( १७६ ) चलता है कि उस समय सामाजिक पुनरुद्धार या सुधार हुआ था। उसमें वर्णाश्रम धर्म और सनातन हिंदू धर्म के पुनरुद्धार पर बहुत ज्यादा जोर दिया गया है । उस समय चारों तरफ इन्हीं बातों की पुकार मची हुई थी। कुशन शासन के समय समाज में जो दोप घुस आए थे, वाकाटकों के साम्राज्य काल में उन सबको निकाल बाहर करने का प्रयत्न हो रहा था, और समाज अपने आपको उन सव दोषों से मुक्त करने लगा था। वह हिंदुओं के दोष दूर करके उन्हें शुद्ध करने वाला आंदोलन था जिसका प्रवरसेन प्रथम ने बहुत अच्छी तरह पृष्ठ-पोपण किया था, और उसके साम्राज्य की स्थापना का अभिप्राय ही मानो यह था कि सब जगह यह आंदो- लन खूब जोर पकड़े। ६८६. गंगा और यमुना की मूर्तियाँ वास्तु-कला में राजकीय और राष्ट्रीय चिह्न बन गई थीं । जैसा कि ऊपर बतलाया जा चुका है, मत्स्यपुराण में सातवाहन काल तक की कला का पुनरुद्धार वास्तु-कला का विवेचन है, और उसमें कहीं इस बात का उल्लेख नहीं है कि शिव, विष्णु अथवा और किसी देवता के मंदिर में गंगा और यमुना की मूर्तियाँ यों ही अथवा अवश्य रहनो चाहिएँ । इनका ग्रहण अवश्य ही राजनीतिक उद्देश्यों से हुआ था । भार-शिव काल में भार-शिवा १. जो बड़े बड़े और बार बार वैदिक कृत्य या यज्ञ (अग्निष्टोम, श्रमोम, उक्थ्य, पोइशिन् , अातिरात्र, वाजपेय, बृहस्पतिसव, साद्यस्क और अश्वमेव ) (G. I. पृ० २३६ ) हुअा करते थे, उनमें अवश्य ही बहुत से लोग एकत्र हुया करते होंगे और उनके द्वारा अपने उद्देश्यों और धर्म का प्रचार भी किया जाता होगा।
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