(११२) माषा $ ४६. यह बात निश्चित है कि नागों ने प्राकृत भाषा का तिर- स्कार नहीं किया था। अपने सिक्कों पर वे प्राकृत का व्यवहार करते थे। राजशेखर यद्यपि बाद में हुआ है, तो भी उसने लिखा है कि टक्क लोग अपभ्रंश-भाषाओं का व्यवहार करते हैं। कुशनों के आने से पहले भी प्राकृत हो राज-भाषा थी और उनके बाद भी वही बनी रही। राजनीतिक क्षेत्र में वे प्रजातंत्रवादी थे और भाषा के संबंध में भी वे प्रजा के बहुमत का ध्यान रखते थे। ६४६ क. इसी प्रकार यह भी बतलाया जा सकता है कि लिपि का नाम नागरी क्यों पड़ा। मैं समझता हूँ कि लिपि का यह नाम नाग राजवंश के कारण पड़ा है। क्योंकि शीर्ष-रेखा लगाकर अक्षरों को लिखने की प्रथा उन्हीं के समय में चली थीः और इसके अस्तित्व का प्रमाण हमें पृथिवीपेण प्रथम के समय से नवना ओर गंज के शिलालेखों में मिलता है। वाका- नागर लिपि १. एपिग्राफिया इंडिका खंड १७, पृ० ३६२ में जो यह एक नई बात कही गई है कि नचना और गंज के शिलालेख पृथिवीषेण द्वितीय के हैं, उससे मैं जोरदार शब्दों में अपना मत-भेद प्रकट करता हूँ। मैंने उनकी लिपियों का बहुत ध्यानपूर्वक मिलान किया है और यह स्थिर करना असंभव है कि वे ईसवी चौथी शताब्दी के बाद के हैं। इन लेखों के काल के संबंध में फ्लीट का जो मत था, वह बिलकुल ठीक था । पृथिवीशेण द्वितीय के प्लेटों से यह बात स्पष्ट रूप से प्रकट होती है कि नचनावाला पृथिवीषेण उससे बहुत पहले हुश्रा था । ( वाकाटक शिलालेखों के संबंध में देखो ६ ६१ क ।)
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