पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/२१६

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( १८६) उसके अनुसार नरेंद्रसेन सन् ४३५-४७० ई० के लगभग हुआ था। कुंतल के जिस राजा की कन्या अज्झिता के साथ विवाह करके उसने राजनीतिक मित्रता स्थापित की थी, वह कदंब ककुस्थ था जिसने तलगुंड संभवाले कदंब-शिलालेख के अनुसार (E. 1. ८, पृ. ३३. मिलाओ मोरेस ( Moraes ) कृत Kadama Kula पृ० २६-२७) कई बड़े बड़े राजवंशों के साथ, जिनमें गुप्तों का वंश भी था, विवाह-संबंध स्थापित किया था । यह राजा कदंब शक्ति की चरम सीमा तक पहुँच गया था ( लगभग ४३० ई.)। ककुस्थ ने अपने युवराज रहने की दशा में और अपने भाई के शासन-काल में गुप्त संवत् का व्यवहार किया था (६१२८ पाद-टिप्पणी)। इस विवाह- संबंध के कारण उसकी मर्यादा बढ़ गई थी। गुप्ता के साथ विवाह-संबंध हो जाने के कारण कदंब और वाकाटक लोग बहुत कुछ स्वतंत्र हो गए थे। या तो कुमारगुप्त प्रथम के शासन के कारण और या उसके शासन-काल में नरेंद्रसेन की स्थिति अपने करद और अधीनस्थ राजाओं और पड़ोसियों के मुकाबिले में अवश्य ही बहुत दृढ़ हो गई होगी, क्योंकि कदंगों के साथ उसका जा वंशानुगत झगड़ा चला आता था, उसका उसने इस प्रकार अंत कर दिया था। ६६२. सन् ४५५ ई० के लगभग नरेंद्रसेन का समय बहुत ही अधिक विपत्ति में बीता था। वह समय स्वयं उसके लिये भी कष्टप्रद था और उसके मामा गुप्त सम्राट नरेंद्रसेन के कट के दिन कुमारगुप्त के लिये भी। शक्तिशाली पुष्यमित्र प्रजातंत्रों ने, जिनके साथ पटु- मित्रों और पद्यमित्रों के प्रजातंत्र भी सम्मिलित थे, गुप्त साम्राज्य पर आक्रमण किया था। पहले उक्त तीनों प्रजातंत्र वाकाटकों के