परीक्षा गुरु ४०

विकिस्रोत से
[ २९२ ]
प्रकरण ४०.

________

सुधरने की रीति.

कठिन कलाहू आाय है करत करत अभ्यास॥

नट ज्यों चालतु बरत पर साधे बरस छमास॥
वृद.
 

लाला मदनमोहन बड़े आश्चर्य मै थे कि यह क्या भेद है। जगजीवनदास यहां इस्समय कहां सै आए? और आए भी तो उन्के कहनें सै पुलिस कैसे मान गई! क्या उन्हों नें मुझको हवालात सै छुडानें के लिये कुछ उपाय किया? नहीं उपाय करनें का समय अब कहां है? और आते तो अब तक मुझसै मिले बिना कैसे रह जाते?

इतनें मैं दूर सैं एका एक प्रकाश दिखाई दिया और लाला ब्रजकिशोर पास आ खड़े हुए

“हैं! आप इस्समय यहां कहां! मैंनें तो समझा था कि आप अपनें मकान मैं आराम सै सोते होंगे" लाला मदनमोहन नें कहा.

"यह मेरा मन्द भाग्य है जो आप ऐसा समझते हैं क्या मुझ को भी आपनें उन्हीं लोगों मैं गिन लिया?" लाला ब्रजकिशोर बोले.

"नहीं, मैं आप को सच्चा मित्र समझता हूं परन्तु समय आए बिना फल नहीं होता" [ २९३ ]"यदि यह बात आपनें आपनें मन सै कही है तो मेरे लिये भी आप वैसाही धोका खाते हैं जैसा औरोंके लिये खाते थे। मैं पहले कहचुका हूं कि मनुष्य का स्वभाव उसकी बातों सै नहीं मालूम होता उस्के कामों सै मालूम होता है फिर आपनें मुझको किस्तरह सच्चा मित्र समझ लिया?” लाला ब्रजकिशोर पूछनें लगे. “मैंनें आपके मुकद्दमों में पैरवी की जिस्के बदले भर पेट महन्ताना ले लिया यदि आपके निकट उन्के मेरे चाल चलन मैं कुछ अन्तर हो तो इतना ही होसक्ता है कि वह कच्चे खिलाडी थे जरा सी हल चल होते ही भग निकले मैं अपना फायदा समझ कर अब तक ठैरा रहा"

"जो लोग फ़ायदा उठा कर इस्समय मेरा साथ दें उन्को भी मैं कुछ बुरा नहीं समझता क्योंकि जिन् पर मुझको बडा बिश्वास था वह सब मुझे अधर धार मैं छोड़ कर चले गए और ईश्वरनें मुझको किसी लायक न रक्खा” लाला मदनमोहन रो कर कहनें लगें.

"ईश्वर को सर्वथा दोष न दो वह जो कुछ करता है सदा अपनें हितही की बात करता है” "लाला ब्रजकिशोर कहनें लगे श्रीमद्भागवत मैं राजा युधिष्ठिर से श्रीकृष्णचन्द्रनें कहा है “जा नर पर हम हित करें ताको धन हर लेहिं। धन दुख दुखिया का स्वतः सकल बन्धु तज देहिं॥*" सो निस्सन्देह सच है क्योंकि उद्योग की माता आवश्यकता है इसी तरह अनुभव सै उपदेश मिलता है सादी नें गुलिस्तां मैं लिखा है कि “एक बादशाह अपने


 * यस्याहमनुग्टह्णामि तस्य वित्तं हरायहम्
ततीधनं त्यजन्त्यस्य स्वजननादुःखदु:खितम्।

[ २९४ ]

एक गुलामको साथ लेकर नाब में बैठा. वह गुलाम कभी नाव मैं नहीं बैठा था इस लिये भय से रोनें लगा धैर्य और उपदेशकी बातों सै उस्के चित्त का कुछ समाधान न हुआ. निदान बादशाह सै हुक्म लेकर एक बुद्धिमान नें (जो उसी नावमैं बैठा था) उसै पानी मैं डाल दिया और दो, चार गोते खाए पीछे नाव पर ले लिया जिस्मैं उस्के चित्तकी शान्ति हो गई. बादशाह नें पूछा इस्मैं क्या युक्ति थी? बुद्धिमान नें जवाब दिया कि पहले यह डूबनेका दुःख और नावके सहारे बचनें का सुख नहीं जान्ता था. सुखकी महिमा वही जान्ता है जिस्को दुःख का अनुभव हो”

“परन्तु इस्समय इस अनुभव सै क्या लाभ होगा घोड़ा बिना चाबुक बृथा है" लाला मदनमोहननें निराश होकर कहा.

"नहीं, नहीं ईश्वरकी कृपा सै कभी निराश न हो वह कोई बात युक्ति शून्य नहीं करता" लाला ब्रजकिशोर कहनें लगे. “मि० पारनेलनें लिखा है कि “एक तपस्वी जन्म से बन मैं रह कर ईश्वराराधन करता था एक बार धर्मात्माओंको दुखी और पापियोंको सुखी देख कर उस्के चित्त मैं ईश्वर के इन्साफ़ बिषै शंका उत्पन्न हुई और वह इस बातका निर्धार करनें के लिये बस्ती की तरफ चला रस्ते मैं उस्को एक जवान आदमी मिला और यह दोनों साथ, साथ चलने लगे। सन्ध्या समय इन्को एक ऊचा महल दिखाई दिया और वहां पहुंचे जबउस्के मालिकनें इन दोनोंका हद्द सै ज्यादः सत्कार किया. प्रातःकाल जब ये चलनें लगे तो उस जवाननें एक सोनेंका प्याला चुरा लिया. थोड़ी दूर आगे बढे इतनें मैं घनघोर घटा चढ आई और मेह [ २९५ ] बरसनें लगा इस्सै यह दोनों एक पासकी झोपड़ी मैं सहारा लेनें गए. उस झोपड़ीका मालिक अत्यन्त डरपोक और निर्दय था इसलिये उस्नें बड़ी कठिनाईसै इन्हैं थोड़ी देर ठैरनें दिया, अनादर सै सूखी रोटी के थोडसे टुकड़े खानें को दिये और बरसात कम होते ही चलनें का संकेत किया चल्ती वार उस जवाननें अपनी बगल सै सोनेका प्याला निकाल कर उसै दे दिया। जिस्पर तपस्वी को जवान की यह दोनों बातें बड़ी अनुचित मालूम हुई खैर! आगे बढ़े सन्ध्या समय एक सद्गृहस्थ के यहां पहुंचे जो मध्यम भाव सै रहता था और बडाई का भी भूका न था. उस्नें इन्का भलीभांति सत्कार किया और जब ये प्रातःकाल चलनें लगे तो इन्को मार्ग दिखानें के लिये एक अगुआ इन्के साथ कर दिया पर यह जवान सबकी दृष्टि बचा कर चल्ती वार उस सद् गृहस्थ के छोटेसे बालक का गला घोंट कर उसै मारता गया! और एक पुल पर पहुच कर उस अणुए को भी धक्का दे नदीमें डाल दिया! इन्वातों सै अब तो इस तपस्वी के धि:कार और क्रोध की कुछ हद्द न रही. वह उस्को दुर्बचन कहा चाहता था इतनें मैं उस जवानका आकार एकाएक बदल गया उस्के मुखपर सूर्य का सा प्रकाश चमकनें लगा और सब लक्षण देवताओंकेसे दिखाई दिये. वह बोला “में परमेश्वरका दूत हूंं और परमेश्वर तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हैं. इसलिये परमेश्वरकी आज्ञा सै मैं तुम्हारा संशय दूर करनें आया हूं. जिस काम मैं मनुष्यकी बुद्धि नहीं पहुंचती उस्को वह युक्ति शून्य समझनें लगता है परन्तु यह उस्की केवल मूर्खता है. देखो मेरे यह सब काम तुमको उल्टे मालूम पड़ते [ २९६ ] होंगे परन्तु इन्हीं से उस्के इन्साफ का विचार करो. जिस मनुष्य का प्याला मैंने चुराया वह नामवरी का लालच करके हद्द सैं ज्यादः अतिथि सत्कार करता था और इस रीति सै थोड़े दिनमैं उस्के भिखारी होजानें का भय था इस कामसै उस्की वह उमंग कुछ कम होकर मुनासिब हद्द पर आगई. जिस्को मैंने प्याला दिया वह पहलै अत्यन्त कठोर और निठुर था इस फायदे सै उस्को अतिथि सत्कार की रुचि हुई. जिस सद्गृहस्थ का पुत्र मैंनें मारडाला उस्को मेरे मारने का बृत्तान्त न मालूम होगा परन्तु वह इन दिनों सन्तानकी प्रीतिमैं फंस कर अपनें और कर्तव्य भूलनें लगा था इस्सै उसकी बुद्धि ठिकानें आगई. जिस मनुष्य को मैंनें अभी उठा कर नदीमैं डाल दिया वह आज रात को अपनें मालिक की चोरी करके उसै नाश किया चाहता था इसलिये परमेश्वर के सब कामों पर विश्वास रक्खो और अपना चित्त सर्वथा निराश न होनें दो”

“मुझको इस्समय इस्बात सैं अत्यन्त लजा आती है कि मैंने आपके पहले हितकारी उपदेशों को बृथा समझ कर उन्पर कुछ ध्यान नहीं दिया” लाला मदनमोहननें मन सै पछतावा करके कहा.

"उन सब बातोंका खुलासा इतना ही है कि सब पहलू बिचार कर हरेक काम करना चाहिये क्योंकि संसारमैं स्वार्थपर बिशेष दिखाई देते हैं’ लाला ब्रजकिशोरनें कहा.

“मैं आपके आगे इस्समय सच्चे मनसै प्रतिज्ञा करता हूं कि मैं अब कभी स्वार्थ पर मित्रोंका सुख नहीं देखूंगा झूंटी ठस दिखानें का विचार न करूंंगा झूंंटे पक्षपात को अपनें पास न [ २९७ ] जानें दूंगा और अपने सुखके लिये अनुचित मार्ग पर पांव न रक्खूंगा" लाला मदनमोहननेबड़ी दृढतासै कहा.

"इस्समय आप यह बातें निस्संदेह मनसै कहते हैं परन्तु इस तरह प्रतिज्ञा करनें वाले बहुत मनुष्य परीक्षाके समय दृढ नहीं निकलते मनुष्य का जातीय स्वभाव ( आदत ) बडा प्रबल है। तुलसीदासजीने भगवान से यह प्रार्थना की है:---

"मेरो मन हरिजू हठ न तजैं॥ निशिदिन नाथ देउं सिख बहुबिध करत सुभाव निजै। ज्यों युवति अनुभवति प्रसव अति दारुण दुख उपजै॥ व्है अनुकूल बिसारि शुलशठ पुनि खल पतिदि भजै॥ लोलुप नमत गृह पशु ज्यों जहं तहं पदत्राण बजैं॥ तदपि अधम बिचरत तेहि मारग कबहुं न मूढलजै॥ हों हायर्यो करि यत्न बिबिधि विधि अतिशय प्रबल अजै॥ तुलसिदास बस होइ तबहि जब प्रेरक प्रभु बरजै।" आदतकी यह सामथ्र्य है कि वह मनुष्य की इच्छा न होंनें परभी अपनी इच्छानुसार काम करा लेती है, धोका दे, देकर मनपर अधिकार करलेती है, जब जैसी बात करानी मंजूर होती है तब वैसीही युक्ति बुद्धि को सुझाती है, अपनी घात पाकर बहुत काल पीछे रुख में छिपीहुई अग्निके स्मान सहसा चमक उठती है मैं गई बीती बातों की याद दिवाकर आपको इस्समय दुखित नहीं किया चाहता परन्तु आपको याद होगी कि उस्समय मेरी ये सब बातें चिकनाई पर खुदके समान कुछ असर नहीं करती थीं इसी तरह यह समय निकल जायगा तो मैं जान्ता हूं कि यह सब विचार भी वायु की तरह तत्काल पलट जायँगे हम लोगों का लखोटिया ज्ञान है वह. आपके पास जानें सैं पिगल जाता है परन्तु उस्सै अलग होतेही [ २९८ ]फिर कठोर होजाता है इस दशा मैं जब इस्समय का दुःख भूलकर हमारा मन अनुचित सुख भोगनें की इच्छा करे तब हमको अपनी प्रतिज्ञा के भय सै वह काम छिपकर करनें पड़ें, और उन्को छिपानें के लिये झूंटी ठसक दिखानी पड़े झूंटी ठसक दिखानें के लिये उन्हीं स्वार्थपर मित्रोंका जमघट करना पड़े, और उन स्वार्थ पर मित्रोंका जमघट करनें के लिये वही झूंटा पक्षपात करना पड़े तो क्या आश्चर्य है?" लाला ब्रजकिशोर नें कहा.

"नहीं, नहीं यह कभी नहीं हो सक्ता मुझको उन लोगों सै इतनी अरुचि हो गई है कि मैं वैसी साहूकारी सै ऐसी ग़रीबी को बहुत अच्छी समझता हूं क्या अपनी आदत कोई नहीं बदल सक्ता? लाला मदनमोहन नें जोर देकर पूछा.

"क्यों नहीं बदल सक्ता? मनुष्य के चित्त सै बढ़कर कोई वस्तु कोमल और कठोर नहीं है वह अपनें चित्त को अभ्यास करके चाहै जितना कम ज्यादः कर सकता है कोमल सै कोमल चित्त का मनुष्य कठिन सै कठिन समय पड़नें पर उसे भी झेललेता है और धीरै, धीरै उस्का अभ्यासी हो जाता है इसी तरह जब कोई मनुष्य अपनें मनमैं किसी बातकी पक्की ठान ले और उस्का हर वक्त ध्यान बना रक्खे उस्पर अन्त तक दृढ रहै तो वह कठिन कामों को सहज मैं कर सक्ता है परन्तु पक्का विचार किये बिना कुछ नहीं हो सकता" लाला ब्रजकिशोर कहनें लगे:––

"इटली का प्रसिद्ध कवि पीट्रार्क लोरा नामी एक परस्त्री पर मोहित हो गया इसलिये वह किसी न किसी बहानें सै उस्के सन्मुख जाता और अपनी प्रीतिभरी दृष्टि उस्पर डाल्ता परन्तु [ २९९ ] उस्के पतिब्रतापन सै उस्के आगे अपनी प्रीति प्रगट नहीं कर सक्ता था. लोरानें उस्के आकार सै उस्का भाव समझकर उस्को अपनें पास सै दूर रहनें के लिये कहा और पीट्रार्क नें भी अपनें चित्त सै लोरा की याद भूलनें के लिये दूर देशका सफ़र किया परन्तु लोरा का ध्यान क्षणभर के लिये उस्के चित्त सै अलग न हुआ. एक तपस्वी नें बहुत अच्छी तरह उस्को अपना चित्त अपनें बस मैं रखनें के लिये समझाया परन्तु लोरा को एक दृष्टि देखते ही पीट्रार्क के चित्त सै वह सब उपदेश हवामैं उड़ गए, लोरा की इच्छा ऐसी मालूम होती थी कि पोट्रर्क उस्सै प्रीति रक्खे परन्तु दूरकी प्रीति रक्खे. जब पीट्रार्क का मन कुछ बढ़ने लगता तो वह अत्यन्त कठोर हो जाती परन्तु जब उस्को उदास और निराश देखती तब कुछ कृपा दृष्टि करके उस्का चित्त बढ़ा देती इस तरह अपनें पातिब्रत मैं किसी तरह का धब्बा लगाए बिना लोरानें बीस बर्ष निकाल दिये. पीट्रार्क बेरोना शहर मैं था उस्समय एक दिन लोरा उसै स्वप्न मैं दिखाई दी और बड़े प्रेमसै बोली कि "आज मैंनें इस असार संसार को छोड़ दिया. एक निर्दोष मनुष्य को संसार छोड़ती बार सच्चा सुख मिलता है और मैं ईश्वर की कृपा सै उस खुखका अनुभव करती हूं परन्तु मुझको केवल तेरे बियोग का दुःख है" "तो क्या तू मुझ सैं प्रीति रख़ती थी?" पीट्रार्क नें पूछा "सच्चे मन सै" लोरानें जवाब दिया ओर उस्का उस दिन मरना सच निकला. अब देखिये कि एक कोमल चित्त स्त्री, अपने प्यारे की इतनी आधीनता पर बीस वर्ष तक प्रीतिकी अग्निको अपनें चित्त मैं दबा सकी और उसे सर्वथा प्रबल न होने दिया फिर क्या हम [ ३०० ] लोग पुरुष होकर भी अपने मनकी छोटी, छोटी, कामनाओं के प्रबल होनें पर उन्हैं नहीं रोक सकते?

"यूनानके प्रसिद्ध बक्ता डिमास्टिनीस को पहलै पूरासा बोलना नहीं आता था उसकी जबान तोतली थी और ज़रासी बात कहनेंमैं उस्का दम भर जाता था परंतु वह बड़े, बड़े उस्तादों की वक्तृता का ढंग देखकर उन्की नक़ल करनें लगा और दरियाके किनारे या ऊंंची टेकड़ियों पर मुंह मैं कंकर भरकर बड़ी देर, देर तक लगातार छन्द बोलनें लगा जिस्सै उस्का तुतलाना और दम भरनाही नहीं बन्ध हुआ बल्कि लोगों के हल्ले को दबा कर आवाज़ देनेंका अभ्यास हो गया. वह वक्तृता करने सैं पहलै अपनें चहरे का बनाव देखनें के लिये काचके सामनें खड़े होकर अभ्यास करता था और उस्को वक्तृता करती बार कंधे उचकानें की आदत पड़ गई थी इस्सै वह अभ्यास के समय दो नोकदार हथियार अपनें कन्धों सै ज़रा ऊंंचे लटकाए रख़ता था कि उन्के डरसै कन्धे न उचकनें पायँ उस्नें अपनी भाषा मैं प्रसिद्ध इतिहासकर्ता ठयु सीडाइगसकासा रस लानें के लिये उस्के लेख की आठ नकल अपनें हाथ सै की थी.

"इंग्लेडका बादशाह पांचवां हेनरी जब प्रेन्स आफ वेल्स ( युवराज ) था तब इतनी बदचलनी मैं फस गया था और उस्की संगति के सब आदमी ऐसे नालायक थे कि उस्के बादशाह होनें पर बड़े जुल्म होंने' का भय सब लोगों के चित्त मैं समा रहा था. जिस्समय इंग्लेन्ड के चीफ जस्टिस गासकोइननें उस्के अपराध पर उसै कैद किया तो खास उस्के पिता नें इस बात सै अपनी प्रसन्नता प्रकट की थी कि शायद इस रीति सै वह कुछ [ ३०१ ] सुधरे परन्तु जब वह शाहज़ादा बादशाह हुआ और राजका भार उस्के सिर आ पडा तो उस्नें अपनी सब रीति भांति एकाएक ऐसी बदल डाली कि इतिहास मैं वह एक बड़ा प्रामाणिक और बुद्धिमान बादशाह समझा गया. उस्नें राज पाते ही अपनी जवानी के सब मित्रोंको बुला कर साफ कह दिया था कि मेरे सिर राजका बोझ आ पड़ा है इसलिये मैं अपना चाल चलन सुधारा चाहता हूं सो तुम भी अपना चालचलन सुधार लेना आज पीछे तुम्हारी कोई बदचलनी मुझको मालूम होगी तो मैं तुम्हैं अपनें पास न फटकनें दूंगा. उस्से पीछे हेन्री ने बड़े योग्य, धर्मात्मा, अनुभवी और बुद्धिमान आदमियोंकी एक काउन्सिल बनाई और इन्साफ की अदालतों मैं सैं संदिग्ध मनुष्यों को दूर करके उन्की जगह बड़े ईमानदार आदमी नियत किये खास कर अपनें कैद करनें वाले गासकोइनकी बड़ी प्रतिष्ठा करके उस्सै कहा कि "जिस्तरह तुमनें मुझको स्वतन्त्रता सै कैद किया था इसी तरह सदा स्वतन्त्रता सै इन्साफ करते रहना"

“मेरे चित्तपर आपके कहनें का इस्समय बडा असर होता हैं और मैं अपनें अपराधोंके लिये ईश्वर सैं क्षमा चाहता हूं. मुझको उस अमीरीके बदले इस कैद मैं अपनी भूलका फल पानें सै अधिक संतोष मिलता है मैं अपनें स्वेच्छाचार का मजा देख चुका अब मेरा इतना ही निवेदन है कि आप प्रेमबिवस होकर मेरे लिये किसी तरह का दुख न उठायें और अपना नीति मार्ग न छोड़ें” लाला मदनमोहन ने दृढ़ता सै कहा.

"अब आपके विचार सुधर गए इस लिये आपके कृतकार्य (कामयाब) होने मैं मुझको कुछ भी संदेह नहीं रहा ईश्वर

२० [ ३०२ ]आपका अवश्य मंगल करेगा" यह कहकर लाला ब्रजकिशोरनें मदनमोहनको छाती सै लगा लिया.



प्रकरण ४१.

सुखकी परमावधि.

जबलग मनके बीच कछु स्वारथको रस होय॥
युद्ध सुधा कैसे पियै? परै बीच मैं तोय॥

सभाविलास.

"मैंने सुना है कि लाला जगजीवनदास यहां आए हैं?" लाला मदनमोहननें पूछा.

"नहीं इस्समय तो नहीं आए आपको कुछ संदेह हुआ होगा लाला ब्रजकिशोरनें जवाब दिया.

"आपके आनें सैं पहलै मुझको ऐसा आश्चर्य मालूम हुआ कि जानें मेरी स्त्री यहां आई थी परंतु यह संभव नहीं कदाचित् स्वपन्न होगा" लाला मदनमोहननें आश्चर्य सै कहा.

क्या केवल इतनी ही बातका आपको आश्चर्य है? देखिये चुन्नीलाल और शिंभूदयाल पहलै बराबर आपकी निन्दा करके आपका मन मेरी तरफसै बिगाड़ते रहते थे बल्कि आपके लेनदारों को बहकाकर आपके काम बिगाड़नें तकका दोषारोप मुझपर हुआ था परंतु फिर उसी चुन्नीलालनें आप सै मेरी बडाई की, आपसै मेरी सफ़ाई कराई, आपको मेरे मकान पर लिए लाया

This work is in the public domain in the United States because it was first published outside the United States (and not published in the U.S. within 30 days), and it was first published before 1989 without complying with U.S. copyright formalities (renewal and/or copyright notice) and it was in the public domain in its home country on the URAA date (January 1, 1996 for most countries).