(१३३) व भी है। ऊपर की ओर का चिह्न भी है यह थ (व)ी पढ़ा जाना चाहिए। जिस अक्षर को डा० स्मिथ ने त पढ़ा है, वह ष है और उसके ऊपर की मात्रा है। इसके बाद का अक्षर ण है । इस प्रकार का पूरा नाम पृथ (व) पेण अर्थात् पृथिवीपेण जान पड़ता है। नीचे की ओर दाहिने कोने पर रेलिंग के पास एक अंक है जोह के समान है और जिसका अर्थ यह है कि यह सिक्का उसके शासन-काल के नवें वर्ष में बना था। इसमें का ण टेढ़ा या झुका हुआ ओर वैसा ही है, जैसा गुप्र लेखों में पाया जाता है. और यह अक्षर भी तथा बाकी दूसरे अक्षर भी उन अक्षरों से मिलते हैं जो आरंभिक गुप्त काल में लिखे जाते थे। इसी वर्ग ( कोसम के सिक्के ) में डा. स्मिथ ने उसी प्लेट नं० २० में ५ वी संख्या पर एक और सिक्के का चित्र दिया है। इस सिक्के पर का लेख उनसे पढ़ा नहीं गया था। इस पर भी वही पाँच शाखाओंवाले वृक्ष की आकृति बनी है, पर वह अधिक कल्पनामय ओर रूढ़ रूप में है और उसपर भी पर्वत का वैसा ही चिह्न बना है, जैसा कि पृथिवीपेण प्रथम के सिक्के (आकृति नं०४) पर है। जान पड़ता है कि यह पर्वत विंध्य ही है। इस पर भी वही वाकाटक चक्र बना है जो दुरेहा के स्तंभ और गंज तथा नचना के वाकाटक शिलालेखो और साथ ही प्रवरसेन प्रथम के ७६ वें वर्ष के सिक्के पर अंकित है (६३० ) । इस १. यह सिक्का बड़ा है, इसलिये इस पर पर्वत भी बड़ा है पर इसकी प्राकृति ठीक वैसी ही है, जैसी ४ नंबर वाले सिक्के पर है । मैंने इन सिक्कों के जो चित्र दिए हैं, वे उनके मूल श्राकार से कुछ छोटे । इन पर क लेख पढ़ने के लिये मैंने इनके ठपों से काम लिया था।
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