(२३५) पड़ता है कि समुद्रगुप्त ने एक ऐसे प्रांत की सृष्टि की थी जिसकी राजधानी चंपा में थी और जिसका विस्तार मगध के दक्षिण-पूर्व से छोटा नागपुर होते हुए उड़ीसा और छत्तीसगढ़ के करद-राज्यों और ठेठ बस्तर तथा चाँदा जिले तक था। वायुपुराण में भी और ब्रह्मांडपुराण में भी आंध्र को कोसल के बाद रखा गया है। कोसला और मेकला के पुराने वाकाटक प्रांत में समुद्रगुप्त ने उड़ीसा और बंगाल को भी मिला दिया था और उन सबका शासन चंपा से होता था, जहाँ से बंगाल और कोसल के लिये रास्ते जाते थे और जहाँ से नदी के द्वारा सीधे ताम्रलिप्ति तक भी जाने का मार्ग था । चंपा का विशेषण देव-रक्षिता दिया गया है, जिसका कदाचित् यह अर्थ हो सकता है कि वह राजा देव के अधीन था ( राज्या- भिषेक से पहले चंद्रगुप्त द्वितीय का नाम देव था। देखो बि. उ० रि० सो० का जरनल, खंड १८, पृ० ३७)। मेहरौलीवाले स्तंभ में कहा गया है कि चंद्रगुप्त द्वितीय ने वंगों पर विजय प्राप्त की थी; और इसका अर्थ यह हो सकता है कि जब वह वाइसराय या उपराज के रूप में शासन करता था, तब उसे एक युद्ध करना पड़ा था। जान पड़ता है कि अपने अभियान के कुछ ही दिन बाद समुद्रगुप्त ने समतट को भी अपने राज्य में मिला लिया था। $ १२६. पुराणों से पता चलता है कि कलिंग-माहिषिकमहेंद्र' सभापर्व ३१. १३ । यह कांतारक वहीं था जहाँ अाजकल कांकेर और बस्तर है | दूसरा कोसल ( अर्थात् दक्षिणी कोसल ) वही था जो अाजकल का सारा चाँदा जिला है । १. विष्णुपुराण की एक प्रति में माहिषिक के स्थान पर "माहेय- कच्छ" लिखा हुश्रा मिलता है जिसका अर्थ होता है-महा (नदी) के तट । यह कदाचित् महानदी की तराई थी। .
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