(२१८) कर दिया था। इस प्रकार अलबरूनी ने उस समय एक सत्य और परंपरागत ऐतिहासिक तथ्य का ही उल्लेख किया था, जिस समय उसने यह कहा था कि गुप्त-काल का राजा अथवा राजा लोग निर्दय और दुष्ट थे। हिंदुओं की स्मृतियों में राष्ट्रीय संघटन और व्यवस्था के ऐसे नियम पहले से लिखे हुए वर्तमान थे जिनका यह विधान था कि जो राजा अत्याचारी हो अथवा जिसके हाथ अपने माता-पिता के रक्त से रंजित हों, उस राजा का नाश कर डालना चाहिए'। इसलिये मगधवालों ने एक योजना प्रस्तुत की और वे चंद्रगुप्त प्रथम के विरुद्ध उठकर खड़े हो गए। उन्होंने वाकाटक प्रदेश (पंपासर) से कुमार कल्याणवर्मन को बुलवा लिया था और पाटलिपुत्र के सुगांग प्रासाद में उसका राज्याभिषेक कर डाला था। इस संबंध में कौमुदौ-महोत्सव की रचयित्री ने बहुत ही प्रसन्न होकर कहा था-"वर्णाश्रम धर्म की फिर से प्ररिष्ठा हुई है, चंडसेन के राजकुल का उन्मूलन हो गया है । यह घटना उस समय की है, जब कि चंद्रगुप्त विद्रोही शवरों के साथ लड़ने के लिये एक ऐसे स्थान पर गया हुआ था जो रोहतास और अमरकंटक के मध्य में था। यह विदेशी राजा सन् ३४० ई० के लगभग मगध से निकाला गया था; क्योंकि कहा गया है कि उस समय कल्याण वर्मा हिंदुओं के नियमों के अनुसार अपना राज्याभिषेक कराने के लिए पूर्ण रूप से १. Hindu Polity, दूसरा भाग ५०, १८६. २. प्रकटितवर्णाश्रमपथमुन्मूलितचंडसेनराजकुलम् |-कौमुदी-महो- सव, अंक ५॥
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