परीक्षा गुरु ७

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परीक्षा गुरु
द्वारा लाला श्रीनिवासदास
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सावधानी(होशियारी)
 


पहचान कर मनुष्य अपनी परीक्षा भी आप कर सकेगा, राजपाट, धन-दौलत, विद्या, स्वरूप, वंश, मर्यादा में भले बुरे मनुष्य की परीक्षा नहीं हो सकती. बिदुरजी ने कहा है “उत्तमकुल आचार बिन करे प्रमाण न कोई॥ कुलहीनों आचारयुक्त लहे बड़ाई सोइ॥"


प्रकरण ७ +

सावधानी(होशियारी)

सब भूतनको तत्व लख कर्म योग पहिचान॥
मनुजनके यत्नहिं लखहिं सो पंडित गुणवान॥

विदुर प्रजागरे

“यहां तो आप अपने कहने पर खुद ही पक्के न रहें, आप ने केलीप्स और डिओन का दृष्टांत देकर यह बात साबित की थी कि किसी की जहिरी बातों से उसकी परीक्षा नहीं हो सकती परन्तु अंत में आप ने उसी के कामों से उसको पहचानने की राय बतलाई” बाबू बैजनाथ ने कहा.


न कुलं वृत्तहीनस्य प्रमाण मिति में मति:॥
अन्तेष्वपि हि जातानां वृत्तमेव विशिष्यते॥
तत्वज्ञः सर्वभूतानां योगज्ञ: सर्वकर्मणाम्॥
उपायज्ञों मनुष्याणां नर: पंडित उच्यते॥

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“मैंनें केलीप्स के दृष्टांत में पिछले कामों से पहली बातों का भेद खोल कर उसका निज स्वभाव बता दिया था इसी तरह समय पाकर हर आदमी के कामों से मन की वृत्तियों पर निगाह कर के उसकी भलाई बुराई पहचानने की राह बतलाई तो इससे पहली बातों से क्या विरोध हुआ?” लाला ब्रजकिशोर पूछने लगे.

"अच्छा! जब आप के निकट मनुष्य की परीक्षा बहुत दिनों में उसके कामों से हो सकती है तो पहले कैसा बरताव रखें? क्या उसकी परीक्षा न हो जब तक उसको अपने पास न आने दें?” लाला मदनमोहन ने पूछा.

“नहीं, केवल संदेह से किसी को बुरा समझना, अथवा किसी का अपमान करना सर्वथा अनुचित है परंतु किसी की झूठी बातों में आकर ठगा जाना भी मूर्खता से खाली नहीं.” लाला ब्रजकिशोर कहने लगे महाभारत में कहा है "मन न भरे पतियाहु जिन पतियायेहु अति नाहि॥ भेदी सों भय होत ही जर उखरे छिन माहिं।" इसका कारण जब तक मनुष्य की परीक्षा न हो साधारण बातों में उसके जाहिरी बरताव पर दृष्टि रखनी चाहिये. परंतु जोखों के काम में उसे सावधान रहना चाहिये उसका दोष प्रगट होने पर उसको छोड़ने में संकोच न हो इस लिये अपना भेदी बना कर, उसका अहसान उठाकर, अथवा किसी तरह की लिखावट और जुबान से उसके बसवर्ती होकर अपनी स्वतंत्रता न खोवे यद्यपि किसी-किसी के विचार में


"न विश्वसैदविश्वस्ते विश्वस्ते नाति विश्वसेत्॥
विश्वासाद् भयमुत्पन्न सूलान्यपि निकृन्तति॥"

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छल, बल की प्रतिज्ञाओं का निबाहना आवश्यक नहीं है परंतु प्रतिज्ञा भंग करने की अपेक्षा पहले विचार कर प्रतिज्ञा करना हर भांत अच्छा है”

“ऐसी सावधानी तो केवल आप लोगों ही से हो सकती है जो दिन रात इन्हीं बातों के चारा विचार में लगे हैं” लाला मदनमोहन ने हंसकर कहा.

"मैं ऐसा सावधान नहीं हूं परंतु हर काम के लिये सावधानी की बहुत जरूरत है" लाला ब्रजकिशोर कहने लगे “मैं अभी मन की वृत्तियों का हाल कहकर अच्छे बुरे मनुष्यों की पहचान बता चुका हूं परंतु उनमें से धर्मप्रवृत्ति की प्रबलता रखने वाले अच्छे आदमी भी सावधानी बिना किसी काम के नहीं हैं क्योंकि वे बुरी बातों को अच्छा समझ कर धोखा खा

जाते हैं. आपने सुना होगा कि हीरा और कोयला दोनों में कार्बन है और उनके बनने की रसायनिक क्रिया भी एक-सी है दोनों में कार्बन रहता है केवल इतना अंतर है हीरे में निरा कार्बन जमा रहता है और कोयले में उसकी कोई खास सूरत नहीं होती जो कार्बन जमा हुआ, दृढ़ रहने से बहुत कठोर, स्वच्छ, स्वेत और चमकदार होकर हीरा कहलाता है वही कार्बन परमाणुओं के फैल फूट और उलट-पुलट होने के कारण काला, झिर्झिरा, बोदा, और एक सूरत में रहकर कोयला कहलाता है! यही भेद अच्छे मनुष्यों में और अच्छी प्रकृति वाले सावधान मनुष्यों में है कोयला बहुत सी जहरीली और दुर्गंधित हवाओं को सोख लेता है. अपने पास की चीज़ों को गलनें-सड़ने की हानि से बचाता है. और अमोनिया इत्यादि के द्वारा वन[ ४६ ]
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स्पति को फ़ायदा पहुँचाता है इसी तरह अच्छे आदमी दुष्कर्म से बचते हैं परंतु सावधानी का योग मिले बिना हीरा की तरह कीमती नहीं हो सकते।"

"मुझे तो यह बातें मन:कल्पित मालूम होती हैं क्योंकि संसार के बरताव से इसकी कुछ बिध नहीं मिती संसार में धनवान् कुपढ, दृरिद्री, पंडित, पापी सुखी ,धर्मात्मा दुखी असावधान अधिकारी सावधान आज्ञाकारी भी देखने में आते हैं” मास्टर शिंभूदयाल ने कहा.

“इसके कई कारण हैं” लाला ब्रजकिशोर कहने लगे "मैं पहले कह चुका हूं कि ईश्वर के नियमानुसार मनुष्य जिस विषय में भूल करता है बहुधा उसको उसी विषय में दंड मिलता है. जो विद्वान दरिद्री मालूम होते हैं वह अपनी विद्या में निपुण हैं परंतु संसारिक व्यवहार नहीं जाते अथवा जान बूझ कर उसके अनुसार नहीं बरतते. इसी तरह जो कुपढ़ धनवान दिखाई देते हैं वह विद्या नहीं पढ़े परंतु द्रव्योपार्जन करने और उसकी रक्षा करने की रीति जानते हैं. बहुधा धनवान रोगी होते हैं और ग़रीब नैरोग्य रहते हैं इसका यह कारण है कि धनवान द्रव्यो- पार्जन करने की रीति जान्ते हैं परंतु शरीर की रक्षा उचित रीति से नहीं करते और गरीबों की शरीर रक्षा उचित रीति से बन जाती है परंतु वे धनवान होने की रीति नहीं जानते. इसी तरह जहां जिस बात की कसर होती है वहां उसी चीज की

कमी दिखाई देती हैं. परंतु कहीं-कहीं प्रकृति के विपरीत पापी सुखी, धर्मात्मा दुखी असावधान अधिकारी, सावधान आज्ञाकारी दिखाई देते हैं. इसके दो कारण हैं. एक यह कि संसार [ ४७ ]
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को वर्तमान दशा के साथ मनुष्य का बड़ा दृढ़ संबंध रहता है इसलिये कभी-कभी औरों के हेतु उसका विपरीत भाव हो जाता है जैसे माँ बाप के विरसे से द्रव्य, अधिकार या ऋण

रोगादि मिलते हैं, अथवा किसी और की धरी हुई दौलत किसी और के हाथ लग जाने से वह उसका मालिक बन बैठता है, अथवा किसी अमीर की उदारता से कोई नालायक धनवान बन जाता है, अथवा किसी पास पड़ोसी की गफलत से अपना सामान जल जाता है, अथवा किसी दयालु विद्वान के हितकारी उपदेशों से, कुपढ़ मनुष्य विद्या का लाभ ले सकते हैं, अथवा किसी बलवान लुटेरे की लूट मार से कोई गृहस्थ बेसबब धन और तन्दुरुस्ती खो बैठता है और ये सब बातें लोगों के हक में अनायास होती रहती हैं इसलिये इनको सब लोग प्रारब्ध फल मानते हैं परंतु ऐसे प्रारब्धी लोगों में जिसको कोई वस्तु अनायास मिल गई पर उसके स्थिर रखने के लिये उसके लायक कोई वृत्ति अथवा सब वृत्तियों की सहायता स्वरूप सावधानी ईश्वर ने नहीं दी तो वह उस चीज़ को अन्त में अपनी स्वाभाविक वृत्तियों की प्रबलता से वह वस्तु अधिक हुई तो उसमें उन वृत्तियों का नुक्सान गुप्त रहकर समय पर ऐसे प्रगट होता है जैसे बचपन की बेमालूम चोट बडी अवस्था में शरीर को निर्बल पाकर अचानक कसक उठे,या शतरंज में किसी चाल की भूल का असर दस-बीस चाल पीछे मालूम हो, पर ईश्वर की कृपा से किसी को कोई वस्तु मिलती है तो उसके साथ ही उसके लायक बुद्धि भी मिलजाती है या ईश्वर की कृपा [ ४८ ]
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से किसी कायम मुकाम(प्रतिनिधि) वगैरह की सहायता पाकर उसके ठीक-ठीक काम चलने का बानक बन जाता है जिसे वह नियम निभे जाते हैं परंतु ईश्वर के नियम मनुष्य से किसी तरह नहीं टूट सकते.”

“मनुष्य क्या मैं तो जानता हूं ईश्वर से भी नहीं टूट सकते” बाबू बैजनाथ ने कहा.

“ऐसा विचारना अनुचित है ईश्वर को सब सामर्थ्य है देखो प्रकृति का यह नियम सब जगह एक-सा देखा जाता है कि गर्म होने से हरेक चीज फैलती है और ठंडी होने से सिमट जाती है। यही नियम २१२ डिग्री तक जल के लिये भी है परन्तु जब जल बहुत ठंडा होकर ३२ डिग्री पर बर्फ बनने लगता है तो वह ठंड से सिमटने के बदले फैलता जाता है और हल्का होने के कारण पानी के ऊपर तैरता रहता है. इससे जल जंतुओं की प्राणरक्षा के लिये यह साधारण नियम बदल दिया गया ऐसी बातों से उसकी अपरमित शक्तिका पूरा प्रमाण मिलता है उसने मनुष्य के मानसिक भावादि से संसार के बहुत से कामों का गुप्त संबंध इस तरह मिला रखा है कि जिसके आभास मात्र से अपना चित्त चकित हो जाता है. यद्यपि ईश्वर के ऐसे बहुत से कामों की पूरी थाह मनुष्य की तुच्छ बुद्धि को नहीं मिली तथापि उसने मनुष्य को बुद्धि दी है. इस लिये यथाशक्ति उसके नियमों का विचार

करना, उनके अनुसार बरतना और विपरीत भाव का कारण ढूंढना उसको उचित है, सो मैं अपनी तुच्छ बुद्धि के अनुसार एक कारण पहले कह चुका हूँ. दूसरा यह मालूम होता है कि जैसे तारों की छांह चन्द्रमा की चांदनी में और चन्द्रमा की चांदनी [ ४९ ]
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सूर्य की धूप में मिलकर अपने आप उसका तेज बढाने लगती है। इसी तरह बहुत उन्नति में साधारण उन्नति अपने आप मिल जाती है. जबतक दो मनुष्यों का अथवा दो देशों का बल बराबर रहता है कोई किसी को नहीं हरा सकता, परंतु जब एक उन्नतिशाली होता है,आकर्षण शक्ति के नियमानुसार दूसरे की समृद्धि अपने आप उसकी तरफ़ को खिंचने लगती है. देखिये जबतक हिन्दुस्तान में और देशों से बढकर मनुष्य के लिये वस्त्र और सब तरह के सुख की सामग्री तैयार होती थी, रक्षा के उपाय ठीक-ठीक बन रहे थे, हिन्दुस्तान का वैभव प्रतिदिन बढता जाता था परंतु जब से हिंन्दुस्तान का एक टूटा और देशों में उन्नति हुई बाफ और बिजली आदि कलों के द्वारा हिंदुस्तान की अपेक्षा थोड़े खर्च, थोड़ी मेंहनत और थोड़े समय में सब काम होनें लगा, हिन्दुस्तान की घटती के दिन आ गए. जब तक हिन्दुस्तान इन बातों में और

देशों की बराबर उन्नति न करेगा, यह घाटा कभी पूरा न होगा. हिन्दुस्तान की भूमि में ईश्वर की कृपा से उन्नति करने के लायक सब सामान बहुतायत से मौजूद हैं केवल नदियों के पानी ही से बहुत तरह की कलें चल सकती हैं परंतु हाथ हिलाये बिना अपने आप ग्रास मुख में नहीं जाता. नई-नई युक्तियों का उपयोग किये बिना काम नहीं चलता. पर इन बातों से मेरा यह मतलब हरगिज़ नहीं है कि पुरानी-पुरानी सब बातें बुरी और नई-नई सब बातें एकदम अच्छी समझ ली जायें. मैंने यह दृष्टांत केवल इस विचार से किया है कि अधिकार और व्यापारादि के कामों में कोई-कोई युक्ति किसी समय काम की होती है वह भी कालान्तर में पुरानी रीति भांत पलट जाने पर अथवा किसी और तरह [ ५० ]
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की सूधी राह से निकल आने पर अपने आप निरर्थक हो जाती है और संसार के सब कामों का संबन्ध परस्पर ऐसा मिला रहता है कि एक की उन्नति, अवनति का असर दूसरों पर तत्काल हो जाता है इस कारण एक सावधानी बिना मन की वृत्तियों के ठीक होने पर भी जमाने के पीछे रह जाने से कभी-कभी अपने आप अवनति हो जाती है और इन्हीं कारणों से कहीं-कहीं प्रकृति के विपरीत भाव दिखाई देता है।"

"इससे तो यह बात निकली की हिन्दुस्तान इस समय कोई सावधान नहीं है” मुन्शी चुन्नीलाल ने कहा.

“नहीं यह बात हरगिज नहीं है, परंतु सावधानी का फल प्रसंग के अनुसार अलग-अलग होता है" लाला ब्रजकिशोर कहने लगे “तुम अच्छी तरह विचार कर देखोगे तो मालूम हो जायगा कि हरेक समाज का मुखिया कोई निरा विद्वान् अथवा धनवान नहीं होता, बल्कि बहुधा सावधान मनुष्य होता है और जो खुशी बड़े-बड़े राजाओं को अपने बराबर वालों में प्रतिष्ठा लाभ से होती है वह एक ग़रीब से ग़रीब लकडहारे को भी अपने बराबर वालों में इज्जत मिलने से होती है और उन्नति का प्रसंग हो तो वह धीरे-धीरे उन्नति भी करता जाता है परंतु इन दोनों की उन्नति का फल बराबर नहीं होता क्योंकि दोनों को उन्नति करने के साधन एक-से नहीं मिलते. मनुष्य जिन कामों में सदैव लगा रहता है अथवा जिन बातों का बार-बार अनुभव करता है बहुधा उन्हीं कामों में उसकी बुद्धि दौड़ती है और किसी सावधान मनुष्य की बुद्धि किसी अनूठे कामों में दौडी भी तो उसे काम में लाने के लिये बहुत कर के मौका नहीं मिलता. देश की [ ५१ ]
उन्नति-अवनति का आधार वहां के निवासियों की प्रकृति पर है. सब देशों मैं सावधान और असावधान मनुष्य रहते हैं परन्तु जिस देश के बहुत मनुष्य सावधान और उद्योगी होते हैं उस्की उन्नति होती जाती है और जिस देश मैं असावधान और कमकस विशेष होते हैं उस्की अवनति होती जाती है. हिन्दुस्थान मैं इस समय और देशों की अपेक्षा सच्चे सावधान बहुत कम हैं और जो हैं वे द्रव्य की असंगति सै, अथवा द्रव्यवानों की अज्ञानता सै, अथवा उपयोगी पदार्थों की अप्राप्तिसै, अथवा नई,नई युक्तियों के अनुभव करने की कठिनाईयों से, निरर्थक से हो रहे हैं और उन्की सावधानता बनके फूलोंकी तरह कुछ उपयोग किये बिना बृथा नष्ट हो जाती है परंतु हिन्दुस्थान मैं इस समय कोई सावधान न हो यह बात हरगिज़ नहीं है"

"मेरे जान तो आजकल हिन्दुस्थान मैं बराबर उन्नति होती जाती है. जगह, जगह पढ़ने लिखने की चर्चा सुनाई देती है, और लोग अपना हक़ पहचान्ने लगे हैं" बाबू बैजनाथनें कहा.

"इन सब बातों मैं बहुत सी स्वार्थपरता और बहुतसी अज्ञानता मिली हुई है परन्तु हकीकत मैं देशोन्नति बहुत थोड़ी है" लाला ब्रजकिशोर कहने लगे "जो लोग पढ़ते हैं, वे अपने बाप दादोंका रोजगार छोड़कर केवल नौकरी के लिये पढ़ते हैं और जो देशोन्नति के हेतु चर्चा करते हैं उनका लक्ष अच्छा नहीं है। वे थोथी बातों पर बहुत हल्ला मचाते हैं परंतु विद्या की उन्नति, कलों के प्रचार, पृथ्वी के पैदावार बढ़ाने की नई, नई युक्ति और लाभदायक व्यापारादि आवश्यक बातों पर जैसा चाहिये ध्यान नहीं देते जिस्सै अपने यहां का घाटा पूरा हो. मैं पहले कह चुका [ ५२ ]
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हूँ कि जिन मनुष्यों की जो वृत्तियां प्रबल होती हैं वह उनको खींच-खांचकर उसी तरफ ले जाती हैं सो देख लीजिये कि हिन्दुस्तान में इतने दिन से देशोन्नति की चर्चा हो रही है परन्तु अबतक कुछ उन्नति नहीं हुई और फ्रांस वालों को जर्मनी वालों से हारे अभी पूरे दस वर्ष नहीं हुए जिसमें फ्रान्स वालों ने सच्ची सावधानी के कारण ऐसी उन्नति कर ली कि वे आज सब सुधरी हुई बिलायतों में आगे दिखाई देते हैं.”

“अच्छा! आपके निकट सावधानी की पहचान क्या है? लाला मदनमोहन ने पूछा.

"सुनिये” लाला ब्रजकिशोर कहने लगे जिस तरह पांच- सात गोलियां बराबर-बराबर चुन दी जाये और उनमें से सिरे की

एक गोली को हाथ से धक्का दे दिया जाय तो हाथ का बल, पृथ्वी की आकर्षणशक्ति, हवा आदि सब कार्य कारणों के ठीक-ठीक जानने से आपस में टकरा कर अन्त की गोली कितनी दूर लुढ़केगी इसका अन्दाज हो सकता है इसी तरह मनुष्यों की प्रकृति और पदार्थों की जुदी-जुदी शक्ति का परस्पर संबन्ध विचार कर दूर और पास की हरेक बात का ठीक परिणाम समझ लेना पूरी सावधानी है परन्तु इन बातों को जानने के लिये अभी बहुत से साधनों की कसर है और किसी समय यह सब साधन पाकर एक मनुष्य बहुत दूर-दूर की बातों का ठीक परिणाम निकाल सकें यह बात असंभव मालूम होती है तथापि अपनी सामर्थ्य के अनुसार जो मनुष्य इस राह पर चले वह अपने समाज में साधारण रीति से सावधान समझा जाता है. एक मोमबत्ती एक तरफ से जलती हो और दूसरी दोनों तरफ जलती हो तो उसके [ ५३ ]
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सब में हां(!)
 


वर्तमान प्रकाश पर न भूलना परिणाम पर दृष्टि करना सावधानी का साधारण काम है और इसी से सावधानता पहचानी जाती है.”

“आपने अपनी सावधानता जताने के लिये इतना परिश्रम करके सावधानी का वर्णन किया इस लिये मैं आपका बहुत उपकार मानता हूं” लाला मदनमोहन ने हंस कर कहा.

“वाजबी बात कहने पर मुझको आप से ये तो उम्मीद ही थी.” लाला ब्रजकिशोर ने जवाब दिया, और लाला मदनमोहन से रुखसत होकर अपने मकान को रवाना हुए.


प्रकरण-८
सबमें हां(!)

एकै साधे सब सधै सब साधे सब जाहिं
जो गहि सींचै मूलकों फूलैं फलैं अघाहिं

कबीर.

"लाला ब्रजकिशोर बातें बनाने में बड़े होशियार हैं परंतु आपने भी इस समय तो उनको ऐसा मंत्र सुनाया कि वह बंद ही हो गए।" मुन्शी चुनीलाल ने कहा.

“मुझको तो उनकी लंबी चौड़ी बातों पर लुक्मान की वह कहावत याद आती है जिसमें एक पहाड़ के भीतर बड़ी गड़- गड़ाहट हुए पीछे छोटी-सी मूसी निकली थी” मास्टर शिंभू दयाल ने कहा.

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