पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/१९३

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( १६३ ) जान पड़ता है कि भार-शिवों के सेनापति के रूप में विंध्यशक्ति ने उन सबका अंत कर दिया था। नैषध वंश का अंत समुद्रगुप्त की विजय के समय हुआ था। यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि इनमें क्रम से नौ राजा सिंहासन पर बैठे थे या इससे कम। साम्राज्य ६७७. संभवतः पुरिका के अधीन नागपुर, अमरावती और खानदेश की सरकार रही होगी। प्रवीर पुरिका और चानका दोनों का ही शासक था अर्थात् पश्चिमी पुरिका और वाकाटक मध्यप्रदेश और बुंदेलखंड दोनों ही उसके स्व-राष्ट्र विभाग के अधीन थे। मालवा प्रांत नाग वंश के अधीन था जिसकी राजधानी माहिष्मती में थी। पूर्वी और दक्षिणी बघेलखंड, सर- गुजा, बालाघाट और चाँदा सब मेकला के शासकों के अधीन थे और उड़ीसा का पश्चिमी विभाग तथा कलिंग कोसला के शासकों के अधीन थे। यदि प्रांतीय गवर्नरों के अधीनस्थ प्रदेशों का ऊपर दिया हुआ नकशा हरिपेण की सूची ( कुंतल-अवंती-कलिंग-कोसल- त्रिकूल-लाट-आंध्र ..) से मिलाया जाय तो यह पता चलेगा कि कुंतल बाद में मिलाया गया था जिस पर स्वामित्व के अधिकार की स्थापना पृथ्वीपेण प्रथम के समय से लेकर आगे बराबर कई बार की गई थी। लाट देश माहिष्मती साथ प्रारंभिक वाकाटक काल में मिलाया गया होगा। सन् ५०० ई० के लगभग तो वह अवश्य ही उन लोगों के अधीन था। ....... १.१६१ क।