पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/२५४

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( २२६) १२. सन् ३५० ई० का राजनीतिक भारत और समुद्रगुप्त का साम्राज्य ६ १२०. समुद्रगुप्त के प्रयागवाले स्तंभ पर जो शिलालेख अंकित है, उसमें उसके जीवन के सब कार्यों का उल्लेख है।' और इस बात में कुछ भी संदेह नहीं है ३५० ई० के राज्यों कि उसकी यह जीवनी उसी के जीवन- के संबंध में पुराणों काल में प्रकाशित हुई थी। उसमें उन में यथेष्ट वर्णन राज्यों और राजाओं के वर्णन हैं जो गुप्त साम्राज्य की स्थापना के समय वर्तमान थे। परंतु फिर भी हम समझते हैं कि पुराणों में उन दिनों के राजनीतिक भारत का कदाचित् अपेक्षाकृत और भी अधिक विस्तृत वर्णन मिलता है। वास्तव में हमें पुराणों में समुद्रगुप्त के समय के भारत का पूरा पूरा चित्र मिलता है और उसी चित्र से पुराणों के कालक्रमिक ऐतिहासिक विवरण समाप्त होते हैं। परंतु पुराणों के उन अंशों का अच्छी तरह अध्ययन नहीं किया गया है और पौराणिक इतिहास के इस अंश के महत्व पर कुछ भी ध्यान नहीं दिया गया है। इसलिये उस पौराणिक सामग्री का कुछ विवेचन और विश्लेषण कर लेना आवश्यक जान १. फ्लीट का यह अनुमान ठीक नहीं था कि उसकी यह जीवनी उसकी मृत्यु के उपरांत प्रकाशित हुई थी। देखो रायल एशियाटिक सोसायटी के जरनल सन् १८९८, पृ० ३८६ में बुहलर का लेख । यह उनके अश्वमेध या अश्वमेधों में पहले प्रकाशित हुई थी। (फ्लीट की इस भूल ने बहुतों को और साथ ही मुझे भी भ्रम में डाल दिया था ।)