( २२४) है, जो वैभव की रक्षा करता और उसे देखकर सुखी होता है और जो हिदू-राजत्व का परंपरागत देवता है। विष्णु सब देव- ताओं का राजा है, खूब अच्छे अच्छे वस्त्र और आभूषण पहनता है, सीधा तनकर खड़ा रहता है और अपनी प्रजा के राज्य का शासन करता है; जो वीर है और युद्ध का विजयदेवता है ( उसका चिन्ह चक्र है जो साम्राज्य का लक्षण है) और जो उन समस्त दुष्ट शक्तियों का अप्रतिहार्य रूप से नाश करता है जो विष्णु भगवान के साम्राज्य पर आक्रमण करती हैं। युद्ध तथा विजय की घोषणा करने के लिये उसके एक हाथ में शंख है। तीसरे हाथ में शासन का दंड या गदा है और चौथे हाथ में कमल है जो उसकी प्रजा के लिये संपन्नता, वृद्धि और आनंद का सूचक चिह्न है। इस राजम देवता के धर्म को ही समुद्रगुप्त ने अपने वंश और देश का धर्म बनाया था। विष्णु के प्रति उसकी भक्ति इतनी अधिक है कि स्वयं उसका व्यक्तित्व विष्णु में ही विलीन हो जाता है। भगवद्गीता के शब्दों में उसका वर्णन इस प्रकार किया जा सकता है- "साध्वासाधूदय-प्रलय-हेतु पुरुषस्याचिन्त्यस्य भक्त्यवनतिमात्र ग्राह्यमृदुहृदयस्य'।" और उन दिनों की साहित्यिक प्रथा के अनुसार इस वर्णन का दोहरा अर्थ होता है। इसमें भक्त और उसके आराध्य देवता दोनों का ही एक ही भाषा में वर्णन किया गया है जो लक्षण आराध्य देवता के हैं, वही उसके भक्त के भी हैं। जो लोग हिंदू नहीं होंगे अथवा जो हिंदुओं की भक्ति का मर्म न जानते होंगे, वे १. Gupta Inscriptions, पृ०८, पं० २५ ।
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