पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/१७५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

(१४५ ) लिखा है-"जिसके उत्तराधिकारी पुत्र और पौत्र बराबर होते चले गए थे और जिसके कोश तथा दंड या शासन के साधन बराबर सौ वर्षों तक बढ़ते गए थे” (फ्लीट कृत G. I. पृ. २४)। कोसम के सिक्कों में से रुद्र का जो सिक्का है, उस पर वाकाटकों का विशिष्ट चक्र है और उस पर १०० वाँ वर्ष अंकित है (६६१) । इस प्रकार रुद्रसेन ने अपने राजवंश के शासन के एक सौ वर्ष पूरे किए थे और उसने चार वर्षों तक राज्य किया था। ६६७. विष्णुपुराण और भागवत में दो जोड़ दिए हैं। उनमें से एक तो १०० वर्ष है और दूसरा कुछ अनिश्चित है [ ५६, ६ या ६० (?) ] है और वहाँ का पाठ कुछ ठीक नहीं है। विष्णुपुराण की हस्तलिखित प्रतियों में है--वर्ष-शतम् घट; वर्षाणि और वर्ष- शतम् पंचवर्षाणि; और भागवत में है-वर्प-शतम् भविष्यति अधिकानि षट् । जान पड़ता है कि वर्ष शतम् लिखने के उपरांत कुछ और भी लिखा गया था जो अब साफ साफ पढ़ा नहीं जाता। विष्णुपुराण में वर्षशतम् के उपरांत फिर वर्षाणि शब्द को दोहराने की कोई आवश्यकता नहीं थी। विष्णुपुराण के संपादकों या प्रतिलिपि करने वालों के सामने दो अंक थे। एक तो शिशुक और प्रवीर के लिये ६० वर्ष का और दूसरा विध्यशक्ति के वंश के लिये १०० या १६ वर्षों का । ६६ और ६० को मिला. कर उन्होंने वर्षशतानि पंच कर दिया या षट कर दिया और जान पड़ता है कि १०० और ५६ या १०० और ६० को घटाकर १०६ कर दिया गया। यहाँ यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि उन्होंने न तो वायु पुराण और ब्रह्मांड पुराण का ६० वाला अंक लिया, और न उनका ६६ वाला अंक लिया बल्कि उन दोनों जगह उन्होंने १०६ या १५६ पढ़ा । १. P. T. ५०, टिप्पणी ३० । १०