परीक्षा गुरु ४१

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परीक्षा गुरु
द्वारा लाला श्रीनिवासदास

[ ३०२ ]आपका अवश्य मंगल करेगा" यह कहकर लाला ब्रजकिशोरनें मदनमोहनको छाती सै लगा लिया.



प्रकरण ४१.

सुखकी परमावधि.

जबलग मनके बीच कछु स्वारथको रस होय॥
युद्ध सुधा कैसे पियै? परै बीच मैं तोय॥

सभाविलास.

"मैंने सुना है कि लाला जगजीवनदास यहां आए हैं?" लाला मदनमोहननें पूछा.

"नहीं इस्समय तो नहीं आए आपको कुछ संदेह हुआ होगा लाला ब्रजकिशोरनें जवाब दिया.

"आपके आनें सैं पहलै मुझको ऐसा आश्चर्य मालूम हुआ कि जानें मेरी स्त्री यहां आई थी परंतु यह संभव नहीं कदाचित् स्वपन्न होगा" लाला मदनमोहननें आश्चर्य सै कहा.

क्या केवल इतनी ही बातका आपको आश्चर्य है? देखिये चुन्नीलाल और शिंभूदयाल पहलै बराबर आपकी निन्दा करके आपका मन मेरी तरफसै बिगाड़ते रहते थे बल्कि आपके लेनदारों को बहकाकर आपके काम बिगाड़नें तकका दोषारोप मुझपर हुआ था परंतु फिर उसी चुन्नीलालनें आप सै मेरी बडाई की, आपसै मेरी सफ़ाई कराई, आपको मेरे मकान पर लिए लाया [ ३०३ ]आपकी तरफ सै मुझसै क्षमा मांगी मुझे फ़ायदा पहुंचाकर प्रसन्न रखनें के लिये आप को सलाह दी और अन्तमैं मेरा आपका मेल करवाकर चुन्नीलाल और शिंभुदयाल दोनों अलग हो गए! उसी समय मेरठ सै जगजीवनदास आकर आपके घरकों को लिवा लेगया! मैंने जन्म भर आप सै रुपे का लालच नहीं किया था सो तीन दिन मैं ऐसे कठिन अवसर पर ठगोंकी तरह पाकटचेन, हीरेकी अंगूठी और बाली ले ली! एक छोटेसे लेनदारकी डिक्री मैं आपको इतनी देर यहां रहना पडा क्या इन बातों सै आपको कुछ आश्चर्य नहीं होता? इन्में कोई बात भेद की नहीं मालूम होती? "लाला ब्रजकिशोर ने पूछा.

"आपके कहने से इस मामले में इस्समय निस्संदेह बहुत सी बातें आश्चर्य की मालूम होती हैं और किसी, किसी बात का कुछ, कुछ मतलब भी समझ मैं आता है परन्तु सब बातोंके जोड़ तोड़ पूरे नहीं मिल्ते और मनभरनें के लायक कोई कारण समझ मैं नहीं आता यदि आप कृपा करके इनबातों का भेद समझा देंगे तो मैं आपका बडा उपकार मानूंगा" लाला मदनमोहन नें कहा.

"उपकार मान्नेंके लायक़ मुझ सै आपकी कौन्सी सेवा बन पड़ी है?" लाला ब्रजकिशोर नें जवाब दिया और अपनी बगल सै बहुत से काग़ज़ और एक पोटली निकाल कर लाला मदनमोहन के आगे रखदी. इन कागजों मैं मदनमोहन के लेनदारों की तरफ सै अन्दाज़न् पचास हजार रुपे के राजी नामे फारखती, और रसीद बगैरे थी और मिस्टर ब्राइट का फैसलनामा था जिस्मैं पेंतीस हजार पर उस्सै फैसला हुआ था और मिस्टर [ ३०४ ] रसल की रकम उस्के देनें मैं लगादी थी, और मिस्टर ब्राइट की बेची हुई चोजोंमैं सै जो चीज फेरनी चाहें बराबर दामोंमैं फेर देनें की शर्त ठैर गई थी. उस पोटली मैं पन्द्रह बीस हजार का गहना था!

लाला मदनमोहन यह देखकर आश्चर्य सै थोडी देर कुछ न बोल सके फिर बडी कठिनाई सै केवल इतना कहा कि “मुझको अबतक जितनी आश्चर्य की बातें मालूम हुई थीं उन सब मैं यह बढ़कर है!"

"जितना असर आपके चित्तपर होना चाहिये था परमेश्वर की कृपा सै हो चुका इसलिये अब छिपानें की कुछ जरूरत नहीं मालूम होती” लाला ब्रजकिशोर कहनें लगे “आप किसी तरह का आश्चर्य न करैं. इन सब बातों का भेद यह है कि मैं ठेठसै आपके पिताके उपकार मैं बंधरहा हूं जब मैंने आपकी राह बिगडती देखी तो यथा शक्ति आपको सुधारनें का उपाय किया परन्तु वह सब बृथा गया. जब हरकिशोर के झगडे का हाल आपके मुखसै सुना तो मुझको प्रतीत हुआ कि अब रुपेकी तरी नहीं रही लोगों का विश्वास उठता जाता है और गहनें गांठ के भी ठिकानें लगनें की तैयारी है आपकी स्त्री बुद्धिमान होनेंपर भी गहनें के लिये आपका मन न बिगाडेगी लाचार होकर उसे मेरठ लेजानें के लिये जगजीवनदास को तार दिया और जब आप मेरे कहनें सै किसी तरह न समझे तो मैंनें पहलै बिभीषण और बिदुरजी के आचरण पर दृष्टि करके अलग हो बैठनें की इच्छा की परतु उससै चित्तको संतोष न हुआ तब मैं इस्बात के सोच विचार मैं बडी देर डूबा रहा तथापि स्वाभाविक झटका [ ३०५ ] लगे बिना आपके सुधरनें की कोई रीत न दिखाई दी और सुधरे पीछे उस अनुभव सै लाभ उठानें का कोई सुगम मार्ग न मिला. अन्तमैं सुग्रीव को धमकी देकर रघुनाथजी जिस्तरह राहपर ले आये थे इसी तरह मुझको आपके सुधारनें की रुचि हुई और मैंनें आपके वास्तै आपही सै कुछ रुपया लेकर बचा रखनें का बिचार किया पर यह काम चुन्नीलाल के मिलाये बिना नहीं हो सक्ता था इसलिये तत्काल उस्के भाई (हीरालाल) को अपने हां नोकर रख लिया, परन्तु इस अवसर पर हरकिशोर की बदोलत अचानक यह बिपत्ति सिरपर आपडी, चुन्नीलाल आदिका होसला कितना था? तत्काल घबरा उठे और उन्सै मेल करनें के लिये फिर मुझको कुछ परिश्रम न करना पडा. वह सब रुपे के गुलाम थे जब यहां कुछ फायदे की सूरत न रही, उधर लोगों-नें आप पर अपनें लेनें की नालशैं कर दीं और आपकी तरफ सै जवाब दिही करनें मैं उन्की अपनी खायकी प्रगट होनें का भय हुआ तत्काल आपको छोड, छोड किनारे हो बैठे. मैनें आप सै जो कुछ इनाम पाया था उस्की कीमत सै यह सब फैसले घटा, घटा कर किये गए हैं अब दिसावर बालों का कुछ जुज्वी सा देना बाकी होगा सो दो, चार हजार मैं निबट जायगा परन्तु मेरे मनकी उमंग इस्समय कुछ नहीं निकली इस्सै मैं अत्यंत लजि्जत हूँँ" लाला ब्रजकिशोर ने कहा.

“आपने मेरे फायदे के लिये बिचारे लेनदारों को बृथा क्यों द़बाया" लाला मदनमोहन बोले.

"न मैंनें किसी को दबाया न धोका दिया न अपनें बस पडते कसर दी उन लोगोंनें बढा, बढा कर आप के नाम जो रकमैं [ ३०६ ] लिख लीं थीं वही यथा शक्ति कम की गई हैं और वह भी उनकी प्रसन्नता से कम की गईं हैं" लाला ब्रजकिशोर ने अपना बचाव किया.

"इन सब बातों सै मैं आश्चर्य के समुद्र मैं डूबा जाता हूँँ। भला यह पोटली कैसी है?" लाला मदनमोहन में पूछा.

“आपकी हवालात की खबर सुनकर आपकी स्त्री यहां दौड आई थी और जिस्समय मैं आप सै बातें कर रहा था उस्समय उसी के आनें की खबर मुझको मिली थी मैंनें उसै बहत समझाया परन्तु वह आपकी प्रीति मैं ऐसी बाबली हो रही थी कि मेरे कहनें सै कुछ न समझी, उस्ने आपको हवालात सै छुडानें के लिये यह सब गहना जबरदस्ती मुझै दे दिया. वह उस्समय सै पांच फेरे यहां के कर चुकी है उस्नें सवेरे सै एक दाना मुँहमैं नहीं लिया उस्का रोना पलभर के लिये बन्द नहीं हुआ रोते, रोते उसकी आंखें सूज गईं हा! उस्की एक, एक बात याद करने सै कलेजा फटता है. और आप ऐसी सुपात्र स्त्री के पति होने से निस्संदेह बडे भाग्य शाली हो” लाला ब्रजकिशोर ने आँँसू भरकर कहा.

"भाई! जब उस्ने उसी समय तुमको यह गहना देदिया था तो फिर मेरे छुडानें मैं देर क्यों हुई?” लाला मदनमोहननें संदेह करके पूछा.

"एक तो दो एक लेनदारों का फैसला जबतक नहीं हुआ था और हरकिशोर की डिक्री का रुपया दाखिल कर दिया जाता तो, फिर उन्के घटने की कुछ आशा न थी, दूसरे आपके चित्तपर अपनी भूलों के भली भांति प्रतीत होजानें के लिये भी कुछ ढील [ ३०७ ] की गई थी परन्तु कचहरी बरखास्त होनें सै पहले मैंने आपके छुडानें का हुक्म ले लिया था और इसी कारण सै मेरी धर्मकी बहन आपकी सुशीला स्त्री को आपके पास आनें मैं कुछ अडचल नहीं पड़ी थी. हां मैंनें आपका अभिप्राय जानें बिना मिसृट ब्राइट सै उस्की चीजैं फेरनें का वचन कर लिया है यह बात कदाचित् आपको बुरी लगी होगी” लाला ब्रजकिशोरने मदनमोहन का मन देखनें के लिये कहा.

“हरगिज नहीं, इस बातको तो मैं मनसै पसन्द करता हूं. झूठी भडक दिखानें मैं कुछ सार नहीं 'आई बहू आए काम गई बहू गए काम' की कहावत बहुत ठीक है और मनुष्य अपने स्वरूपानुरूप प्रामाणिक पनें सै रहकर थोडे खर्च में भली भांति निर्वाह कर सकता है” लाला मदनमोहननें संतोष करके कहा.

“अब तो आपके विचार बहुत ही सुधर गए. एबडोलोमीन्स को ग़रीबी सै एकाएक साइडोनिया के सिंहासन पर बैठाया गया तब उस्ने सिकन्दरसै यही कहा था कि "मेरे पास कुछ न था जब मुझको विशेष आवश्यकता भी न थी अब मेरा वैभव बढ़ेगा वैसी ही मेरी आवश्यकता भी बढ जायगी” कच्चे मनके मनुष्यों को अपनें खरूपानुरूप बरताव रखनें में जाहिरदारी की झूटी झिझक रहती है इसी सै वह लोग जगह, जगह ठोकर खाते हैं परन्तु प्रामाणिक पनें सै उचित उद्योग कर मनुष्य हर हालत मैं सुखी रह सक्ता है" लाला ब्रजकिशोरनें कहा.

“क्या अब चुन्नीलाल और शिंभूदयाल आदिको उन्की बदचलनी का कुछ मजा दिखाया जायगा?" लाला मदनमोहनने पूछा, [ ३०८ ]"किसी मनुष्य की रीत भांति सुधरे बिना उस्सै आगे को काम नहीं लिया जासक्ता परन्तु जिन लोगों का सुधारना अपने बूते सै बाहर हो उन्नै काम काजका संबंध न रखना ही अच्छा है और जब किसी मनुष्य सै ऐसा संबंध न रक्खा जाय तो उस्के सुधारने का बोझ सर्व शक्तिमान परमेश्वर अथवा राज्याधिकारियों पर समझ कर उस्सै देष और बैर रखनें के बदले उस्की हीन दशा पर करूणा और दया रखनी सजनों को विशेष शोभित करती है" लाला ब्रजकिशोरनें जवाब दिया.

“मेरी मूर्खता से मुझपर जो दुख पडना चाहिये था पडचुका अब अपना झूटा बचाव करनें सै कुछ फायदा नहीं मालूम होता मैं चाहता हूँँ कि सब लोगों के हित निमित्त इन दिनोंका सब बृत्तान्त छपवा कर प्रसिद्ध कर दिया जाय” लाला मदनमोहननें कहा.

“इस्की क्या जरूरत है? संसार मैं सीखनें वालों के लिये बहुत सै सत्शास्त्र भरे पड़े हैं” लाला ब्रजकिशोरने अपना संबंध विचार कर कहा.

"नहीं सच्ची बातों में लजानें का क्या काम है? मेरी भूल प्रगट हो तो हो मैं मन सै चाहता हूँँ कि मेरा परिणाम देखकर और लोगों की आंखैं खुलैं इस अवसर पर जिन, जिन लोगों सै मेरी जो, जो बात चीत हुई है वह भी मैं उस्मै लिखनें के लिये बता दूंंगा" लाला मदनमोहननें उमंगसै कहा.

"धन्य! लालासाहब! धन्य! अब तो आपके सुधरे हुए बिचार हद्द के दरजे पर पहुंच गए" लाला ब्रजकिशोरनें गद्गद बाणी सै कहा "औरोंके दोष देखनें वाले बहुत मिल्ते हैं, प्ररन्तु [ ३०९ ] जो अपनें दोषों को यथार्थ जान्ता हो और जान बूझकर उन्का झूठा पक्ष न करता हो बल्कि यथा शक्ति उन्के छोडनें का उपाय करता हो वही सच्चा सज्जन है"

"सिलसिले बन्द सीधामामूली काम तो एक बालक भी कर सत्ता है परन्तु ऐसे कठिन समय में मनुष्य की सच्ची योग्यता मालूम होती है, आप ने मुझको इस अथाह समुद्र में डूबनें सै बचाया है इस्का बदला तो आपको ईश्वर के हां सै मिलैगा मैं सो जन्म तक लगातार आपकी सेवा करूं तो भी आपका कुछ प्रत्युपकार नहीं कर सत्ता परन्तु जिस्तरह महाराज रामचन्द्र ने भिलनी के बेर खाकर उसे कृतार्थ किया था इसी तरह आप भी अपनी रुचिके विपरीति मेरा मन रखने के लिये मेरी यह प्रार्थना अंगीकार करें" लाला मदनमोहन ब्रजकिशोर को आठ, दस हजार का गहना देने लगे.

"क्या आप अपने मनमैं यह समझते हैं कि मैंने किसी तरह के लालच से यह काम किया?" लाला ब्रजकिशोर रुखाई सै बोले "आगे को आप ऐसी चर्चा करके मेरा जी बृथा न दुखावै. क्या मैं गरीब हूं इसी सै आप ऐसा बचन कहकर मुझको लज्जित करते है? मेरे चित्त का संतोष ही इस्का उचित बदला है जो सुख किसी तरह के स्वार्थ विना उचित रीति सै परोपकार करने में मिल्ता है वह और किसी तरह नहीं मिल सत्ता वह सुख, सुख की परमावधि है इसलिये मैं फिर कहता हूं कि आप मुझको उस सुख सै वंचित करने के लिये अब ऐसा बचन न कहैं."

"आप का कहना बहुत ठीक है और प्रत्युपकार करना भी मेरे बूते सै बाहर है परन्तु मैं केवल इस्समय के आनन्द मैं" [ ३१० ]"बस आप इस विषय में और कुछ न कहैं. मुझको इस्समय जो मिला है उससे अधिक आप क्या दे सकते हैं? मैं रुपये पैसै के बदले मनुष्य के चित्त पर विशेष दृष्टि रखता हूं और आपके देने ही का आग्रह हो तो मैं यह मांगता हूं कि आप अपने आचरण ठीक रखने के लिये इस्समय जैसे मजबूत हैं वैसे ही सदा बनें रहें और यह गहना मेरी तरफ सै मेरी पतिब्रता बहन और उस्के गुलाब जैसे छोटे,छोटे बालकों को पहनावें जिन्हें देखनें से मेरा जी हरा हो" लाला ब्रजकिशोर ने कहा.

"परमेश्वर चाहेंगे तो आगे को आप की कृपा से कोई बात अनुचित न होगी" लाला मदनमोहन नें जवाब दिया.

"ईश्वर आप को सदा भले कामों की सामर्थ्य दे और सब का मंगल करे" लाला ब्रजकिशोर सच्चे सुख मैं निमग्न होकर बोले.

निदान सब लोग बडे आनन्द से हिल मिलकर मदनमोहन को घर लिवा ले गए और चारों तरफ से "बधाई" "बधाई" होने लगी.

जो सच्चा सुख,सुख मिलने की मृगतृषणा से मदनमोहन को अबतक स्वप्न में भी नहीं मिला था वही सच्चा सुख इस्समय ब्रजकिशोर की बुद्धिमानी से परीक्षागुरु के कारण प्रामाणिक भाव सै रहने में मदनमोहन को घर बैठे मिल गया!!!

।।समाप्त।।

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