( १०२ ) नागर स्थापत्य का मद्र प्रजातंत्र सभी भार-शिवों के साम्राज्य के अंतर्गत थे। कुशनों ने भार-शिव काल के ठीक मध्य में अर्भात् सन् २२६- २४१ ई० में-अर्दशिर की अधीनता स्वीकृत की थी और सन् २३८ से २६९ ई० के बीच में उन्होंने अपने सिक्कों पर शापुर की मूर्ति को स्थान दिया था। यह भार-शिवों के दबाव का ही परिणाम था । इस प्रकार भार-शिवों के दस अश्वमेध कोरे यज्ञ ही नहीं थे। $ ४५. अश्वमेध किसी राजवंश के पुनरुत्थान, राजनीतिक पुनरुत्थान और सनातनी संस्कृति के पुनरुद्धार के सूचक होते हैं । परंतु इन अश्वमेधों के अतिरिक्त इस बात का एक और स्वतंत्र प्रमाण भी मिलता है कि उस समय सनातनी संस्कृति का पुनरुद्धार और नवीन युग का आरंभ हुआ था। नागर शब्द-जैसा कि कर्कोट नागर आदि शब्दों में पाया जाता है- निस्संदेह रूप से नाग शब्द के साथ संबद्ध है और उस शब्द का देशी भाषा का रूप है जो यह सूचित करता है कि इस शब्द की व्युत्पत्ति नाग शब्द से है, और ठीक उसी प्रकार है जिस प्रकार नगरधन शब्दः-नागरवद्धन ($ ३२ ) में है। स्थापत्य शास्त्र का एक पारिभाषिक शब्द है नागर शैली, और इसकी व्याख्या केवल इस बात को आधार मानकर नहीं की जा सकती कि इसका संबंध नगर (शहर) शब्द के साथ है। मत्स्य पुराण में जिसमें सन् २४३ ई० तक की अर्थात् गुप्त काल की समाप्ति से पहले की ही राजनीतिक घटनाओं का उल्लेख है-यह शैली-नाम नहीं मिलता। पर हाँ, मानसार नामक ग्रंथ में यह शैली-नाम अवश्य आया है और वह ग्रंथ गुप्त काल में अथवा उसके बाद बना था। नागर शैली से जिस शैली का अभिप्राय है, जान पड़ता है कि उस शैली का
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