(१५६) की आज-कल की हस्तलिखित प्रतियों में यह नाम इस प्रकार लिखा मिलता है-सुप्रतीकन भार (=भारशिव)। इसमें का न भूल से र के बदले में पढ़ा गया है, जैसा कि पौरा को भूल से मौना पढ़ा गया है और जिसका उल्लेख विष्णुपुराण के टीकाकार ने किया है । इसका शुद्ध पाठ था-सुप्रतीकर भार । कहा गया है कि इसने ३० वर्षों तक राज्य किया था। इस क्षेत्र में, जो महीषी केंद्र के अंतर्गत था, तीन जातियाँ बसती थीं जिन तीनों के नामों के अंत में 'मित्र' शब्द था। विष्णुपुराण में उनके नाम इस प्रकार दिए गए हैं-पुष्यमित्र पढुमित्र पद्ममित्रास्त्रयः । भागवत में लिखा है-पुष्यमित्र ( अर्थात् राष्ट्रपति ) राजन्य जो एक प्रकार के प्रजातंत्री राष्ट्रपति का पारिभाषिक नाम है । विष्णुपुराण में जो तीन जातियों या समाजों के नाम दिए गए हैं और ब्रह्मांड पुराण में जो त्रिमित्रों का उल्लेख है, उससे हमें यह मानना पड़ता है कि उनका राज्य तीन भागों में विभक्त था और उनमें एक के बाद एक इस प्रकार दस राजा गद्दी पर बैठे थे । वायुपुराण में जो 'त्रयोदशाः' पद आया है, उसका यह अर्थ हो सकता है कि में की मात्रा या चिह्न प्रायः छूटा हुअा मिलता है। उस समय भ और त में बहुत कम अंतर होता था और उनकी प्राकृति इतनी मिलती थी कि भ्रम हो सकता था। १. विद्यासागर का संस्करण, पृ० ५८४ । २. देखो जायसवाल कृत हिंदू-राज्यतंत्र, पहला खंड, पहला भाग, पृ० ५६ । ३. ब्रह्मांड पुराण में जो षट्त्रिमित्राः दिया है, उसके संबंध में यह माना जा सकता है कि पटु त्रिमित्राः को भूल से इस रूप में पढ़कर लिखा गया है।
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