(१५४) राज्याभिषेक के काल से आरंभ किया था और प्रवरसेन प्रथम के उदाहरण का अनुकरण किया था। ६७३. वाकाटकों की साम्राज्य-संघटन की प्रणाली यह थी कि वे अपने पुत्रों तथा संबंधियों को अपने भिन्न भिन्न प्रांतों के शासक नियुक्त करते थे और यह प्रणाली वाकाटक-साम्राज्य उन्होंने नाग सार ज्य से ग्रहण की थी। संघटन विशेषतः इस विषय में पुराणों में बहुत सी बातें दी हुई हैं। उनमें कहा है कि प्रवरसेन के चार लड़के प्रांतों के शासक नियुक्त हुए थे; तीन वंश ऐसे थे, जिनके साथ उनका विवाह-संबंध स्थापित हुआ था और एक वंश उनके वंशजों का था जो इन चार केंद्रों से शासन करते थे-माहिषी, मेकला, कोसला और विदूर' । यहाँ माहिषी से अभिप्राय उसी माहिष्मती से है जो नर्मदा के किनारे नीमाड़ के अँगरेजी जिले और इंदौर राज्य के नीमाड़ जिले के बीच में है। यह पश्चिमी मालवा प्रांत की राजधानी थी। बरार के आस-पास के प्रदेशों का तीसरे वाकाटककाल में फिर इसी प्रकार विभाग हुआ था-कोसला, मेकला और १. विंध्यकानाम् कुलानाम् ते नृपा वैवाहिकास्त्रयः । ब्रह्मांड । इसमें के वैवाहिकाः शब्द का पाठ दूसरे पुराणों में भूल से वै वाहाकाः और वै वाहिकाः दिया है । यह भूल है तो विलक्षण, पर सहज में समझ में आ जाती है। वैवाहिकाः के उन्होंने दो अलग अलग शब्द मान लिए थे-वै और वाहिकाः, और तब उन्होंने वाहिकाः का संस्कृत वाहलीकाः और बाहलीकाः बना लिया था । २ देखो J. R. A. S. १६१०, पृ. ४४४, जहाँ इसके ठीक स्थान का निर्देश किया गया है।
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