पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/१२१

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(६५) योग्य कर दिया कि वे अपने यहाँ के लिये जैसे सिक्के चाहें, वैसे सिक्के बनावें और जिस प्रकार चाहें, जीवन निर्वाह करें। जिस प्रकार शिवजी के पास बहुत से गण रहा करते थे, उसी प्रकार इन भार-शिवों के चारों ओर भी हिंदू राज्यों के अनेक गण रहा करते थे । वस्तुतः वही लोग शिव के बनाए हुए नंदी या गणों के प्रमुख थे। वे केवल राज्यों के संघ के नेता या प्रमुख थे और सब जगह स्वतंत्रता का ही प्रचार तथा रक्षा करते थे। वे लोग अश्वमेध यज्ञ तो करते थे, पर एकराट् सम्राट नहीं बन बैठते थे। वे अपने देशवासियों के मध्य में सदा राजनीतिक शैव बने रहे और सार्व- राष्ट्रीय दृष्टि से साधु और त्यागी बने रहे । ६ ४१. शिव का उपासक एक संकेत या चिन्ह का उपासक हुआ करता है और बिंदु की उपासना या आराधना करता है । ये शिव के उपासक अवश्य ही बौद्ध मूर्तिपूजकों को उपा- सना की दृष्टि से निम्न कोटि के उपासक समझते रहे होंगे। भार-शिव लोग चाहे बौद्धों को इस प्रकार निम्न कोटि का समझते रहे हों और चाहे न समझते रहे हों, परंतु इतना तो हम अवश्य ही निश्चयपूर्वक कह सकते हैं कि नाग देश में कम से कम इस विचार से तो बौद्ध धर्म का अवश्य ही पतन या ह्रास हुआ होगा कि उसने राष्ट्रीय सभ्यता के शत्रुओं के साथ राजनी- तिक मेल रखा था। उन दिनों बौद्ध धर्म मानों एक अत्याचारी वर्ग १. नाग-वाकाटक काल में लंका के बौद्ध लोग भगवान् बुद्ध का दाँत प्रांध्र से उठाकर लंका ले गए थे (६ १७५)। इससे सूचित होता है कि उन दिनों भारत में बौद्ध उपासना का श्रादर नहीं रह गया था ( मिलायो ६ १२६ )।