(२८५) पुराणों में कुशनों को तुखार-मुरुड और शक कहा गया है । भाग- वत में कुछ ही दूर आगे चलकर ( १२, ३, १४) स्वयं “यौन" शब्द का भी प्रयोग किया है । $ १४८. सिंध-अफगानिस्तान-काश्मीर वाले म्लेच्छों के अधि- कार में करीब चार प्रांत थे जिनमें कच्छ भी सम्मिलित था। यह हो सकता है कि म्लेच्छों के कुछ अधीनस्थ म्लेच्छ राज्य के प्रांत शासक ऐसे भी हों जो म्लेच्छ न रहे हों, जैसा कि भागवत में कहा गया है कि प्रायः म्लेच्छ ही गवर्नर या भूभृत् थे (म्लेच्छप्रायाश्च भूभृतः)। कौंती या कच्छ उन दिनों सिंध में ही सम्मिलित था, क्योंकि विष्णु- पुराण में उसका अलग उल्लेख नहीं है। कच्छ-सिंध उन दिनों पश्चिमी क्षत्रपों के अधिकार में था, जिनके सिक्के हमें उस समय के प्रायः तीस वर्ष बाद तक मिलते हैं, जब कि कुशनों ने अधीनता स्वीकृत की थी और कुशनों के अधीनता स्वीकृत करने का समय हम सन् ३५० ई. के लगभग रख सकते हैं। ६१४६. इस प्रकार पुराणों में हमें भारशिव-नाग-वाकाटक- काल और प्रारंभिक गुप्त काल का विश्वसनीय और बिलकुल ठीक ठीक वर्णन मिल जाता है। वाकाटक-कान्न पौराणिक उल्लेखों और समुद्रगुप्त के काल का उनमें पूरा-पूरा वर्णन है। राजतरंगिणी में तो अवश्य ही कर्कोट राजवंश (ई० सातवीं शताब्दी) का पूरा और व्योरेवार वर्णन दिया गया है। परंतु उससे पहले के हिंदू इतिहास के किसी काल का उतना पूरा और ब्योरेवार वर्णन हमें अपने साहित्य में और कहीं नहीं मिलता, जितना उक्त कालों का पुराणों में मिलता है। का मत
पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/३१३
दिखावट