पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/२५९

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(२३१ ) (ग) शासन करेंगे (भोक्ष्यन्ते) या पर शासन करेंगे ( भोक्ष्यन्ति ) कोशलों, आंध्रों (विष्णु-पुराण के अनुसार ओड्रों), पौंड्रों, समुद्र-तट के निवासियों सहित ताम्रलिप्तों और देवों द्वारा रक्षित (देव-रक्षिताम् ) रमणीय राजधानी चंपा' पर । (घ ) शासन करेंगे गुह-प्रांतों (विष्णुपुराण के अनुसार गुहान् ) कलिंग, माहिषिक और महेंद्र के प्रांतों पर कलिंग, महिष और महेंद्र का शासक गुह होगा ( भोक्ष्यति के स्थान पर पालयिष्यति)। विष्णुपुराण से भी यह बात प्रमाणित होती है कि साम्राज्य के उक्त तीनों अंतिम प्रांत क्रमशः मणिधान्यक (विष्णु०) अथवा किसी मणिधान्यज [ मणिधान्य का वंशज (ब्रह्मांड०)] देव और गुह के शासनाधिकार में थे, क्योंकि विष्णुपुराण में भी इन प्रांतीय सरकारों के शासक यही तीनों व्यक्ति कहे गए हैं। इस संबंध में वायुपुराण और ब्रह्मांडपुराण दोनों का पाठ एक ही है और उनमें ये नाम कर्म कारक में रखे गए हैं और कर्ता कारक "गुप्तवंशजाः" होता है। इन प्रांतीय शासकों के नामों का इन प्रांतों के नागों के साथ विशेषण रूप में प्रयोग किया गया है। यथा-मणिधान्यजान् (ब्रह्मांड.), देव-रक्षिताम् (चंपा का १. कोसलांश्चान्ध्र-पौंड्रांश्च ताम्रलिप्तान स-सागरान् । चम्पा चैव पुरीं रम्यां भोक्ष्यन्ते(न्ति) देवरक्षिताम् ।। (वायु०) २. कलिंगमाहिषिकमाहेन्द्रभौमान् गुहान् भोक्ष्यन्ति । (विष्णु०) ३. कलिंगा महिषाश्चैव महेन्द्रनिलयाश्च ये। एतान् जनपदान् सर्वान् पालयिष्यति वै गुहः ॥ (ब्रह्मांड और वायु०)