( १७७ ) के साथ गंगा का जो संयोग हुआ था, उसमें बहुत बड़ा नैतिक बल निहित था। भार-शिवों ने गंगा को मुक्त किया था और वे उसे कला के क्षेत्र में लाए थे और उन्होंने उसे अपने सिक्कों तक पर स्थान दिया था। वे यमुना को भी कला के क्षेत्र में ले आए थे, जैसा कि भूमरा के मंदिरों और देवगढ़वाली गंगा और यमुना की उन मूत्तियों से सूचित होता है जिनके ऊपर नागछत्र है। पर वाकाटकों ने तो उन्हें अपने साम्राज्य का चिह्न ही बना लिया था, और उन्हीं से चालुक्यों ने उन्हें ग्रहण किया था और अपना साम्राज्य-चिह्न बनाया था ($ १०१ क )। पल्लव भी, जो वाकाटकों की एक शाखा ही थे, उनका व्यवहार करते थे और सब लोग इस चिह्न का राजनीतिक अर्थ बहुत अच्छी तरह समझते थे। वे जानते थे कि इसका अर्थ साम्राज्य-आर्यावर्त का साम्राज्य-है । नाग- १ १. देखो S. I I. खंड १, पृ० ५४ जिसमें गंगा और यमुना, मकर-तोरण, कनकदंड इत्यादि को चालुक्यों के साम्राज्य का चिह्न ( साम्राज्य-चिह्नानि ) कहा गया है। साथ ही देखो इंडियन एंटी- क्वेरी, खंड ८, पृ० २६ । २. देखो S. I. I. खंड २, पृ० ५२१ में वेलूरपलैयमावाले प्लेटों की मोहर जिसमें दूसरी पंक्ति में यमुना की उभारदार मूत्ति है, जिसके नीचे एक कच्छप बना है और बीच में गंगा की मूर्ति है जिसके चरणों के पास दो घड़े हैं और सिर के ऊपर नाग के फन का छत्र है । ३. इंडियन एंटीक्वेरी, खंड १२, पृ० १५६ और १६३ । वाणी (बड़ौदा) के राष्ट्रकूट ताम्रपत्र में गोविंदराज द्वितीय की विजय का वर्णन है और उसमें गंगा तथा यमुना की मूर्चियोंवाली ध्वजात्रों को छीन लेने १२
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