( १०६) मंदिरों को देखा जाय तो तुरंत ही पता चल जाता है कि नाग बाबा वाला मंदिर बहुत पुराना है। कनिंघम को तिगोवा में इस प्रकार के छोटे-छोटे ३४ मंदिरों की नीबें मिली थी और ये सब मंदिर पूर्व की ओर तो खुले हुए थे और बाकी तीनों ओर से बंद थे, अर्थात् ये सबके सब बिलकुल सूरजवाले मंदिर की तरह थे लंबाई-चौड़ाई में भी उसके बराबर ही थे। वहाँ की मूर्तियों के संबंध में कनिघम का मत था कि वे गुप्तकाल की बनी हुई हैं और इन मंदिरों का समय भी उसने यही निर्धारित किया था । स्मिथ ने अपने History of India नामक ग्रंथ के प्रकाशन के उपरांत तिगोवावाले मंदिरों के भग्नावशेष के पूर्व-निर्धारित समय में कुछ परिवर्तन या सुधार किया था और कहा था कि ये वाकाटक काल के अर्थात् समुद्रगुप्त के समय के हैं 3 । मुझे वहाँ शिखरों के बहुत से चौकोर टुकड़े मिले थे। कर्कोट नागरवाले छोटे छोटे शिवर-मुक्त मंदिर भी कम से कम सन् ३५० ई० के लगभग के होंगे और इसी समय के उपरांत से मालवों का फिर कुछ पता नहीं चलता और इस उजड़े हुए नगर में उस समय के पीछे का कोई सिक्का नहीं मिलता। ये छोटे मंदिर, जिनके भग्नाव- शेष कर्कोट नगर और तिगोवा में मिले हैं, ऐसे हिंदू मंदिर हैं जो १. मुझे अभी तक कहीं इनके चित्र नहीं मिले हैं। देखो प्लेट २ क। २. A, S. R.६; ४१-४४ । ३. J. R. A. S. १६४, पृ० ३३ २४ । मैं इससे सहमत हूँ। इसमें का बारीक काम वैसा ही है जैसा नचना में है। स्थान का नाम तिगवाँ है।
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