( ८१ ) तक्षण कला का कोई नमूना या प्रमाण नहीं मिलता' । मत्स्य पुराण में मंदिरों तथा देवी-देवताओं की मूर्तियों के निर्माण के संबंध में हमें बहुत कुछ विस्तृत और वैज्ञानिक विवेचन मिलता है और हिंदुओं के और भी बहुत से ग्रंथों में इस विषय के उल्लेख भरे पड़े हैंजिनसे यह प्रमाणित होता है कि सन् ३००ई० से पहले भी इस देश में हिंदू देवताओं और देवियों के बहुत से और अनेक आकार-प्रकार के मंदिर आदि बना करते थे। इन सब प्रमाणों को देखते हुए दा बात में किसी प्रकार का संदेह नहीं किया जा सकता कि गुप्तों के समय से पहले भी सनातनी हिंदुओं की वास्तु- विद्या और राष्ट्रीय कला अपनी उन्नति के बहुत ऊँचे शिखर पर पहुँच गई थी; और जब भार-शिवों वाकाटकों तथा गुप्तों के समय में उनका फिर से उद्धार होने लगा, तब वैसे अच्छे भवन आदि फिर नहीं बनेऔर जो बने भी, वे पुराने भवनों आदि के मुकाबले के नहीं थे। स्वयं बौद्धों और जैनों के स्मृति-चिह्नों की अनेक आंतरिक बातों से ही यह बात भली भाँति प्रमाणित हो जाती है। एक उदाहरण ले लीजिए। बौद्धों और जैनों के स्तूपों आदि पर की नक्कासी में अप्सराओं के लिये कोई स्थान नहीं हो सकता था और उन पर अप्सराओं की मूर्तियाँ आदि नहीं बननी चाहिए थीं। परंतु वास्तव में यह बात नहीं है और हमें बोध गया १. इसका एक अपवाद भीटा का पंचमुखी शिवलिंग है ( A. S. R. १६०६-१०) जिस पर ई० पू० दूसरी शताब्दी का एक लेख अंकित है। २. श्रीयुक्त बृंदावन भट्टाचार्य ने अपने The Hindu Images नामक ग्रंथ में इन सबका बहुत ही योग्यतापूर्वक संग्रह किया है। ६
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