पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/१११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

(८५) उसने कहा है- "ये म्लेच्छ लोग ब्राह्मणों की हत्या करते हैं और उनके यज्ञों तथा धार्मिक कृत्यों में बाधा डालते हैं। ये आश्रमों की कन्याओं को उठा ले जाते हैं। भला ऐसा कौन सा अपराध है जो ये दुष्ट नहीं करते ? ' ( कथासरित्सागर १८)। ६ ३६ क-कुशनों के समय के बौद्ध भारत को हिंदू जाति सन् १५०-२०० ई० की जिस दृष्टि से देखती थी, उसका वर्णन सामाजिक अवस्था पर संक्षेप में महाभारत के बनपर्व के अध्याय महाभारत १८८ और १६०१ में इस प्रकार किया गया है। "इसके उपरांत देश में बहुत से म्लेच्छ राजाओं का राज्य होगा। ये पापी राजा सदा मिथ्या आचरण करेंगे, मिथ्या सिद्धांतों के अनुसार शासन करेंगे और इनमें मिथ्या विरोध १. अध्याय १९० में प्रायः वहीं बातें दोहराई गई हैं जो पहले अध्याय १८८ में आ चुकी हैं। ऐसा जान पड़ता है कि प्रारंभ में अध्याय १८८ का ही पाट था जो अध्याय १९० के रूप में दोहराया गया है और उसके अंत में कल्कि का नाम जोड़ दिया गया है जो अध्याय १८८ में नहीं है और जो स्पष्ट रूप से वायु-प्रोक्त पुराण से लिया गया है (अ० १९१, १६) । यद्यपि वायु-प्रोक्त ब्रह्मांड पुराण में कल्कि का उल्लेख है, पर आज-कल के वायुपुराण में उसका कहीं उल्लेख नहीं है । यह समय लगभग सन् १५० ई० से २०० ई० तक का उन राजाओं के नामों के आधार पर निश्चित किया गया है जिनका अध्याय १८८ में उल्लेख है।