( ८६ ) चलेंगे। इसके उपरांत आंध्र, शक, पुलिंद, यवन (अर्थात् यौन ), कांभोज, वाहीक और शूर-आभीर लोग शासन करेंगे (अध्याय १८८ श्लोक ३४-३६)। उस समय वेदों के वाक्य व्यर्थ हो जायँगे, शूद्र लोग “भो" कहकर समानता-सूचक शब्दों में (ब्राह्मणों को ) संबोधन करेंगे और ब्राह्मण लोग उन्हें आर्य कह- कर संबोधन करेंगे ( ३६) । कर के भार से भयभीत होने के कारण नागरिकों का चरित्र भ्रष्ट हो जायगा (४६)। लोग इहलौकिक बातों में बहुत अधिक अनुरक्त हो जायँगे जिनसे उनके मांस और रक्त का सेवन और वृद्धि होती है (४६)। सारा संसार म्लेच्छ हो जायगा और सब प्रकार के कर्मकांडों और यज्ञों का अंत हो जायगा ( १६०-२६ )। ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य न रह जायँगे। उस समय सब लोगों का एक ही वर्ण हो जायगा, सारा संसार म्लेच्छ हो जायगा और लोग श्राद्ध आदि से पितरों को और तर्पण आदि से प्रेतात्माओं को तृप्त नहीं करेंगे (४६)। वे लोग देवताओं की पूजा वर्जित कर देंगे और हड्डियों की पूजा करेंगे। ब्राह्मणों के निवास स्थानों, बड़े-बड़े ऋषियों के अाश्रमों, देवताओं के पवित्र स्थानों, तीर्थों और नागों के मंदिरों में एडूक (बौद्ध स्तप) बनेंगे जिनके अंदर हड्डियाँ रखी रहेंगी। वे लोग देवताओं के मंदिर नहीं बनवावेंगे।" ( श्लोक ६५,६६ और ६७ )। १. एडूफान् पूजयिष्यन्ति वयिन्ति देवताः । शूद्राश्च प्रभविष्यन्ति न द्विजाः युगसंक्षये ।। श्राश्रमेषु महर्षीणां ब्राह्मणावसथेषु च । देवस्थानेषु चैत्येषु नागानामालयेषु च ।। एकचिन्हा पृथिवी न देवगृहभूषिता । कुम्भकोणम् वाला संस्करण, पृ० ३१४ ।।
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