( १६४ ) ७८. पूर्वी पंजाब में सिंहपुर का करद राजवंश था और ये लोग जालंधर के राजा थे। यह सिंहपुर एक प्राचीन नगर था जिसमें किलेबंदी थी और इस सिंहपुर का यादव वंश नगर का उल्लेख महाभारत में भी है। इस वंश का एक शिलालेख२ देहरादून जिले में यमुना नदी के प्रारंभिक अंश के पास लक्खा- मंडल नामक स्थान में मिला है, जिससे प्रमाणित होता है कि गुणों के समय में उनका राज्याधिकार शिवालिक तक था। सिंहपुर राज्य के करद तथा अधीनस्थ शासकों के इस वंश की स्थापना संभवतः सन् २५० ई० के लगभग हुई होगी, क्योंकि शिलालेख में उनकी बारह पीढ़ियों का उल्लेख है । उनके समय से सूचित होता है कि उनके वंश का १. इसका नाम त्रिग और अभिसार ग्रादि के साथ अाया है । सभापव, अ० २६, श्लोक २० । २. E. I. १, १०, बुहलर ने तो इम शिलालेख का समय ईसवी सातवीं शताब्दी बताया है ( E. I. खंड १, पृ. ११) पर राय- बहादुर दयाराम साहनी का मत है कि यह शिलालेख ई० छठी शताब्दी का है। ( E. I. खंड १८, पृ० १२५ ) और मैं श्री साहनी के मत का ही समर्थन करता हूँ ३. इनकी वंशावली इस प्रकार है-१ सेन वर्मन् , २ श्रार्य वर्मन् , ३ दत्त वर्मन् , ४ प्रदीत वर्मन् , ५ ईश्वर वर्मन् , ६ वृद्धि वर्मन् ; ७ सिंह वर्मन् , ८ जल, ६ यज्ञ वर्मन् , १० अचल उर्मन् समरवल, ११ दिवाकर वर्मन् महीचंबल, १२ भास्कर ऋषु घंघल (E. I. १. ११ ) इनमें से नं० १ से ११ तक तो बराबर एक के पुत्र हैं और नं० १२ वाले नं० ११ के भाई हैं ।
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