पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/३१५

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(२८७ ) और द्वीपों में भी बसते थे। और इन द्वीपों के सम्बन्ध में कहा गया है कि बीच में समुद्र पड़ने के कारण इनमें जल्दी परस्पर आवागमन नहीं हो सकता था। इन द्वीपोंवाली योजना में भारत- वर्ष नवाँ है। स्पष्ट रूप से इसका आशय यही है कि ये आठों द्वीप अथवा प्रायद्वीप, जिनमें भारतवासी रहते थे, भारतीय प्राय- द्वीप की एक ही दिशा में थे। इस दिशा का पता ताम्रपर्णी की स्थिति से लगता है जो आठ हिंदू-द्वीपों में से एक थी। ये सभी द्वीप पूर्व की ओर थे, अर्थात् ये सब वही द्वीप हैं जिन्हें आज-कल दूरस्थ भारत ( Further India.) कहते हैं। द्वीपों की इस सूची में सबसे पहले इंद्रद्वीप का नाम आया है जिसके संबंध में संतोषजनक रूप से यह निश्चित हो चुका है कि वह आज-कल का बरमा ही है। उन दिनों भारतवासियों को मलाया प्रायद्वीप का बहुत अच्छी तरह ज्ञान था; और इस बात का प्रमाण ई० चौथी शताब्दी के एक ऐसे शिलालेख से मिल चुका है (जो आज-कल के वेलेस्ली (Wellesly) जिले में एक स्तंभ पर उत्कीर्ण हुआ था। यह शिलालेख एक हिंदू महानाविक ने, जिसका नाम बुधगुप्त था और जो पूर्वी भारत का रहनेवाला था, उत्कीर्ण १. देखो वि० उ० रि० सो० के जरनल (मार्च, १६२२ ) में एस. एन० मजुमदार का लेख जो अब उन्होंने कनिंघम के Ancient Geography of India १९२४ के पृ० ७४६ में फिर से छाप दिया है। उन्होंने जो कसेरुमत् को मलाया प्रायद्वीप बतलाया है, वह युक्तिसंगत है। पर हाँ, और द्वीपों के संबंध में उन्होंने जो कुछ निश्चय किया है, वह बिलकुल ठीक नहीं है । २. उक्त ग्रंथ, पृ० ७५२ जिसमें कर्न ( Kern) V, G खंड ३ (१६१५) पृ० २५५ का उद्धरण दिया गया है ।