सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/२४७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

(२१६) वयस्क हो गया था। जिस वर्ष कल्याण वर्मा का राज्याभिषेक हुआ था, उसी वर्ष मथुरा के राजा की कन्या के साथ उसका विवाह भी हो गया था। ६ ११७. गुप्त लोग जो बिहार से निर्वासित हुए थे, वह अधिक समय के लिये नहीं हुए थे; केवल सन् ३४० ई० से ३४४ ई० तक ही वे बिहार से बाहर रहे थे परंतु उनके गुप्तों का विदेश-वास इस विदेश-वास का एक बहुत बड़ा परि- और उनका नैतिक रूप णाम हुआ था और उसका भविष्य पर परिवर्तन बहुत कुछ प्रभाव पड़ा था। उनके इस विदेश-वास के परिणाम स्वरूप केवल विहार का ही नहीं बल्कि सारे भारत का इतिहास ही बिल्कुल बदल गया था। अब गुप्तों का वंश ऐसे विदेशियों का वंश नहीं रह गया था जो राज्य पर अनुचित रूप से अधिकार कर लेने- वाले समझे जाते थे, बल्कि वह परम हिंदू-मागधों का एक ऐसा वंश बन गया था जो धर्म, ब्राह्मण, गौ तथा हिंदू-भारत के साहित्य तक्षण-कला, भाषा, धर्म-शास्त्र, राष्ट्रीय संस्कृति और राष्ट्रीय सभ्यता के संरक्षक और समर्थक थे। समुद्रगुप्त के राजकीय जीवन का आरंभ वाकाटकों की अधीनता में एक करद और अधीनस्थ शासक के रूप में हुआ था और उसके वाकाटकों का गंगा देवी- १. पाटलिपुत्र पर चंद्रगुप्त प्रथम का अधिाकर सन् ३२० ई० में हुश्रा और राज्याभिषेक २५ वर्ष की अवस्था में होता था। कल्याण- वर्मा लगभग २० वर्षों तक विदेश में रहा था और इसलिये पाटलिपुत्र पर उसका फिर से अधिकार लगभग सन् ३४० ई० में हुश्रा होगा।