( ११३ ) टक शिलालेखों में अक्षर ऊपर की ओर संदूक-नुमा शीर्प रेखा से घिरे हुए मिलते हैं, पर सन् ८०० ई० के लगभभ नागरी लिपि में वह एक सीधी रेखा के रूप में हो गई थी। जान पड़ता है कि नागरी नाम का प्रयोग उस लिपि के लिये होता था जो ईसवी चौथी शताब्दी में तथा पांचवीं शताब्दी के प्रारंभ में प्रचलित थी और जिसमें अक्षरों की शीर्षरेखा संदूकनुमा होती थी। यह बात भी विशेष रूप से ध्यान में रखने की है कि इस संदूकनुमा लिपि का सबसे अधिक प्रचार भी ठीक उन्हीं के स्थानों में था, जिन स्थानों में नागों का शासन सबसे प्रबल था, अर्थात् बुंदेलखंड और मध्य प्रदेश में ही इस लिपि का विशेष प्रचार था। मध्य प्रदेश में हमें नाग काल के पहले का एक कुशन शिलालेख भेड़ाघाट में मिलता है जो साधारण ब्राह्मी लिपि में है। इसलिये विलक्षण संदूकनुमा लिपि का प्रचार कुशनों के उपरांत और वाकाटकों के पहले हुआ था । हम निश्चित रूप से और दृढ़तापूर्वक कह सकते हैं कि उसका प्रचार नाग काल में हुआ था। ६५०. गंगा और यमुना की मूर्तियों और नाग काल के साथ उनके संबंध का उल्लेख ऊपर हो चुका है। वाकाटक काल में भी इस प्रकार की मूर्तियाँ बराबर मिलती हैं गंगा और यमुना (६८६); और आगे गुप्त कला में भी उसके उपरांत चंदेल कला में भी इस प्रकार की मूर्तियाँ देखने में आती हैं। १. कनिंघम A. S. R. २१, ५६. कनिंघम ने जिस फाटक का उल्लेख किया है, वह कल खजुराहो के म्यूजियम या अजायबघर के द्वार पर लगा है।
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