पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/२२६

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( १६६) घुड़सवारों के कारण ही इतनी बढ़ी-बढ़ी थी। और फिर विंध्य पर्वतों में वही शक्ति अच्छी तरह लड़-भिड़ और टहर सकती है जिसके पास यथेष्ट और अच्छे घुड़-सवार हों। बुंदेले घुड़-सवार तो परवर्ती इतिहास में प्रसिद्ध हुए थे। बुंदेलखंड के घुड़सवारों की प्रसिद्धि संभवतः बहुत प्राचीन काल से चली आ रही है। १०१ क. चालुक्यों ने ही वाकाटकों का अंत किया होगा। पुलकेशिन् प्रथम ने वातापी ( बीजापुर जिला' ) सन् ५५० ई० के लगभग अश्वमेध यज्ञ किया था। और वाकाटकों का अंत, यह मान लेना चाहिए कि उसी समय से लगभग सन् ५५० ई० वाकाटकों का अंत हुआ था। गंगा और यमुना के राजकीय चिह्न इसी समय वाकाटकों से चालुक्यों न लिए होंगे (३८६); और आगे चल- कर चालुक्यों में इनका इतना अधिक प्रचार हो गया कि वे उन्हें स्वभावतः अपने पैतृक राजचिह्न समझने लग गए और यह मानने लग गए कि हमारे ये चिह्न हमारे वंश की स्थापना के समय से ही चले आ रहे हैं । हरिपेण की अधीनता में या तो जयसिंह और या रणराग ( पुलकेशिन प्रथम का या तो दादा और या पिता) था। इस बात का उल्लेख मिलता है कि हरिपेण ने उन शासकों को अपने अधीन या अपनी आज्ञा में (...स्वनिर्देश... ) किया था जो पहले वाकाटकों के अधीनस्थ और करद थे और १. एपिग्राफिया इंडिका, खंड ६, पृ० १. २. एपिप्राफिया इंडिका, खंड ६, पृ० ३५२-५३ | S. I. I. १.५४, (चेल्लूर का दानपत्र )।