( ६४ ) उन यूनानियों पर कभी पारसियों का प्रत्यक्ष रूप से शासन नहीं था; पर जो प्रदेश आज-कल संयुक्त प्रांत और बिहार कहलाता है, उस पर कुशन साम्राज्य का प्रत्यक्ष रूप से अधिकार और शासन था। यह कोई नाम मात्र की अधीनता नहीं थी जो सहज में दूर कर दी जाती और न यह केवल दूर पर टँगा हुआ प्रभाव का परदा था जो सहज में फाड़ डाला जाता । यहाँ तो प्रत्यक्ष रूप से ऐसे बलवान् और शक्तिशाली साम्राज्य-शक्ति पर आक्रमण करना था जो स्वयं उस देश में उपस्थित थी और प्रत्यक्ष रूप से शासन कर रही थी। भार-शिवों ने एक ऐसी ही शक्ति पर आक्रमण किया था और सफलतापूर्वक आक्रमण किया था। जो शातवाहन इधर तीन शताब्दियों से दक्षिण के सम्राट होते चले आ रहे थे, वे शातवाहन अभी पश्चिम में शक-शक्ति के विरुद्ध लड़-झगड़ ही रहे थे कि इधर भार-शिवों ने वह काम कर दिखलाया जिसे अभी तक दक्षिणापथ के सम्राट् पूरा नहीं कर सके थे। सरलता ६४. जिस प्रकार शिवजी बराबर योगियों और त्यागियों की तरह रहते हैं; उसी प्रकार भार - शिवों का शासन भी बिलकुल योगियों का. सा और सरल भार-शिव शासन की था। उनकी कोई बात शानदार नहीं होती थी, सिवा इसके कि जो काम उन्होंने उठाया था, वह अवश्य ही बहुत बड़ा और शानदार था। उन्होंने कुशन साम्राज्य के सिक्कों और उनके ढंग की उपेक्षा की और फिर से पुराने हिंदू ढंग के सिक्के बनाने आरंभ किए। उन्होंने गुप्तों की सी शान-शौकत नहीं बढ़ाई । शिव की तरह उन्होंने भी जान-बूझकर अपने लिये दरिद्रता अंगीकार की थी। उन्होंने हिंदू प्रजातंत्रों को स्वतंत्र किया और उन्हें इस
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