पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/१८८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

(१५८) जान पड़ता है और जो निजाम राज्य की पुरानी राजधानी है। वैदूर्य सतपुड़ा पर्वत है। महीषी के शासकों के दो वर्ग थे-एक तो महिषियों के स्वामी थे जो राजा कहलाते थे और दूसरे पुष्य- मित्र थे जिनके साथ दो और समाज थे और जो राजा नहीं कह- लाते थे। ये भी उन्हीं महीषियों अर्थात् पश्चिमी मालवा के निवा- सियों के अंतर्गत हैं जिसे परवर्ती वाकाटक शिलालेखों आदि में मालव कहा है। ये प्रजातंत्री महीषी लोग संभवतः इसी राजा के अधीन थे जो वाकाटकों के करद और अधीनस्थ थे। ६७४. अब हम इन केंद्रों पर अलग अलग विचार करते हैं। महीषी के एक राजा का नाम सुप्रतीक नभार दिया है जो शाक्य- मान का पुत्र था। वह महीषियों का महीषी और तीन मित्र राजा और देश का स्वामी था । इस प्रजातंत्र राजा के सिक्के भी मिले हैं। उन सिक्कों पर लिखा है-महाराज श्रीप्र (f) तकर । प्रो० रैप्सन ने, जिन्होंने इन सिक्कों के चित्र प्रकाशित किए थे, बतलाया था कि ये सिक्के नागों के सिक्कों के अंतर्गत हैं। पुराणों पूरे हो जाते हैं। महाभारत में भी इस प्रति के दो विभागों का उल्लेख है जिनके नाम के साथ कोसल है ( सभापर्व ३१, १३)। ( कोसल का राजा, वेण तट का राजा, कांतारक और पूर्वी कोसलों का राजा)। १-२. सुप्रतीको नभारस्तु समा भोक्ष्यति त्रिंशति । शाक्यमानभवो राजा महीषीनाम् महीपतिः ।। P. T. ५०, ५१, टिप्पणी ६, १ १० । ३. J. R. A. S. १६००, पृ० ११६ । प्लेट चित्र १६ और १७ । ४. उन्होंने इसे महाराज श्री प्रभाकर पढ़ा था। जिस अक्षर को उन्होंने भ पढ़ा था, वह मेरी समझ में त है। सिक्कों पर के लेखों