( ३०३) सौ वर्ष छः महीने मिलते हैं। इस प्रकार वास्तव में ये तीनों ही पुराण तीन सामंत-वंशों के ही वर्णन करते हैं। ऊपर जो यह कहा गया है कि “आंध्र लोग वसुधा का भोग करेंगे" उससे यह सूचित होता है कि उन परवर्ती आंधों ने साम्राज्य के अधिकार ग्रहण किए ये । हम अभी आगे चलकर यह बतलावेंगे कि आंध्र देश के श्रीपार्वतीयों ने साम्राज्य का अधिकार ग्रहण किया था और सातवाहनों के पतन के उपरांत दक्षिणी भारत में उन्हीं के राजवंश ने सबसे पहले साम्राज्य स्थापित करने का प्रयत्न किया था। ६ १५५. महत्त्वपुराण के अनुसार आभीरों की दस पीढ़ियाँ हुई थीं और उनका राज्यकाल ६७ वर्ष कहा गया है ( सप्त षष्टिस्तु वर्षाणि दशाभीरास्तथैव च । तेपुत्सन्नेषु श्राभीर कालेन ततः किलकिला-नृपाः।) वायुपुराण और ब्रह्मांडपुराण में भी आभीरों की दस पीढ़ियाँ बतलाई गई हैं, परंतु भागवत में केवल सात ही पीढ़ियाँ बतलाई गई हैं और साथ ही भागवत में यह भी नहीं कहा गया है कि उनका राज्य-काल कितना था। विष्णुपुराण ने भी इस विषय में भागवत का ही अनुकरण किया है। ६ १५६. इन सब बातों का सारांश यही है कि सब मिलाकर तीन राजवंश थे, जिनमें से दो की स्थापना तो साम्राज्य-भोगी आंधों ने की थी और तीसरे राजवंश का उदय भी उसी समय हुआ था और जान पड़ता है कि वह तीसरा वंश भी उन्हीं के अधीन था। यद्यपि उस समय तो उस तीसरे राजवंश का कोई
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