(१०५) और अंदर पत्थरों के ढों कों की चुनी हुई एक चौकोर कोठरी रही होगी क्योंकि इस बात का कोई चिह्न नहीं मिलता कि इसमें कोई खंभेदार सभा-मंडप, ड्योढ़ी या कोई गर्भगृह रहा होगा।" इस काल में एक शिखर-शैली भी मिलती है। इसमें नागर ढंग की चौकोर इमारत पर चोपहला शिखर होता है। इस शैलो का एक बहुत छोटा मंदिर मुझे सूरजमऊ में मिला है। इस मंदिर में पहले शिव-लिंग प्रतिष्ठित था, पर अब वह लिंग बाहर है और यह मंदिर नाग बाबा का मंदिर कहलाता है। कर्कोट नागर में शिखरोंवाले जो छोटे छोटे मंदिर मिले हैं। वे सब किसी एक ही ढंग के नहीं हैं । सूरजमऊ में मैंने जो मंदिर ढूंढ़ निकाला था, उसका नीचेवाला चौकार भाग गुम शैली का था; और ऊपरी या शिखरवाले अंश को देखने से जान पड़ता है कि उसमें एक पर एक कई दरजे थे और पर्वत के शिखर के ढग पर बने थे। खजुराहो में चौंसठ योगिनियों के जो मंदिर हैं, वे सब भी इसी ढंग के हैं। कनिंघम ने चौंसठ योगिनियों के मंदिरों का समय राजा ढंग के प्रपिता से पहले का अर्थात् लगभग सन् ८०० ई० का निर्धारित किया है (A. S. R. २१, ५७ ) और उसका यह निर्धारण बहुत ठीक है। यदि सूरजमऊवाले नाग बाबा के मंदिर और चौंसठ योगिनियों के १. नागर ढाँचे के संबंध या नकशे के संबंध में मिलाश्रो गोपी- नाथ रावकृत Iconography २, १, पृ० ६६ । नागरं चतुरस्रं स्यात् । देखो शिल्परत्न १६, ५८ । २. देखो माडर्न रिव्यू ( Modern Review ) अगस्त १६३२ सूरजमऊ कसबा मध्यभारत में छतरपुर के पास है।
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