पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/२८६

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(२५८ ) (१०) देवराष्ट्र के कुबेर और (११) कुस्थलपुर के धनंजय का। मुख्य सेना विष्णुगोप के अधीन थी जिसके पार्यों में कलिंग सेनाएँ थीं। इस युद्ध को हम कुराल का युद्ध कह सकते हैं । इस युद्ध के द्वारा सममुद्रगुप्त ने वाकाटकों के कोसला, मेकला और आंध्र प्रांतों पर विजय प्राप्त की थी। समुद्रगुप्त लौटते समय भी उसी कोसलवाले मार्ग से ही आया था, क्योंकि हरिषेण ने और देशों का उल्लेख नहीं किया है। यह युद्ध कौशांबीवाले युद्ध (सन् ३४४ ई० ) के कुछ ही दिन बाद हुआ होगा। यह युद्ध सन् ३४५-३४६ ई. के लगभग हुआ होगा। हम कह सकते हैं कि खारवेल की तरह समुद्रगुप्त ने भी औसत हर दूसरे वर्ष ( सन् ३४४ से ३४८ ई० तक ) युद्ध किए होंगे। वह वर्षा ऋतु के उपरांत पटने से चलता होगा और उसी वर्ष फिर लौटकर पटने आ जाता होगा। ६ १३६. दक्षिणी भारत से लौटने पर समुद्रगुप्त ने वाकाटकों के असली केंद्र या उनके निवास के प्रांत पर आक्रमण किया था १. कौटिल्य (अ० १३० ) ने कहा है कि साधारण सेना एक दिन एक •योजन ( सात मील ) सहज में और सुखपूर्वक चल सकती है; अच्छी सेना एक दिन में डेढ़ योजन और सबसे अच्छी सेना दो योजन तक चल सकती है । कनिंघम ने अच्छी तरह इस बात का पता लगा लिया है कि एक योजन सात मील का होता था। परंतु समुद्रगुप्त का अभियान अवश्य ही और भी अधिक द्रुत गति से हुअा होगा।