पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/२१५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( १८५ ) यहाँ "अपहृत का यह अर्थ नहीं है कि उसने बलपूर्वक छीन लिया था। अजंतावाले शिलालेख में लिखा है कि प्रवरसेन द्वितीय का पुत्र और उत्तराधिकारी आठ वर्ष की अवस्था में सिंहा- सन पर बैठा था और उस छोटे से बालक के लिये यह संभव ही नहीं था कि वह अपने पिता के विरुद्ध विद्रोह करता और उसका राज्य बलपूर्वक छीन लेता। अजंतावाले शिलालेख में तो उसका नाम नहीं दिया है, पर बालाघाटवाले शिलालेख से भी इस बात का समर्थन होता है कि उसने भली भाँति शासन किया था, क्योंकि उसमें कहा गया है कि उसने कोसला, मेकला और मालव के अपने करद और अधीनस्थ शासकों को अपनी आज्ञा में रखा था। कुंतल के राजा की कन्या अज्झिता के साथ नरेंद्रसेन का जो विवाह हुआ था, उससे हम यह समझ सकते हैं कि या तो कुंतल पर उसका पूरा प्रभुत्व था और या उसके साथ उसकी गहरी राजनीतिक मित्रता थी। ऊपर जो काल-क्रम बतलाया गया है, से था। संस्कृत में गुणविश्वासात् का कोई अर्थ नहीं हो सकता । गुण तो पहले से वर्तमान रहना चाहिए, जो यहाँ पूर्व शिक्षा के कारण प्राप्त हो चुका था । यहाँ विश्वास का कोई प्रश्न ही नहीं उत्पन्न होता । यह अधिगत गुण विश् [शेप ] भी बंसा ही है, जैसा हाथीगुम्फावाले शिलालेख की १० वीं पंक्ति का-'गुणविशेषकुशलो' है। [एपि- ग्राफिया इंडिका २०, ]1 १. कीलहान ने जा 'अपहृत' का यह अर्थ किया था कि वह अपने वंश की श्री या संपत्ति ले गया' वह ठीक नहीं है। उसने यही समझा था कि उस समय राज्य के उत्तराधिकार के संबंध में कोई झगड़ा हुअा था।