( २१२) ने एक नवीन राज-कुल की स्थापना की थी। कौमुदीमहोत्सव की क्र द्ध रचयित्री ने लिच्छवियों को म्लेच्छ और चंडसेन को कारस्कर कहा है; और कारस्कर का अर्थ होता है-एक जाति हीन या छोटी जाति का ऐसा आदमी जो राज-पद के उपयुक्त न हो। $ ११२. चंद्रगुप्त प्रथम आगे चलकर बहुत अधिक भाग्यशाली और वैभव-संपन्न हुआ था। परंतु उसका परवर्ती इतिहास बत- लाने से पहले हम यहाँ यह देखना चाहते गुप्तों की उत्पत्ति हैं कि क्या गुप्तों की जाति का भी कुछ पता चल सकता है। क्योंकि उनकी जाति का प्रश्न अभी तक रहस्यमय बना हुआ है और उसका कुछ भी पता नहीं चला है। तत्कालीन अभिलेखों आदि से हमें निम्न- लिखित तथ्य मिलते हैं- ( क) गुप्तों ने कहीं अपनी उत्पत्ति या मूल और जाति आदि का कोई उल्लेख नहीं किया; मानों उन्होंने जान-बूझकर उसे छिपाया हो। और (ख) वे लोग धारण नामक उप-जाति के थे। गुप्त महारानी प्रभावती गुप्ता के अभिलेख से हमें इस बात का पता चलता है कि वह धारणा गोत्र की थी । जान पड़ता है १. कहिं एरिस वंणस्स से राबसिरी?-कौमुदी-महोत्सव, अंक ४, पृ० ३०। २. एपिग्राफिया इंडिका, खंड १५, पृ० ४१ । साथ ही मिलाश्री उक्त ग्रंथ के पृ० ४२ की पाद-टिप्पणी ।
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