(२८४ ) (इसका आशय यही है कि आर्य जनता म्लेच्छों के साथ मिल जायगी और प्रजा का क्षय होगा।) भागवत में सिधु-चंद्रभागा-कौती-काश्मीर के म्लेच्छों के संबंध में यही वर्णन मिलता है और उसमें अध्याय (खंड १२, अध्याय २)' के अंत तक वही सब व्योरे की बातें दी गई हैं जिनका सारांश ऊपर दिया गया है। इस विषय में विष्णुपुराण में भी भागवत का ही अनुकरण किया गया है। इस प्रकार यह सिद्ध हो जाता है कि दूसरे पुराणों में जिन्हें यवन कहा गया है, उन्हीं को विष्णुपुराण और भागवत में म्लेच्छ कहा गया है। ऊपर जिन यवनों के संबंध की बातें कही गई हैं, वे इंडो-ग्रीक यवन नहीं हो सकते, क्योंकि पौराणिक काल-निरूपण के अनुसार भी और वंशावलियों के विवरण के अनुसार भी इंडो-ग्रीक यवन इससे बहुत पहले आकर चले गए थे। यहाँ जिन यवनों का वर्णन है, वे वही यौन अर्थात् यौवा या यौवन् शासक हैं जिनके संबंध में ऊपर सिद्ध किया जा चुका है कि वे कुशन थे। यौव अथवा यौवा उन दिनों कुशना की राजकीय उपाधि थी और १. इसके बाद के अध्याय में यह वर्णन अाया है कि कल्कि म्लेच्छों के हाथ से देश का उद्धार करेगा । और इस संबंध में मैंने यह निश्चय किया है कि यहाँ कल्कि से उस विष्णु यशोधर्मन् का अभिप्राय है जिसने हूणों का पूरी तरह से नाश किया था । परंतु महाभारत और ब्रह्मांड पुराण में इस कल्कि का जो वर्णन अाया है, वह ब्राह्मण सम्राट वाकाटक प्रवरसेन प्रथम के वर्णन से मिलता है। [साथ ही देखो ऊपर पृ०६८ की पाद-टिप्पणी ] २. बिहार उड़ीसा रिसर्च सोसाइटी का जरनल, खंड १६, पृ. २८७ और खंड १७, पृ० २०१ ।
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