( २५६) जो यमुना और विदिशा के बीच में था और जिसे आज-कल बुंदेलखंड कहते हैं। इस आर्यावर्त-युद्ध के कारण समुद्रगुप्त का (आयावर्त के ) आटवी शासकों पर प्रभुत्व दूपरा ग्रार्यावर्त युद्ध स्थापित हो गया था; अर्थात बघेलखंड के विंध्य प्रांतों और पूर्वी बुंदेलखंड पर उसका राज्य हो गया था। इसलिए हम कह सकते हैं कि यह युद्ध आर्यावत्ते के विंध्य प्रांतों अर्थात् बुंदेलखंड में उसके आस-पास हुआ था। पन्ना की पहड़ियों में युद्ध करना एक मुश्किल काम है और सैनिक नेता साधारणतः ऐसे युद्धों से बचते हैं। बुंदेलखंड की दक्षिण-पश्चिमी सीमा पर मिलसा (बिदिशा)(पूर्वी मालवा) प्रदेश पड़ता है। और पूर्वी मालवा की ओर से बुंदेलखंड में सहज में प्रवेश किया जा सकता है, क्योंकि गंगा की तराई से चलकर बेतवा या चंबल को पार करते हुए बुंदेलखंड में जाने के लिये पहले भी अच्छी और साफ सड़क थी और अब भी है। किलकिला-विदिशा के प्रांत पर समुद्रगुप्त ने उसी सम-तल प्रदेश से होकर आक्रमण किया होगा जो आज-कल अधिकांश में ग्वालियर राज्य में है और जिस रास्ते से मराठे हिंदुस्तान में आया करते थे। जान पड़ता है कि यह युद्ध एरन में हुआ था । हम जिन कारणों से इस परिणाम पर पहुँचे हैं, वे नीचे दिए जाते हैं। ६ १३७. समुद्रगुप्त ने अपने स्मृति-चिह्न उसी एरन नामक स्थान पर बनवाए थे, जो वाकाटकों के रहने के प्रदेश के मध्य में पड़ता है। और इसी से हम यह बात एरन का युद्ध निश्चयपूर्वक कह सकते हैं कि वह विजय करता हुआ वाकाटक प्रदेश में पहुंचा था। इसके बादवाले वाकाटक राजा पृथिवीषेण प्रथम के शासनकाल
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