( १९४) अशोक-वाली पालिश का व्यवहार किया गया है, परंतु जान पड़ता है कि कला की अभिज्ञता के कारण ही अजंता की गुहाओं में किसी और कला संबंधी वस्तु पर उसका प्रयोग नहीं किया गया है। 58. अजंता के चित्रों में सबसे अधिक प्रसिद्ध ये हैं-बुद्ध का अपने पिता के राजमहल में लौटकर आना, यशोधरा, राहुल और बुद्धदेव का दृश्य और लंका का युद्ध । और ये सभी चित्र दो वाकाटक गुहाओं नं० १६ और १७ में हैं। ये गुहाएँ बहुत ही स्पष्ट रूप से आर्यावर्त नागर प्रकार की हैं। करने की क्रिया लोग ग्यारहवीं शताब्दी तक जानते थे; क्योंकि खजुराहो की मूर्तियों के कुछ टूटे हुए अंशों की उस समय इसी क्रिया से मरम्मत की गई थी। इस प्रकार की पालिश करने की क्रिया किसी कला संबंधी कारण से ही बीच में कुछ समय के लिये बंद कर दी गई थी। खजु- राहो की बाहरवाली मूर्तियों पर कभी पालिश नहीं की गई। मुझे ऐसा जान पड़ता है कि पालिश से श्राकार और रूप-रेखा श्रादि के ठीक तरह से व्यक्त होने में बाधा पड़ती थी। संगतराश लोग अपनी जो कारीगरी दिखलाते थे, वह पालिश के कारण दब जाती थी। जिसे आज-कल लोग मौर्य-पालिश कहते हैं, वह मौर्यों के समय से बहुत पहले से चली आती है । छोटा नागपुर में प्रागैतिहासिक काल के और हड्डी के वज्रों की नकल के बने हुए जो वज्र मिले हैं और जो पटना म्यूजियम में रखे हैं, उन पर भी इसी तरह की पालिश है। उन पर की यह पालिश किसी विशेष क्रिया से की गई है; केवल व्यवहार करने और हाथ में रखने से उन पर वह चमक नहीं पाई है।
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