(१३४ ) सिक्के पर पीछे की ओर एक ध्वज की ओर मुख किए हुए वैसा ही दुर्बल साँड़ बना है, जैसा पल्लव मोहरों पर है (S. I. I. २, पृ० ५२१)। इसके ऊपरी भाग पर मकर का सिर बना है जो गंगा का वाहन तथा चिह्न है । साँड़ के ऊपर एक और आकृति है जो एक पद-स्थल पर स्थित है और जिसके मुख के चारों ओर प्रभा-मंडल है जो संभवतः शिव की मूर्ति है। यह मूर्ति भी प्रायः वैसी ही है जैसी पल्लव मोहर पर है। पीछे की ओर चक्र के ऊपर एक किनारे लेख है जो 'रुद्र' पढ़ा जाता है। र का ऊपरी भाग संदूकनुमा है और द के ऊपर की रेखा कुछ मोटी है। पर्वत के दाहिने भाग में १०० का अंक है । मैं समझता हूँ कि यह रुद्रसेन का सिक्का है जो संवत् १०० में बना था। यह सिक्का अपनी बनावट, गंगा के चिह्न, पर्वत, वृक्ष, साँड़ और चक्र के कारण प्रवरसेन प्रथम और पृथिवीपेण प्रथम के सिक्कों (देखो ६३० ) के ही समान है। १. इसमें साँड़ ध्वज की ओर चला जा रहा है, परंतु पल्लव मोहर पर वह शांत खड़ा है। इससे और पहले की पल्लव मोहर पर -जिसका उल्लेख E. I. खंड ८, पृ० १४४ में है-साँड़ खड़ा हुश्रा है और साथ ही मकरध्वज भी है। २. मैं समझता हूँ कि ब्रैकेट के श्राकार का जो मकरध्वज है, उसका नाम मकर-तोरण था । संयुक्त प्रांत में ब्रैकेट को अब तक टोड़ी या तोड़ी कहते हैं । पटने के म्यूजियम में काँसे का बना हुअा एक पुराना मकर-तोरणवाला ध्वज प्रस्तुत है जिसके ऊपर एक चक्र है। यह बकसर के पास मिला था।
पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/१६४
दिखावट