पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/२६४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( २३६) (अथवा महेंद्रभूमि ) को मिलाकर एक ही प्रांत बना लिया गया था। इसका मिलान पंक्ति १६ के शिलालेखवाले विभागों से भी हो जाता है। महाकांतार के उपरांत कौराल है जो पुलकेशिन द्वितीय का कौनालु जलाशय है और यह पिठापुरम् के दक्षिण की वही झील है जो गोदावरी और कृष्णा नदियों के मध्य में पड़ती है । पिष्ठपुर, महेंद्रगिरि और कोहर तीनों गंजाम जिले की पहाड़ी गढ़ियाँ हैं। मोटे हिसाब से यह वही प्रांत है जिसे आजकल हम लोग पूर्वीय घाट कहते हैं और जिसका नाम ईस्ट इंडिया कंपनी के समय में उत्तरी सरकार थाः अर्थात् यह कृष्णा और महानदी के मध्य का प्रदेश है। पिष्ठपुर में उस समय कलिंग की राजधानी थी और यह बात पिष्ठपुर और सिंहपुर में राज्य करनेवाले मगध कुल के एक ऐसे अभिलेख में लिखी हुई मिलती है जो प्रायः उन्हीं दिनों उत्कीर्ण दुआ था। इस मगध- कुल के आरंभिक शासकों में से एक तो कलिग का मगध-कुल शक्तिवर्मन् था और उसके उपरांत चंद्र- वर्मन और उसका पुत्र विजयनंदिवर्मन् वहाँ शासन करता था। विजयनंदिवर्मन् ने अपना कुल-नाम मगध-कुल से बदलकर शालंकायनकुल रखा था। यह बात या १. एपिग्राफिया इंडिका, खंड ६, पृ. ३. तेलगू भाषा में कोलनु का अर्थ झील होता है। २. वि. स्मिथ कृत Early History of India, पृ. ३०० (चौथा सं०)। ३. एपिग्राफिया इंडिका, खंड ४, पृ. १४२, खंड १२, पृ० ४, खंड ६, पृ० ५६ और इंडियन एंटिक्वेरी, खंड ५, पृ० १७६ ।