( ७५ ) संभवतः चंद्रगुप्त की दूसरी रानी अवश्य थी। इस बात का भी उल्लेख मिलता है कि कोटा ( राजपूताना ) में मध्य यगों में करद नाग राजाओं का एक वंश रहता था | राय बहादुर हीरालाल ने बस्तर के जो शिलालेख आदि प्रकाशित किए हैं, उनमें भी नागवंशियों का उल्लेख है और ये नागवंशी लोग संभवतः, मध्य प्रदेश के उन्हीं नागों के वंशज थे जो अपने नाम के स्मृति-चिह्न के रूप में नागपुर और नगरवर्धन ये दो नाम-स्थान छोड़ गए हैं और जो संभवतः भार-शिरों के अधिकृत स्थानों के अवशिष्ट है। ५. पद्मावती और मगध में कुशन शासन ( लगभग सन् ८० ई० से १८० ई. तक) $३३. नव नागों और गुप्तों के उत्थान से पहले का पद्मावती २. I. A. खंड १४, पृ० ४५ । ३. नागपुर ( अाजकल के मध्य प्रदेशवाला ) का उल्लेख दसवीं शताब्दी के एक शिलालेख में मिलता है। देखो हीरालाल का Inscriptions in the C. P. & Berar Her TU go १० और E. I. खंड ५. पृ० १८८. ग्यारहवीं और उसके बाद की शताब्दियों के नागवंशियों के वर्णन के लिये देखो हीरालाल का उक्त ग्रंथ पृ० २०६, २१०. और पृ० १६६ में आया हुआ उसका एक और उल्लेख नगरधन, जैसा कि ऊपर ($ ३१ क ) बतलाया जा चुका है, प्राचीन नंदिवद्धन नगर के ही स्थान पर बसा हुश्रा नगर का उल्लेख प्रभावती गुप्त के पूनावाले ताम्रलेखों और राष्ट्रकूट लेख ( देवली का ताम्रलेख ) में भी पाया है । अाजकल यह निगरधन कहलाता है जिसका अर्थ है-नागों का वद्धन । इसमें कानगर' शब्द नागर के लिये पाया है। है; और इस
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