परीक्षा गुरु ८

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परीक्षा गुरु
द्वारा लाला श्रीनिवासदास
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सब में हां(!)
 


वर्तमान प्रकाश पर न भूलना परिणाम पर दृष्टि करना सावधानी का साधारण काम है और इसी से सावधानता पहचानी जाती है.”

“आपने अपनी सावधानता जताने के लिये इतना परिश्रम करके सावधानी का वर्णन किया इस लिये मैं आपका बहुत उपकार मानता हूं” लाला मदनमोहन ने हंस कर कहा.

“वाजबी बात कहने पर मुझको आप से ये तो उम्मीद ही थी.” लाला ब्रजकिशोर ने जवाब दिया, और लाला मदनमोहन से रुखसत होकर अपने मकान को रवाना हुए.


प्रकरण-८
सबमें हां(!)

एकै साधे सब सधै सब साधे सब जाहिं
जो गहि सींचै मूलकों फूलैं फलैं अघाहिं

कबीर.

"लाला ब्रजकिशोर बातें बनाने में बड़े होशियार हैं परंतु आपने भी इस समय तो उनको ऐसा मंत्र सुनाया कि वह बंद ही हो गए।" मुन्शी चुनीलाल ने कहा.

“मुझको तो उनकी लंबी चौड़ी बातों पर लुक्मान की वह कहावत याद आती है जिसमें एक पहाड़ के भीतर बड़ी गड़- गड़ाहट हुए पीछे छोटी-सी मूसी निकली थी” मास्टर शिंभू

दयाल ने कहा. [ ५४ ]
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“उनकी बातचीत में एक बड़ा ऐब यह था कि वह बीच में दूसरे को बोलने का समय बहुत कम देते थे जिससे उनकी बात अपने आप फीकी मालूम होने लगती थी” बाबू बैजनाथ ने कहा.

"क्या करें? वह वकील हैं और उनकी जीविका इन्हीं बातों से है” हकीम अहमदहुसैन बोले.

“उन पर क्या है अपना-अपना काम बनाने में सब ही एक-से दिखाई देते हैं” पंडित पुरुषोत्तमदास ने कहा.

“देखिये सवेरे वह कांच की खरीदारी पर इतना झगड़ा करते थे परंतु मन में कायल हो गए इसलिए इस समय उनका नाम भी न लिया” मुन्शी चुन्नीलाल ने याद दिलाई.

“हां अच्छी याद दिलाई, तुम तीसरे पहर मिस्टर ब्राइट के पास गये थे? काचोंकी कीमत क्या ठहरी?" लाला मदनमोहन ने शिंभूदयाल से पूछा.

"आज मदरसे से आने में देर हो गई इसलिए नहीं जा सका।" मास्टर शिंभूदयाल ने जवाब दिया, परंतु यह उसकी बनावट थी। असल में मिस्टर ब्राइट ने लाला मदनमोहन का भेद जानने के लिये सौदा अटका रखा था.

"मिस्टर रसल को दस हजार रुपये भेजने हैं, उनका कुछ बंदोबस्त हो गया?” मुन्शी चुन्नीलाल ने पूछा.

“हां लाला जवाहरलाल से कह दिया है परंतु मास्टर साहब भी तो बंदोबस्त करने कहते थे इन्होंने क्या किया?" लाला मदनमोहन ने उलट कर पूछा.

"मैंने एक-दो जगह चर्चा की है पर अबतक किसी के

पकावट नहीं हुई” मास्टर शिंभूदयाल में जवाब दिया. [ ५५ ]
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सबमें हां(!)
 

"खैर! यह बातें तो हुआ ही करेंगी मगर वह लखनऊ का तायफा शाम से हाज़िर है उसके वास्ते क्या हुक्म होता है?" हकीम अहमदहुसैन ने पूछा.

अच्छा! उसको बुलवाओ पर उसके गाने ने समा न बाँधा तो आप को वह शर्त पूरी करनी पड़ेगी" लाला मदन- मोहन ने मुस्कुराकर कहा.

इसपर लखनऊ का तायफ़ा मुजरे के लिये खड़ा हुआ और उसने मीठी आवाज़ से ताल सुर मिलाकर सोरठ गाना शुरू किया.

निस्संदेह उसका गाना अच्छा था परंतु पंडितजी अपनी अभिज्ञता जताने के लिये बे समझे बूझे लट्टू हुए जाते थे, समझने वालों का सिर मौके पर अपने आप हिल जाता है परंतु पंडितजी का सिर तो इस समय मतवालों की तरह घूम रहा था. मास्टर शिंभूदयाल को दोपहर का बदला लेने के लिये यह समय सब से अच्छा मिला, उसने पंडितजी को आसामी बनाने हेतु और लोगों से इशारों में सलाह कर ली और पंडितजीक का मन बढ़ाने के लिये पहले सब मिलकर गाने की वाह-वाह करने लगे अंत में एक ने कहा “क्या स्यामकल्याण है” दूसरे ने कहा "नहीं ईमन है" तीसरे ने कहा "वाह झंझौटी है” चौथा बोला “देस है” इसपर सुनारी लड़ाई होने लगी.

“पंडितजी को सब से अधिक आनंद आ रहा है इस लिये इनसे पूछना चाहिये" लाला मदनमोहन ने झगड़ा मिटाने के मिस से कहा.

“हां-हां पंडितजी ने दिन में अपनी विद्या के बल से बेदखे भाले करेला बता दिया था सो अब इस प्रत्यक्ष बात के बताने

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में क्या संदेह है?” मास्टर शिंभूदयाल ने शय दी और सब लोग पंडितजी के मुंह की तरफ़ देखने लगे.

“शास्त्र से कोई बात बाहर नहीं है जब हम सूर्य चन्द्रमा का ग्रहण पहले से बता देते हैं तो पृथ्वी पर की कोई बात बतानी हमको क्या कठिन है?” पंडित पुरुषोत्तमदास ने बात उड़ाने के वास्ते कहा.

“तो आप रेल और तार का हाल भी अच्छी तरह जानते होंगे?” बाबू बैजनाथ ने पूछा. “में जानता हूं कि इन सब का प्रचार पहले हो चुका है क्योंकि "रेल पेल" और “एकतार" होने की कहावत अपने यहां बहुत दिन से चली आती है" पंडितजी ने जवाब दिया.

“अच्छा महाराज! रेल शब्द का अर्थ क्या है? और यह कैसे चलती है?" मास्टर शिंभूदयाल ने पूछा.

"भला यह बात भी कुछ पूछने के लायक है! जिस तरह पानी की रेल सब चीज़ों को बहा ले जाती है उसी तरह यह रेल भी सब चीज़ों को घसीट ले जाती है इस वास्ते इसको लोग रेल कहते हैं और रेल धुएँ के ज़ोर से चलती है यह बात तो छोटे-छोटे बच्चे भी जानते हैं”* पंडित पुरुषोत्तमदास ने जवाब दिया और इसपर सब आपस में एक दूसरे की तरफ़ देखकर मुस्कराने लगे.

"और तार?" मुन्शी चुन्नीलाल ने रही सही कलई खोलने के वास्ते पूछा.


  • देेश भाषा में बाफ और बिजली की शक्ति के वृत्तांत न प्रकाशित होने का यह फल है कि अब तक सर्व साधारण रेल और तार का भेद कुछ नहीं जानते.
  • गैस से भरा हुआ उड़ने का गुब्बारा. [ ५७ ]
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"इसमें कुछ योग विद्या की कला मालूम होती है.”* इतनी बात कहकर पंडित पुरुषोत्तमदास चुप होते थे परंतु लोगों को मुस्कराते देखकर अपनी भूल सुधारने के लिये झट पट बोल उठे कि “कदाचित् योग विद्या न होगी तो तार भीतर से पोला होगा जिसमें होकर आवाज़ जाती होगी या उसके भीतर चिट्ठी पहुँचाने के लिये डोर बंध रही होगी."

“क्यों दयालु बैलून कैसा होता है?” बाबू बैजनाथ ने पूछा.

“हम सब बातें जानते हैं, परंतु तुम हमारी परीक्षा लेने के वास्ते पूछते हो इसलिए हम कुछ नहीं बताते" पंडितजी ने अपना पीछा छुड़ाने के लिये कहा. परंतु शिंभूदयाल ने सब को जताकर झूठे छिपाव से इशारे में पंडितजी को उड़ने की चीज बताई. इसपर पंडितजी तत्काल बोल उठे "हमको परीक्षा देने की क्या जरूरत है? परंतु इस समय न बतावेंगे तो लोग बहाना समझेंगे. बैलून पतंग को कहते हैं.”

“वाह, वा, वाह! पंडितजी ने तो हद कर दी इस कलि काल में ऐसी विद्या किसी को कहां आ सकती है!” मुन्शी चुन्नीलाल ने कहा.

“हां पंडितजी महाराज! हुलक किस जानवर को कहते हैं?” हकीम अहमदहुसैन ने नया नाम बना कर पूछा.

"एक चौपाया है” मुन्शी चुन्नीलाल ने बहुत धीरे आवाज़ से पंडितजी को सुना कर शिंभूदयाल के कान में कहा.

"और बिना परों के उड़ता भी तो है" मास्टर शिंभूदयाल ने उसी तरह चुन्नीलाल को जवाब दिया.


  • गैस से भरा हुआ उड़ने का गुबारा [ ५८ ]
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“चलो चुप रहो देखें पंडितजी क्या कहते हैं” चुन्नीलाल ने धीरे से कहा.

“जो तुमको हमारी परीक्षा ही लेनी है तो लो, सुनो हलक एक चतुष्पद जंतु विशेष है और बिना पंखों के उड़ सकता है" पंडित जी ने सब को सुनाकर कहा.

"यह तो आप ने बहुत पहुँच कर कहा परंतु उसकी शक्ल बताइये” हकीम जी हुज्जत करने लगे.

“जो शक्ल ही देखनी हो तो यह रही” बाबू बैजनाथ ने मेंज पर से एक छोटा-सा कांच उठाकर पंडितजी के सामने कर दिया.

इसपर सब लोग खिल खिलाकर हंस पड़े.

“यह सब बातें तो आपने बता दीं परंतु इस राग का नाम न बताया" लाला मदनमोहन ने हँसी थमे पीछे कहा.

“इस समय मेरा चित्त ठिकाने नहीं है मुझको क्षमा करो” पंडित पुरुपोत्तमदास ने हार मान कर कहा.

"बस महाराज! आपको तो करेला ही करेला बताना आता है और कुछ भी नहीं आता" मास्टर शिंभूदयाल बोले.

“नहीं साहब! पंडितजी अपनी विद्यामें एक ही हैं. रेल और तार की हाल क्या ठीक-ठीक बताया है!” "और बैलून में तो आप ही उड चले!” “हुलक की सूरत भी तो आप ही में ने दिखाई थी!” "और सब से बढ़कर राग का रस भी तो इन्हीं ने लिया है” चारों तरफ लोग अपनी-अपनी कहने लगे. पंडित जी इन लोगों की बातें सुन-सुनकर लज्जा के मारे

धरती में गढ़े चले जाते थे पर कुछ बोल नहीं सकते थे. [ ५९ ]

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आखिर यह दिल्लगी पूरी हुई तब बाबू बैजनाथ लाला मदनमोहन को अलग ले जा कर कहने लगे “मैंने सुना है कि लाला ब्रजकिशोर दो-चार आदमियों को पक्का कर के यहां नए सिरे से कालिज स्थापना करने के लिये कुछ उद्योग कर रहे हैं यद्यपि सब लोगों के निरुत्साह से ब्रजकिशोर के कृतकार्य होने की कुछ आशा नहीं है तथापि लोगों को देशोपकारी बातों में अपनी रुचि दिखाने और अग्रसर बनने के लिये आप इसमें ज़रूर शामिल हो जायें अखबारों में धूम मैं मचा दूँगा. यह समय कोरी बातों में नाम निकालने का आ गया है क्योंकि ब्रजकिशोर नामवरी नहीं चाहते इसी लिये मैं चलकर आपको चेताने के लिये इस समय आपके पास आया था."

आप की बड़ी मेंहरबानी हुई मैं आपके उपकार का बदला किसी तरह नहीं दे सकता. किसी ने सच कहा है “हितहि परायोआपन आपनो अहित अपनपोजाय॥ वनकी औषधि प्रिय लगत तनको दुख न सुहाय॥"* ऐसा हितकारी उपदेश आपके बिना और कौन दे सकता है” लाला मदनमोहन ने बड़ी प्रीति से उनका हाथ पकडकर कहा.

और इसी तरह अनेक प्रकार की बातों में बहुत रात चली

गई तब सब लोग रुख़सत होकर अपने-अपने घर गए.


  • परोपि हितवान् बन्धुर्बंधु रप्यहित: पर:
    अहितो देहजो व्यधि हिमारण्यमोषधम्.

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