( १०१) कि यौधेयों और मालवों का पुनरुत्थान नागों के साथ ही साथ हुआ था। ४४. कुशन शक्ति को खास धक्का नाग सम्राटों के हाथों लगा था। पर साथ ही यह बात भी प्रायः नाग साम्राज्य, उसका निश्चित सी है कि इन बड़े बड़े प्रजातंत्रों का स्वरूप और विस्तार एक संघ सा था; और इसलिये नागों को अपने इन युद्धों में इन प्रजातंत्री समाजों से भी अवश्य ही सहायता मिली होगी। हम कह सकते हैं कि नाग साम्राज्य एक प्रजातंत्री साम्राज्य था । जान पड़ता है कि मगध में कोट राजवंश का उत्थान भी इन्हीं नागों की अधीनता में हुआ था ( देखो तीसरा भाग)। गुप्त राजवंश की जड़ भी नाग काल में ही जमी थी और पुराणों में इस बात का स्पष्ट रूप से उल्लेख है। (देखो तीसरा भाग ११० ) । यहाँ यह बात भी ध्यान में रखनी चाहिए कि नाग लोग भी उत्तर से ही चलकर आए थे और पूर्व में आकर बस गए थे ( देखो तीसरा भाग $ ११२)। मगध के कोट और प्रयाग के गुप्त भी संभवतः नाग साम्राज्य के अधी- नस्थ और अंतर्गत ही थे । वायु और ब्रह्मांड पुराण में इस बात का उल्लेख है कि बिहार में नव नागों की राजधानी चंपावती में थी। नागों ने अपने राज्य का विस्तार मध्य प्रदेश तक कर लिया था। और इस बात का प्रमाण परवर्ती वाकाटक इतिहास से और नाग- वर्द्धन नंदिवर्द्धनतथा नागपुर आदि स्थान-नामों से मिलता है। विंध्य पर्वतों के ठीक मध्य में पुरिका में भी उनकी एक राजधानी थी और वही मानों मालवा जाने के लिये प्रवेश-द्वारा था । हम यह मान सकते हैं कि मोटे हिसाब से बिहार, आगरे और अवध के संयुक्त प्रदेश, बुंदेलखंड, मध्य प्रदेश, मालवा, राजपूताना और पूर्वी पंजाब
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