाईसै उन्के साथ लगाव की बात करता है परन्तु जब वह किसी बात पर जमते हैं तो वह आप कच्चा पक्का होने लगता है उल्टी सीधी बात करके अपनी बातसै निकला चाहता है और जब कोई बात मंजूर करता है तो बड़ी आनाकानीसै ज़बान निकलनें के कारण उस्को यह बोझ उठाना पड़ता हो ऐसा रूप दिखाई देता है। कचहरी से लौटती बार उस्ने घंटे डेढ घंटे मिस्टर ब्राइटसै एकांतमैं बातचीत की! अदालतके कामोंमें उस्का वैसाही उद्योग दिखाई देता है परंतु दरअसल वह किसी अत्यंत कठिन काममैं लग रहा हो ऐसा ढंग मालूम होता है उस्के पहले सब काम नियमानुसार दिखाई देते थे परंतु इस समय कुछ क्रम नहीं रहा इस्समय उस्के सब काम परस्पर बिपरीत दिखाई देते हैं इसलिये उस्का निज भाव पहचान्ना बहुत कठिन है परंतु हम केवल इतनी बातपर संतोष बांध बैठे हैं कि जब उस्की कार्‌रवाईका परिणाम प्रकट हो जायगा तो वह अपना भाव सर्व साधारण की दृष्टिसे कैसे गुप्त रख सकेगा?


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