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पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/१७६

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(१४६) इसलिये हम यह मान लेते हैं कि १०० अथवा ६६ वर्षों तक तो वाकाटकों का स्वतंत्र शासन रहा और ६० वर्षों तक प्रवरसेन तथा रुद्रसेन ने शासन किया। स्वयं रुद्रसेन प्रथम ने, सम्राट के रूप में नहीं बल्कि राजा के रूप में, संभवतः चार वर्षों तक शासन किया था; ( और यही वह चार वर्षों का अंतर है जो पुराणों के दो वर्गों में मिलता है-वर्षशतम् या १०० वर्ष और १६ वर्ष ) । ६६८. इसके अतिरिक्त पुराणों में राज्य-क्रम की एक और महत्त्वपूर्ण बात मिलती है। वे सन् २३८ या २४३ ई०२ के लग- भग शातवाहनों के शासन का अंत करके और उनके समकालीन मुरुड-तुखारों का वर्णन ( लगभग २४३ या २४७ ई०३ ) समाप्त करके विंध्यशक्ति के उदय का वर्णन आरंभ करते हैं। इसलिये यदि हम यह मान लें कि विंध्यशक्ति का राज्य सन् २४८ ई. में आरंभ हुआ था तो पुराणों और शिलालेखों के आधार पर हमें .. नीचे लिखा क्रम और समय मिलता है १. विंध्यशक्ति सन् २४८-२८४ ई० २. प्रवरसेन प्रथम २८४-३४४ ३. रुद्रसेन प्रथम ३४४-३४८ ४. पृथिवीषेण प्रथम ३४८-३७५ ५. रुद्रसेन द्वितीय ३७५-३६५ ६. प्रभावती गुप्ता (क) दिवाकरसेन की अभिभाविका के रूप में ३६५-४०५ १. एक प्रकार से कानून की दृष्टि से वाकाटक वंश का अंत प्रवर- सेन प्रथम से ही हो गया था । (६२८, पाद-टिप्पणी १)। २. J. B. O. R. S. खंड १६, पृ० २८० । ३. उक्त जरनल और खंड, पृ० २८। ... > "