(२८०) प्रदेश ) सब एक साथ ही संबद्ध थे; और इससे यह सूचित होता है कि विष्णुपुराण का कर्त्ता यह बात अच्छी तरह समझता था कि भारतवर्ष की प्राकृतिक सीमाएँ कहाँ तक हैं। चंद्रभागावाली सीमा इस बात से निश्चित सिद्ध होती है कि गुप्त संवत् ८३ में शोरकोट में गुप्त संवत् का इस प्रकार व्यवहार होता था कि केवल उसका वर्ष लिख दिया जाता था और उसके साथ यह बतलाने की भी आवश्यकता नहीं होती थी कि यह किस संवत् का वर्ष है; और इससे यह सूचित होता है कि वहाँ यह संवत् कम से कम २५ वर्षों से अर्थात् समुद्रगुप्त के शासन-काल से ही प्रचलित रहा होगा। ६१४६ ख. म्लेच्छ लोग यहाँ शूद्रों में सबसे निम्न कोटि के कहे गए हैं । यहाँ हम पाठकों को मानव धर्मशास्त्र तथा उन दूसरी स्मृतियों आदि का स्मरण करा देना चाहते म्लेच्छ शासन का वर्णन हैं जिनमें भारत में रहने वाले शकों को शूद्र कहा गया है। पतंजलि ने सन् १८० ई० पू० के लगभग इस बात का विवेचन किया था कि शक और यवन कौन हैं; और ये शक तथा यवन पतंजलि के समय में राज- नीतिक दृष्टि से भारतवर्ष से निकाल दिए गए थे, परंतु फिर भी उनमें से कुछ लोग इस देश में प्रजा के रूप में निवास करते थे। महाभारत में भी इस बात का विवंचन किया गया है कि ये शक तथा इन्हीं के समान जो दूसरे विदेशी लोग, भारतवर्ष में आकर बस गए थे और हिंदू हो गए थे, उनकी क्या स्थिति थी और समाज में १. एपिग्राफिया इंडिका, खंड १६, पृ० १५ ।
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